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UP Election 2022: रामकोला सुरक्षित विधानसभा सीट पर भाजपा-सुभासपा की सीधी लड़ाई में भगवा दल के लिए मुश्किल हो सकती है डगर

UP Election 2022: वर्तमान में इस सीट पर 2017 में बीजेपी की सहयोगी रही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) का कब्जा है। सुभासपा के रामानंद बौद्ध यहाँ से विधायक हैं।

Rakesh Mishra
Report Rakesh MishraPublished By Divyanshu Rao
Published on: 10 Feb 2022 11:22 AM GMT
UP Election 2022
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यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो:न्यूज़ट्रैक)

UP Election 2022: कुशीनगर जिले की रामकोला विधानसभा सीट जिले की एक महत्वपूर्ण सीट है। पिछले दो चुनाव से यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। गन्ने की राजनीति से जुड़ा यह विधानसभा कुशीनगर के पिछड़े क्षेत्रों में आता है। यहाँ अभी भी कई जगहों पर मूलभूत सुविधाओं का अभाव देखा जा सकता है।

वर्तमान में इस सीट पर 2017 में बीजेपी की सहयोगी रही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) का कब्जा है। सुभासपा के रामानंद बौद्ध यहाँ से विधायक हैं। नए परिसीमन के बाद वर्ष 2012 में रामकोला विधानसभा सीट सामान्य से अनुसूचित सीट के रूप में आरक्षित कर दी गई। उसके बाद से ही यहाँ पहले के सारे समीकरण बदल गए। इस सीट पर छठे चरण में 3 मार्च को मतदान होना है।

क्या रहा है सीट का इतिहास

इस सीट पर बसपा को छोड़ सभी पार्टियों ने जीत दर्ज की है। बसपा का यहाँ से अभी तक खाता नहीं खुला है। 2012 में सुरक्षित होने के बाद इस सीट से सपा के डॉक्टर पूर्णमासी देहाती विधायक चुने गए। 2017 में डॉक्टर पूर्णमासी देहाती को सुभासपा के रामानंद बौद्ध के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा। उस चुनाव में रामानंद बौद्ध ने पूर्णमासी देहाती को 55729 वोटों के एक बड़े मार्जिन से हराया था। रामकोला विधान सभा गन्ने की राजनीति से जुड़ा माना जाता है।

इस सीट पर कभी प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री रहे और गन्ना किसानों की समस्याओं को लेकर संघर्ष करने वाले किसान नेता राधेश्याम सिंह का अच्छा प्रभाव माना जाता है। राधेश्याम सिंह को यहां की जनता ने 1996 में निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनकर विधानसभा में भेजा था। इस सीट से 1962 और 1967 में कांग्रेस के टिकट से दो बार राजदेव ने जीत हासिल की। 1969 में मंगल उपाध्याय तो 1974 और 1977 में जनता पार्टी से बांकेलाल लगातार दो बार जीत कर विधान सभा पंहुचे।

1980 और 1985 में यह सीट फिर कांग्रेस के झोली में आ गिरी और यहाँ कांग्रेस प्रत्याशी सुग्रीव सिंह को विधानसभा में जाने का अवसर मिला। वर्ष 1989 में जनता दल के टिकट पर मदन गोविंद राव यहां से विधायक बने। 1991 में पहली बार यहाँ भाजपा का खाता खुला और भाजपा प्रत्याशी अंबिका सिंह यहाँ से विधान सभा पंहुचे।

1993 के चुनाव में अंबिका सिंह भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे और जीत हासिल की। राधेश्याम सिंह ने यहाँ से दो बार 1996 और 2002 में जीत दर्ज की। 2007 में इस सीट पर एक बार फिर भगवा लहराया और भाजपा के यशवंत सिंह यहाँ से विजयी हुए। 2012 के चुनाव में आरक्षित होने के बाद इस सीट पर सपा पूर्णमासी को जीत मिली। 2017 के चुनाव में भाजपा- भासपा सुहेल देव गठबंधन के रामानंद बौद्ध को जीत हासिल हुई।

कौन-कौन है इस बार प्रत्याशी

भाजपा-विनय गौंड

सुभासपा-पूर्णमासी देहाती

बसपा-विजय कुमार

कांग्रेस : शम्भू चौधरी

गन्ना रहा है यहाँ मूल मुद्दा

गन्ना यहाँ की राजनीति के केंद्र में हमेशा ही रहा है। यहाँ के सभी जनप्रतिनिधियों ने गन्ना किसानों की समस्याओं के निराकरण का वादा तो किया लेकिन वो वादा ही रह गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि बाढ़ और जलजमाव के कारण उनके गन्ने साल दर साल बर्बाद हो जाते हैं। चूँकि गन्ने की फसल कृषि बीमा के अंतर्गत भी नहीं आती इसलिए उनको इसका एक रुपया भी मुआवजा नहीं मिलता है। सरकार भी इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। कभी इस क्षेत्र में अकेले तीन-तीन चीनी मिलें हुआ करती थी। मायावती शासन काल में उन्हें औने पौने दाम पर बेच दिया गया। इस बीच जो शुगर फैक्ट्री बन भी गयी वो चली नहीं।

क्या हैं इस बार के समीकरण?

भाजपा ने इस बार पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष विनय गौंड को मैदान में उतारा है। विनय गौंड इलाके में बड़ा प्रभाव रखने वाले प्रदीप जायसवाल के आदमी हैं। उन्ही के प्रभाव से गौंड को टिकट भी मिला है। प्रदीप जायसवाल का एक दशक से जिला पंचायत की कुर्सी पर कब्ज़ा है। हालांकि स्थानीय लोगों विशेष कर भाजपा में ही अंदरखाने विनय गौंड को बाहरी बता कर विरोध हो रहा है। विनय मूलतः फाजिलनगर के रहने वाले हैं। इसलिए उनको स्थानीय लोग ठीक से पचा नहीं पा रहे हैं। वैसे तो सपा के प्रत्याशी पूर्व विधायक पूर्णमासी देहाती भी मूलतः बाहर के ही रहने वाले हैं।

यूपी विधानसभा चुनाव की प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो:न्यूज़ट्रैक)

लेकिन बीते एक दशक से उन्होंने अपना घर बार यहीं बना लिया है। इसलिए गौंड के मुकाबले उन्हें स्थानीय माना जा रहा है। जातीय आंकड़ों के हिसाब से इस विधानसभा सीट को देखें तो सैंथवार क्षत्रिय, मुस्लिम और हरिजनों की निर्णायक भूमिका रहती है। इस बार इस सीट पर सीधा मुकाबला भाजपा और सपा गठबंधन के प्रत्याशी के बीच है।

गन्ना किसानों का रुख बहुत कुछ इस सीट पर निर्णायक भूमिका का निर्वहन करेगा। बीते चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर सुभासपा के टिकट पर रामानंद बौद्ध तो विधान सभा पंहुच गए लेकिन इस बार भाजपा की डगर आसान नहीं दिखती है। सुभासपा का इस बार सपा से गठबंधन है और उन्हें पूर्व विधाय क पूर्णमासी देहाती के रूप में जोरदार उम्मीदवार भी मिला है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस सीट पर ऊंट किस करवट बैठता है।

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Divyanshu Rao

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