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Kushinagar Ka Itihaas: कुशीनगर के बारे में जानें सबकुछ, कैसे एक डीएम की जिद से जिंदा हुई हिरण्यावती नदी, 'कुशीनारा' से कुशीनगर का सफर
Kushinagar Ka Itihaas: कुशीनगर का ऐतिहासिक (Kushinagar History) महत्व है। इस जगह से न केवल बुद्ध बल्कि भगवान राम का भी रिश्ता जुड़ा हुआ है।
Kushinagar Ka Itihaas: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के कुशीनगर (Kushinagar) में पीएम नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) द्वारा इंटरनेशनल एयरपोर्ट (International Airport) के लोकार्पण के साथ ही भगवान बुद्ध (Buddha Kushinagar) का परिनिर्वाण स्थल दुनिया भर में फैले बौद्ध अनुयायियों की जद में आ गया है। अब बौद्ध धर्म से जुड़े आस्थावान ही नहीं भगवान बुद्ध के विचारों (Buddha Ke Vichar) से सहमति रखने वालों के लिए भी कुशीनगर एक धार्मिक टूरिस्ट स्थल के रूप में अहम होने वाला है।
कुशीनगर का ऐतिहासिक (Kushinagar History) महत्व है। कभी कुशीनारा (Kushinara) के नाम से पहचान रखने वाला कैसे कुशीनगर हो गया। कैसे एक कलेक्टर रिग्जियान सैंफिल (Rigzin Samphel) की जिद से मरी हुई हिरण्यावती नदी (Hiranyavati River) जिंदा हुई? भगवान राम (Shree Ram) जनकपुर में मां सीता संग विवाह (Ram Sita Vivah) के बाद किस रास्ते से अयोध्या गए थे? किस अंग्रेज की खुदाई से बौद्ध धर्म (Buddhism) के अवशेष मिले थे? सब कुछ सैलानी नजदीक से देख सकेंगे।
कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण मंदिर (Mahaparinirvana Stupa Temple) में भगवान बुद्ध की 6.1 मीटर ऊंची मूर्ति लेटी हुई मुद्रा में रखी है। 80 वर्ष की आयु में भगवान बुद्ध ने यहीं पार्थिव शरीर को छोड़ दिया था। भगवान बुद्ध की यह लेटी हुई मूर्ति को लाल बलुआ पत्थर के एक ही टुकड़े से बनी है। इस मूर्ति में भगवान को पश्चिम दिशा की तरफ देखते हुए दर्शाया गया है, यह मुद्रा, महापरिनिर्वाण के लिए सही आसन (Mahaparinirvana Asan) माना जाता है। इस मूर्ति को एक बड़े पत्थर वाले प्लेटफॉर्म के लिए कोनों पर पत्थरों के खंभे पर स्थापित किया गया है। इस प्लेटफॉर्म पर भगवान बुद्ध के एक शिष्य हरिबाला ने 5 वीं सदी में एक शिलालेख बनवाया था। इस मंदिर में हर साल, पूरी दुनिया से हजारों पर्यटक और तीर्थयात्री भारी संख्या में आते है।
मल्ल राजाओं की राजधानी थी 'कुशीनारा'
प्राचीन काल में कुशीनगर सैथवारमल्ल वंश (Sainthwar Malla Vandh) की राजधानी तथा 16 महाजनपदों में एक था। मल्ल राजाओं की यह राजधानी तब 'कुशीनारा' के नाम से जानी जाती थी। ईसापूर्व पांचवी शताब्दी के अन्त तक या छठी शताब्दी की शुरूआत में यहां भगवान बुद्ध का आगमन हुआ था। कुशीनगर में ही उन्होंने अपना अंतिम उपदेश देने के बाद महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया था। चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहियान के यात्रा वृत्तातों में भी इस प्राचीन नगर का उल्लेख मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह स्थान त्रेता युग में भी आबाद था। यह पुरुषोत्तम भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी थी, जिसके चलते इसे 'कुशावती' (Kusavati) नाम से जाना गया।
अंग्रेज जनरल ने कराई थी खुदाई
अंग्रेज जनरल ए.कनिंघम और एसीएल कार्लाइल के प्रयास से 1861 में इस स्थान की खुदाई हुई। खुदाई में छठी शताब्दी की बनी भगवान बुद्ध की लेटी प्रतिमा मिली थी। इसके अलावा रामाभार स्तूप और और माथाकुंवर मंदिर भी खोजे गए थे। 1904 से 1912 के बीच इस स्थान के प्राचीन महत्व को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने अनेक स्थानों पर खुदाई करवाई। प्राचीन काल के अनेक मंदिरों और मठों को यहां देखा जा सकता है।
