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UP Election 2022: मुख्यमंत्री के जिले की विधानसभा सीटों का क्या हाल है?

मठ के प्रभाव का यह जिला एक वक्त में ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय के वर्चस्व को भी देख चुका है। आज भी गोरखपुर के राजनीतिक समीकरणों का विश्लेषण मठ के राजनीतिक प्रभाव को समझे बिना नहीं किया जा सकता है।

Vikrant Nirmala Singh
Published on: 26 Jan 2022 12:12 PM GMT
UP Election 2022: मुख्यमंत्री के जिले की विधानसभा सीटों का क्या हाल है?
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UP Election 2022: गोरखपुर वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में उत्तर प्रदेश का सबसे चर्चित जिला है। चर्चित इसलिए है क्योंकि यहां से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आते हैं। परंतु सिर्फ योगी आदित्यनाथ की वजह से नहीं बल्कि गोरखपुर तो हमेशा से पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र रहा है।

मठ के प्रभाव का यह जिला एक वक्त में ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय के वर्चस्व को भी देख चुका है। आज भी गोरखपुर के राजनीतिक समीकरणों का विश्लेषण मठ के राजनीतिक प्रभाव को समझे बिना नहीं किया जा सकता है। वैसे तो उत्तर प्रदेश की राजधानी है लखनऊ लेकिन योगी आदित्यनाथ ने अपने मुख्यमंत्री बनने के बाद से गोरखपुर को कहीं अधिक चर्चा में रखा। मुख्यमंत्री बनने के बाद तकरीबन 150 से अधिक बार मुख्यमंत्री गोरखपुर आ चुके हैं।

गोरखपुर में 2 लोकसभा सीटें है। एक गोरखपुर की सीट है, जहां से पांच बार लगातार योगी आदित्यनाथ सांसद रहे हैं। अभी वर्तमान में अभिनेता रवि किशन सांसद है। दूसरी सीट है बांसगांव। यहां भी तीन बार से लगातार कमलेश पासवान सांसद है। इस जिले के अंतर्गत कुल 9 विधानसभा क्षेत्र आते हैं- कैम्पियरगंज, पिपराईच, गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण, सहजनवा, चौरी चौरा, खजनी, बाँसगाँव और चिल्लूपार।

लोकसभा की दोनों सीटों के साथ-साथ इन सभी 9 विधानसभा सीटों पर गोरक्षपीठ और योगी आदित्यनाथ का प्रभाव बताया जाता है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने कुल 9 में से 8 सीटों पर कब्जा किया था। चिल्लूपार विधानसभा सीट बहुजन समाज पार्टी के खाते में गई थी। आगामी 2022 विधानसभा चुनाव में भी इन 9 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी और योगी आदित्यनाथ की साख दांव पर होगी। तो आइए क्रमवार इन सभी विधानसभा सीटों की जमीनी स्थिति को देखते हैं।

योगी आदित्यनाथ की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

1- गोरखपुर शहर विधानसभा- इस बार के चुनाव की सबसे चर्चित विधानसभा सीट है गोरखपुर शहर। कारण है कि खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। योगी आदित्यनाथ, मठ और भारतीय जनता पार्टी के लिए यह सीट अभेद किले जैसी है। पिछले 33 वर्षों से यह विधानसभा सीट मठ के प्रभाव में हैं।

2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर डॉक्टर राधा मोहन दास अग्रवाल ने 60,000 से अधिक वोटों के अंतर से चुनाव जीता था। इस सीट पर भाजपा और योगी आदित्यनाथ की मजबूती को इस तथ्य से समझिए कि सभी प्रत्याशियों को मिले कुल मतों से ज्यादा भाजपा के इकलौते प्रत्याशी को वोट मिले थे।

2012 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी तब भी इस सीट का समीकरण कुछ ऐसा ही था। वर्तमान समय में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद और समाजवादी पार्टी के टिकट पर भारतीय जनता पार्टी के पूर्व नेता रहे स्वर्गीय उपेंद्र शुक्ला की पत्नी सुभावती शुक्ला चुनावी मैदान में हैं। इस सीट की लड़ाई बड़ी स्पष्ट है। बस चुनाव परिणाम के दिन यह देखना होगा कि विपक्ष कुल कितने प्रतिशत वोट इस सीट पर हासिल करता है।

2- गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा- 2017 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के विपिन सिंह इस विधानसभा सीट से चुनाव जीते थे। योगी आदित्यनाथ के प्रभाव वाली इस सीट पर निषाद पार्टी ने 2017 के चुनाव में 15 फ़ीसदी मत हासिल कर लिए थे। इस वजह से भाजपा के प्रत्याशी महज 4000 वोटों से चुनाव जीत पाए थे।

माना जा रहा है कि निषाद पार्टी के साथ गठबंधन की वजह से भाजपा को इस सीट पर रणनीतिक बढ़त मिल चुकी है। इसलिए जो भी प्रत्याशी भाजपा गठबंधन की तरफ से उतारा जाएगा, वह भाजपा और निषाद पार्टी के संयुक्त ताकत की वजह से चुनाव जीत सकता है। समाजवादी पार्टी की तरफ से पूर्व विधायक विजय बहादुर यादव यहां से मजबूत दावेदारी कर रहे हैं तो वहीं बसपा ने दारा निषाद को पहले ही प्रत्याशी बना दिया है। इस सीट पर निषाद पार्टी के दावे को देखते हुए अभी स्पष्ट कर पाना मुश्किल है कि इस बार यहां से चुनाव कौन लड़ेगा, लेकिन भाजपा को यहां बढ़त निश्चित रूप से दिखाई पड़ रही है।

3- चिल्लूपार विधानसभा- चिल्लूपार विधानसभा सीट गोरखपुर की एक और बेहद चर्चित सीट है। इस सीट से गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ के प्रतिद्वंदी और बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी 22 साल तक लगातार विधायक रहे हैं। 2017 के चुनाव में बसपा के टिकट पर इनके सुपुत्र विनय शंकर तिवारी विधायक बने थे। वर्तमान में तिवारी परिवार समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुका है।

2007 और 2012 में बसपा की राजेश त्रिपाठी ने तिवारी परिवार के वर्चस्व को तोड़ते हुए 2 बार लगातार यहां से चुनाव जीता था। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर राजेश त्रिपाठी ने चुनाव लड़ा और 3300 वोट से चुनाव हार गए। वर्तमान परिस्थितियों में निषाद पार्टी के साथ आ जाने से चिल्लूपार विधानसभा सीट पर भी भाजपा खुद को बेहतर स्थिति में बता रही है। लेकिन विनय शंकर तिवारी के साथ समाजवादी पार्टी का वोट जुड़ना उन्हें मुख्य लड़ाई में बनाए रखेगा। हालांकि इस सीट पर पूरी लड़ाई प्रत्याशियों की सूची आने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगी।

4- बांसगांव विधानसभा- यह सीट विधानसभा में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के विमलेश पासवान ने बसपा के धर्मेंद्र कुमार को पराजित कर जीत हासिल किया था। डॉक्टर विमलेश पासवान बांसगांव लोकसभा से भाजपा सांसद कमलेश पासवान के सगे भाई है। स्थानीय स्तर पर विमलेश पासवान के खिलाफ नाराजगी है और संभावना जताई जा रही है कि भाजपा किसी नए प्रत्याशी को इस सीट से मौका दे सकती है।

यह विधानसभा सीट कभी कांग्रेस के बड़े नेता रहे महावीर प्रसाद के लिए भी जानी जाती थी। वह यहां से सांसद रहे और केंद्र में मंत्री भी रहे थे। उनकी बात इस सीट पर पासवान परिवार का वर्चस्व बढ़ता गया। कमलेश पासवान की मां भी इस सीट से चुनाव लड़ चुकी है। 2012 के विधानसभा चुनाव में कमलेश पासवान की माँ सुभावती पासवान बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ी थी और तीसरे स्थान पर रही थी। सपा अगर यहां से मजबूत प्रत्याशी देती है तो चुनाव कठिन हो जाएगा।

5- चौरी-चौरा विधानसभा- इतिहास में चौरी चौरा का नाम खुब खंगाला जाता है। इसी जगह पर 1922 में ऐतिहासिक चौरी-चौरा कांड हुआ था। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर संगीता यादव ने यहां से चुनाव जीता था। यह सीट भाजपा की बड़ी जीतों में से एक थी।

यहां से भाजपा प्रत्याशी ने सपा, बसपा और कांग्रेस के कुल वोटों से ज्यादा मत हासिल किया था। यह सीट 2012 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई है। इससे पहले इस सीट को मुंडेरा बाजार के नाम से जानी जाती थी। आंकड़ों के मुताबिक इस सीट पर बड़ी आबादी में पिछड़े मतदाता बताए जाते हैं।

