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UP Election 2022: गोरखपुर से रावण जीत-हार के लिए लड़ रहे या खुद की पहचान के लिए, आइये जानें क्या कहते हैं लोग

UP Election 2022: आखिर रावण गोरखपुर में योगी के खिलाफ लड़कर हासिल क्या करना चाहते हैं? रावण का एजेंडा क्या है? यदि उन्हें लड़ना ही था तो सपा से गठबंधन कर यहां क्यों नहीं उतरे? लोगों के जेहन में जीत-हार को छोड़कर सारे तरह के सवाल उठ रहे हैं।

Purnima Srivastava
Published on: 20 Jan 2022 6:34 PM IST
Chandrashekhar Azad Gorakhpur assembly seat
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Chandrashekhar Azad Gorakhpur assembly seat

UP Election 2022 Gorakhpur: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) के खिलाफ भीम आर्मी (Bhim Army) के अध्यक्ष चन्द्रशेखर आजाद 'रावण' (Chandrashekhar Azad 'Ravana') के चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तैर रही हैं कि आखिर रावण गोरखपुर में योगी के खिलाफ लड़कर हासिल क्या करना चाहते हैं? रावण का एजेंडा क्या है? यदि उन्हें लड़ना ही था तो सपा से गठबंधन कर यहां क्यों नहीं उतरे? लोगों के जेहन में जीत-हार को छोड़कर सारे तरह के सवाल उठ रहे हैं।

भाजपा (BJP) ने गोरखपुर शहर सीट (Gorakhpur Assembly Constituency Election) से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का टिकट फाइनल किया है। अभी सियासी गलियारे में चार बार के विधायक डॉ.राधा मोहन दास अग्रवाल के कदम को लेकर अटकले लग रही थीं, इसी बीच आजाद समाज पार्टी (Azad Samaj Party) के सुप्रीमो के लड़ने की घोषणा ने सभी को चकित कर दिया है।

योगी के दलित विरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ा हूं और अब भी लड़ूंगा- चन्द्रशेखर

टिकट की घोषणा के बाद चन्द्रशेखर ने कहा कि पिछले 5 साल से योगी के दलित विरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ा हूं और अब भी लड़ूंगा। हालांकि रावण की उम्मीदवारी को स्थानीय लोग हजम नहीं कर पा रहे हैं। युवा साहित्यकार अमित कुमार कहते हैं कि 'रावण का गोरखपुर से लड़ना साफ संदेश है कि वे जीत-हार के लिए चर्चा में रहने के लिए मैदान में आना चाहते हैं। वे पोस्टर ब्वाय बनना चाहते हैं, या यूं कहें मीडिया की सुर्खियों में रहना चाहते हैं। यदि उन्हें योगी के खिलाफ संजीदगी से लड़ना था तो सपा के साथ समझौता कर लड़ना चाहिए। दो सीट तो उन्हें मिल ही रही थी।

सपा को गोरखपुर से लड़ने पर कोई आपत्ति भी नहीं होती। लोहिया भी जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ लड़े, मायावती तब के दिग्गज राम विलास पासवान के खिलाफ लड़ीं, केजरीवाल भी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से लड़े। सभी का कोई संदेश था। लेकिन यहां कोई संदेश छिपा नजर नहीं आ रहा है।'साहित्यकार देवेन्द्र आर्य कहते थे कि 'गोरखपुर से रावण के चुनाव लड़ने की घोषणा ने कई भ्रम तोड़ दिये। इन्हें युवा तुर्क समझा जा रहा था लेकिन अब साफ है कि ये खुद की सेल वैल्यू बढ़ाने के लिए बेचैन हैं।'

आर्य कहते हैं कि 'ये इलेक्शन कई मायनों में महत्वपूर्ण है। इस इलेक्शन के बाद मायावती की सियासत खत्म होने जा रही हैं। रावण भी आखिरी पहचान के लिए तड़प रहे हैं। वे अपनी बिरादरी की दलाली कर रहे हैं।' वहीं भाजपा से करीबी रखने वाले डॉ.संजय श्रीवास्तव कहते हैं कि 'विपक्ष पूरी तरह सरेंडर की भूमिका में दिख रहा है। उसके पास योगी के करिश्मे को बेअसर करने के लिए कोई योजना नहीं हैं।'

सदर सीट पर सिर्फ 20 से 25 हजार दलित

मौजूदा वक्त में गोरखपुर सदर सीट पर करीब साढ़े चार लाख मतदाता हैं। जातीय समीकरण (caste equation) की बात की जाए तो इस सीट पर करीब 45 हजार से अधिक कायस्थ मतदाता हैं, जबकि 60 हजार ब्राह्मण हैं। यहां 15 हजार क्षत्रिय और 30 हजार के लगभग मुस्लिम मतदाता हैं। इसके अलावा वैश्य मततदाता की संख्या भी 50 हजार से ज्यादा है। निषाद 35 हजार, दलित 20 हजार तो यादव 15 हजार बताए जाते हैं। इस जातीय समीकरण के बीच रावण कुछ कर सकेंगे संभव नहीं दिखता है।

अगस्त में गोरखुपर आए थे रावण, गोरक्षपीठ के दरवाजे पर धरना देने की दी थी चेतावनी

चन्द्रशेखर 7 अगस्त 2021 को गोरखपुर आए थे। तब उन्होंने अनीष कन्नौजिया और यूनिवर्सिटी छात्रा प्रियंका की हत्या के मामले में गोरखपुर से आवाज बुलंद की थी। तब उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि मुझे दलित परिवारों से मिलने से रोका जा रहा है। बस्ती और संतकबीर नगर के बाद गोरखपुर बॉर्डर पर रोकने की कोशिश हुई। मैं दलितों के न्याय की बात करता है। राजनीति मेरे जूते के नोक पर है। योगीराज में दलित अपनी जान की भीख मांग रहा है।

अनीष कन्नौजिया का परिवार पिछले छह महीने से जान की भीख मांग रहे थे। दलित परिवार को न्याय नहीं मिला तो अंतिम सांस तक यहीं गोरक्षपीठ के दर पर अनशन करुंगा। तब रावण ने कहा था कि यूपी में गाय की हत्या पर डीएम से लेकर एसएसपी तक पहुंच जाते हैं, लेकिन दलित युवक को भेड़-बकरी की तरह काट डाला गया। यूपी में 11924 दलितों की हत्याएं हो चुकी हैं। यूपी में हर चौथी हत्या दलित की हो रही है। अन्य जातियों के लोगों को भले ही न्याय मिल रहा हो लेकिन दलित परिवारों का उत्पीड़न हो रहा है।

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