ऐसे हुआ था भगवान बुद्ध का परिनिर्वाण
कुशीनगर के करीब फाजिलनगर कस्बा है। जहां के 'छठियांव' (Chhathiyav) नामक गांव है। मान्यता है कि यहां किसी ने महात्मा बुद्ध को कच्चा मांस खिला दिया था। जिसके कारण उन्हें दस्त की बीमारी हुई। मल्लों की राजधानी कुशीनगर तक जाते-जाते वे निर्वाण को प्राप्त हुए। फाजिलनगर में आज भी कई टीले हैं। जहां गोरखपुर विश्वविद्यालय (Gorakhpur University) के प्राचीन इतिहास विभाग (Department of Ancient History) की ओर से कुछ खुदाई का काम कराया गया है।
फाजिलनगर के पास ग्राम जोगिया जनूबी पट्टी में भी एक अति प्राचीन मंदिर के अवशेष हैं। जहां बुद्ध की अतिप्रचीन मूर्ति खंडित अवस्था में पड़ी है। गांव वाले इस मूर्ति को 'जोगीर बाबा' कहते हैं। जोगिया गांव के जागरूक लोग 'लोकरंग सांस्कृतिक समिति'´ के नाम से जोगीर बाबा के स्थान के पास प्रतिवर्ष मई माह में 'लोकरंग'´ कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
कुशीनगर के रास्ते ही सीता संग विवाह के बाद वापस लौटे थे भगवान राम
कुशीनगर से भगवान राम का भी रिश्ता (Kushinagar Se Ram Ka Rishta) जुड़ता है। मान्यता है कि भगवान राम जनकपुर में सीता संग विवाह के बाद इसी रास्ते जनकपुर से अयोध्या लौटे थे। उनके पैरों से रमित धरती पहले पदरामा (Padrama) और बाद में पडरौना (Padrauna) के नाम से जानी गई। जनकपुर से अयोध्या लौटने के लिए भगवान राम और उनके साथियों ने पडरौना से दस किलोमीटर पूरब से होकर बह रही बांसी नदी (Bansi River) को पार किया था। आज भी बांसी नदी के इस स्थान को 'रामघाट' (Ramghat) के नाम से जाना जाता है। बांसी नदी के इस घाट को स्थानीय लोग इतना महत्व देते हैं कि 'सौ काशी न एक बांसी' की कहावत ही बन गई है।
डीएम की जिद में जिंदा हुई गंगा की तरह पवित्र हिरण्यावती नदी
जिस प्रकार हिंदुओं की आस्था गंगा नदी में है, उसी तरह बौद्ध धर्म के लोगों के लिए हिरण्यावती नदी है। जिम्मेदारों की उपेक्षा के चलते यह नदी मृत प्राय: हो गई थी। वर्ष 2012 में तत्कालीन जिलाधिकारी रिग्जियान सैंफिल ने इस नदी को पुनर्जिवित करने का संकल्प लिया। अब इस नदी में साल के 12 महीने पानी रहता है।
वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश द्विवेदी बताते हैं कि "पानी की कमी व अतिक्रमण के चलते वजूद खो चुकी इस नदी की नए सिरे से तलाश डीएम की पहल पर शुरू हुई तो स्थानीय लोगों का भी साथ मिला। राजस्व, सिंचाई, बाढ़ खंड व कसाडा ने मिलकर इस नदी को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू किया।"
इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि बौद्धकालीन मल्ल गणराज्य की राजधानी कुशीनारा (कुशीनगर का प्राचीन नाम) हिरण्यावती नदी के तट पर स्थित था। बुद्ध चरित के अनुसार, हिरण्यावती नदी का जल पीकर ही तथागत बुद्ध ने बौद्ध भिक्षुओं को अंतिम उपदेश दिया था। इसी नदी के किनारे तथागत बुद्ध को महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था। राजस्व अभिलेख दस्तावेज के मुताबिक, इस नदी का उद्गम रामकोला ब्लॉक के सपहां गांव के ताल को माना गया है। इस नदी की लंबाई अभिलेखों के अनुसार 49.370 किमी है। कुशीनगर से आगे बढ़ने पर कुड़वा दिलीपनगर गांव में घाघी नदी से मिलती है। घाघी नदी आगे छोटी गंडक में जाकर मिलती है। तथागत बुद्ध का परिनिर्वाण हिरण्यावती नदी के तट पर हुआ था, जहां अब रामाभार स्तूप है।
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