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Gorakhpur News: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया था नॉलेज सिटी का आह्वान, सीएम योगी ने 33 महीने में किया पूरा

28 अगस्त को गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय का लोकार्पण कर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद एक बार फिर गोरक्षपीठ के 'शिक्षा के जरिये सेवा' की भावना के साक्षी बनेंगे।

Purnima Srivastava
Published on: 25 Aug 2021 11:01 PM IST (Updated on: 25 Aug 2021 11:06 PM IST)
Guru Gorakhnath University Sonbarsa Maniram
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गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय सोनबरसा मानीराम

Gorakhpur News: 28 अगस्त को गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय का लोकार्पण कर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद एक बार फिर गोरक्षपीठ के 'शिक्षा के जरिये सेवा' की भावना के साक्षी बनेंगे। इसी दिन उनके द्वारा मुख्यमंत्री एवं गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ की पहल पर बन रहे महायोगी गुरु गोरक्षनाथ उत्तर प्रदेश राज्य आयुष विश्वविद्यालय की नींव भी रखेंगे।

गोरक्षपीठ के बुलावे पर राष्ट्रपति कोविंद 10 दिसम्बर 2018 को भी गोरक्षधरा पर पधार चुके हैं। तब वह गोरखनाथ मंदिर के संचालन में सेवारत महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के संस्थापक सप्ताह समारोह में बतौर मुख्य अतिथि आए थे। राष्ट्रपति ने तब गोरखपुर को नॉलेज सिटी बनाने का आह्वान किया था। उनके आह्वान को मुख्यमंत्री ने 33 महीने बाद ही पूरा किया है। राष्ट्रपति 28 अगस्त को एक विश्वविद्यालय की आधारशिला रखेंगे तो दूसरे का लोकार्पण करेंगे।

गोरखपुर को केंद्र बनाकर पूर्वांचल में स्वतंत्रता और शिक्षा के आंदोलन से गोरखनाथ मंदिर का पुराना नाता रहा है। 1885 में गोरक्षपीठ के महंत गोपालनाथ जी थे। उनके ऊपर आरोप था कि वह अंग्रेजों के खिलाफ जनता को भड़का रहे हैं। उनकी गिरफ्तारी हो गई। उन्हें छुड़ाने के लिए उनके शिष्य जोधपुर के राजा ने अंग्रेजों से बात की, लेकिन अंग्रेज नहीं माने। फिर तत्कालीन नेपाल नरेश ने हस्तक्षेप किया। गोरखपुर में गोरखा रेजीमेंट थी। गोरखा रेजीमेंट ने ब्रिटिश हुकूमत को चेतावनी दी कि अगर उन्हें रिहा नहीं किया जाएगा तो विद्रोह कर देंगे। तब जाकर गोपालनाथ जी को छोड़ा गया।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोरक्षपीठ पर लगातार यह आरोप लगते रहे कि यहां क्रांतिकारियों को, अंग्रेजों का विरोध करने वाले लोगों को शरण और सहयोग मिलता है। 1922 में तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ जी को चौरीचौरा घटना के लिए गिरफ्तार किया गया था। उच्च स्तर पर हस्तक्षेप के बाद उन्हें रिहा किया गया।

किराये का कमरा लेकर हुआ था महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद का गठन

सीएम एवं वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के दादागुरु महंत दिग्विजयनाथ दासता से मुक्ति व सामाजिक विकास के लिए शिक्षा को सबसे सशक्त माध्यम मानते थे। इसी ध्येय से उन्होंने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद का गठन कर किराए के एक कमरे में पहली शिक्षण संस्था की स्थापना की। इसके पीछे एक कहानी भी है। उनके एक शिक्षक को अंग्रेजों ने स्कूल से निकाल दिया था। यह बात जब दिग्विजयनाथ जी को पता चली तो उन्होंने शिक्षक के सम्मान के लिए महाराणा प्रताप के नाम पर स्कूल खोला। बाद में यही महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज के रूप में विकसित हुआ। आज भी इसमें करीब 5000 छात्र हैं।

1949-50 में महाराणा प्रताप डिग्री कालेज की स्थापना महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् का अगला पड़ाव था जो बाद में गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना का स्तम्भ बना। तत्पश्चात महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् ने ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ जी के नाम से वर्तमान दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय की स्थापना की। आज गोरखनाथ मंदिर से तकरीबन 50 सामान्य शिक्षा, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, छात्रावास और चिकित्सा संस्थाएं कार्य कर रही हैं। इन सभी में करीब 50,000 बच्चे हैं। 5000 से अधिक शिक्षक और अन्य कर्मचारी हैं। गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय जिसका लोकार्पण करने राष्ट्रपति आ रहे हैं, यह गोरखनाथ मंदिर का नया शैक्षिक पड़ाव है।


गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में भी गोरक्षपीठ की अहम भूमिका

गोरखपुर के मौजूदा पंडित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय की स्थापना के पीछे भी गोरक्षपीठ की महती भूमिका रही है। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद गोरखपुर शहर के मानिंद लोग दिग्विजयनाथ जी के पास आए और उन्होंने गोरखपुर में एक विश्वविद्यालय स्थापना कराने का अनुरोध किया। दिग्विजयनाथ जी इन लोगों को लेकर तत्कालीन अंतरिम मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत जी से मिले, लेकिन पंत जी ने सरकारी खजाना खाली होने की बात की। पंत जी ने कहा कि विश्वविद्यालय वहां खुलेगा जहां लोग 50 लाख रुपए की राशि या उतने की प्रॉपर्टी का सहयोग करेंगे।

उस समय गोरखपुर में दो कॉलेज थे महाराणा प्रताप कॉलेज और सेंट एंड्रयूज कॉलेज। सेंट एंड्रयूज कॉलेज चर्च चलाती थी। यह तय हुआ कि इन दोनों कॉलेजों की संपत्ति ₹50 लाख से अधिक की है। इन्हें सरकार को देकर विश्वविद्यालय की स्थापना कराई जा सकती है। लेकिन, संविधान के नए नियमों के अनुसार अल्पसंख्यक संस्थानों में हस्तक्षेप का अधिकार सरकार को नहीं रहा।


इस नियम के आने के बाद चर्च मुकर गया। पर, गोरक्षपीठ को जनमानस की शैक्षिक प्रगति की चिंता थी। लिहाजा महंत दिग्विजयनाथ जी ने विश्वविद्यालय बनाने के लिए महाराणा प्रताप महाविद्यालय को दान में दिया। 1958 में सरकार और महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के बीच एग्रीमेंट हुआ और फिर विश्वविद्यालय का मार्ग प्रशस्त हुआ था। शिक्षा और स्वतंत्रता के प्रति उसी जुड़ाव को बढ़ाते हुए गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरक्षपीठ का नया कदम है।



Shashi kant gautam

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