इसलिए 2017 के विधानसभा चुनाव में सभी प्रमुख पार्टियों ने पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों को यहां से मैदान में उतारा था। हाल ही में भारतीय जनता पार्टी ने महिला मोर्चा के राष्ट्रीय मंत्री के रूप में यहां की स्थानीय विधायक को मनोनीत किया है, इसलिए ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि संगीता यादव ही भाजपा के टिकट पर यहां से चुनाव दोबारा लड़ सकती है।

6- खजनी विधानसभा- खजनी नाम भरोहिया के प्राचीन शिव मंदिर के लिए जाना जाता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में यह सीट भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इस विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी 2012 से ही चुनाव जीत रही है। 2012 और 2017 में भारतीय जनता पार्टी की तरफ से संत प्रसाद ने यहां अपने विरोधियों को मात दी है।

दलित बाहुल्य इस सीट पर बसपा पिछले दो बार से दूसरे स्थान पर आ रही है। इस बार भी मुकाबला भाजपा बनाम बसपा का ही बताया जा रहा है, लेकिन अगर सपा दलित उम्मीदवार लाती है तो मामला त्रिकोण में बदल जाएगा। यह विधानसभा सीट योगी आदित्यनाथ के सीधे प्रभाव की बताई जाती है और इसलिए बसपा का मूल वोटर भी बीजेपी के पक्ष में हमेशा से मतदान करता रहा है। इस सीट पर भाजपा की एक मजबूती इसके प्रत्याशी संत प्रसाद का व्यक्तिगत जनाधार है।

7- सहजनवा विधानसभा- यह विधानसभा सीट गोरखपुर शहर के नजदीक है। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के शीतल पांडे ने बसपा के देव नारायण सिंह को 15,000 से अधिक वोटों से चुनाव हराया था। शीतल पांडे आपातकाल के दौरान की नेता है और गोरखपुर विश्वविद्यालय से छात्र संघ चुनाव भी जीत चुके है।

सीएम योगी के करीबी माने जाने वाले शीतल पांडे इस बार भी इस विधानसभा सीट से मजबूत दावेदार बताए जा रहे हैं। 1977 से ही इस विधानसभा सीट पर किसी दल या प्रत्याशी ने दो बार लगातार चुनाव नहीं जीता है। पिछले 4 विधानसभा चुनाव में 2 बार तो इस विधानसभा सीट से निर्दल प्रत्याशी चुनाव जीते चुके हैं। इस बार यहां देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस सीट का तिलिस्म टूट पाता है।

8- पिपराइच विधानसभा- योगी आदित्यनाथ की करीबी महेंद्र पाल सिंह 2017 में पहली बार बीजेपी के टिकट पर यहां से विधायक बने हैं। उन्होंने बसपा के आफताब आलम को चुनाव हराया था। सन 1991 के बाद भारतीय जनता पार्टी 27 सालों का अपना वनवास इस सीट पर खत्म कर पाई थी।

इस बार के चुनाव में यह सीट भारतीय जनता पार्टी के लिए मुफीद बताई जा रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस सीट का जाति समीकरण निषाद जाति के बहुमत का है। निषाद जिसके साथ भी रहे हैं वह चुनाव जीता है। 2007 और 2012 में भी यहां से निषाद प्रत्याशी चुनाव जीते थे। गठबंधन के बाद यह सीट भाजपा के पाले से निषाद पार्टी को जा सकती है। यह सीट एक वक्त में कांग्रेस पार्टी की गढ़ हुआ करती थी। सन 1993 से लेकर सन 2002 तक यहां से कांग्रेस के जितेंद्र कुमार जयसवाल विधायक रहे हैं।

9- कैंपियरगंज विधानसभा- 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के बेटे फतेह बहादुर सिंह ने भाजपा के टिकट पर यहां से चुनाव जीता था। इससे पहले फतेह बहादुर सिंह 2007 में बसपा के टिकट पर भी यहां से चुनाव जीतकर मायावती सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इस विधानसभा सीट पर 40 फ़ीसदी निषाद मतदाता है। इसलिए संभावना जताई जा रही है कि इस सीट पर भी भाजपा की सहयोगी दल निषाद पार्टी चुनाव लड़ेगी। वर्तमान परिस्थितियों में भारतीय जनता पार्टी के लिए यह सीट आसान बताई जा रही है।

Divyanshu Rao

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