TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

Akhil Bharatiya Akhada Parishad : संतों की सूची को लेकर अखाड़ा परिषद पर चौतरफा हमले

Akhil Bharatiya Akhada Parishad : अखाड़ा परिषद के अध्‍यक्ष महंत नरेंद्र गिरि पर चौतरफा हमले हो रहे। हरियाणा, पंजाब, हरिद्वार, काशी, मथुरा-वृंदावन आदि तीर्थ स्‍थलों और स्‍थानों के प्रमुख संत अखाड़ा परिषद के इस निर्णय के दर ख़िलाफ़ हैं।

RB tripathi
Written By RB tripathiPublished By Vidushi Mishra
Published on: 20 Sept 2021 9:54 PM IST
akhil bharatiya akhada parishad
X

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (फोटो- सोशल मीडिया)

Akhil Bharatiya Akhada Parishad : अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने कथितरूप से नकली संतों की सूची क्‍या जारी की, खुद ही कठघरे में खड़ा हो गया है। संत समाज और धर्माचार्य अब कहने लगे हैं कि अखाड़ा परिषद के कुछ लोगों ने अपनी राजनीति चमकाने और स्‍वार्थ साधने के चक्‍कर में दूसरी ओर जो एक अंगुली उठाई है, वह भूल गये कि चार अंगुलियां उनकी ओर स्‍वाभाविक रूप से उठ गई हैं।

अखाड़ा परिषद के अध्‍यक्ष महंत नरेंद्र गिरि पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। हरियाणा, पंजाब, हरिद्वार, काशी, मथुरा-वृंदावन आदि तीर्थ स्‍थलों और स्‍थानों के प्रमुख संत अखाड़ा परिषद के इस निर्णय के दर ख़िलाफ़ हैं।

अखाड़ा परिषद की अनाधिकार चेष्‍टा

कुछ संतों ने तो अखाड़ा परिषद के ही औचित्‍य पर सवाल खड़े कर दिए हैं। धर्माचार्यों का कहना है कि कौन संत हो सकते हैं, कौन नहीं, यह अखाड़ा परिषद कैसे तय कर सकता है? क्‍या किसी संत समाज में अखाड़ा परिषद को इस बात की जिम्‍मेदारी दी है। अखाड़ा परिषद इस बात की ठेकेदारी कब से करने लगा ?

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (फोटो- सोशल मीडिया)

संतों ने सवाल उठाया है कि क्‍या किसी शंकराचार्य ने इस बात का निर्देश दिया है कि सनातन धर्म पर आघात किया जा रहा है इसलिए अखाड़े रक्षा के लिए अमुक अमुक संत को रोकें या उचित कार्रवाई करें।

अगर ऐसा नहीं है तो यह अखाड़ा परिषद की अनाधिकार चेष्‍टा है। हम ऐसी अनर्गल घोषणाओं के खिलाफ हैं। यह फैसला खारिज किया जाता है। हम इस तरह की गलत और असामयिक बातों का पुरजोर विरोध करते हैं। अखाड़ा परिषद पर यह प्रहार उन संतों ने किया जिनकी समाज में बहुत प्रतिष्‍ठा है। उनके लाखों अनुयायी हैं।

अखिल भारतीय दंडी संन्‍यासी प्रबंधन समिति के राष्‍ट्रीय महामंत्री स्‍वामी ब्रह्माश्रम जी महाराज का कहना है कि अखाडा़ परिषद अखाड़े के संतों पर नियंत्रण करने के लिए है, दूसरे संप्रदाय या अखाड़े के बाहर वाले संतों के लिए नहीं। निजी वैमनस्‍य से किसी का निष्‍कासन या फर्जी घोषित करना अखाड़ा परिषद की अनाधिकार चेष्‍टा है।

अगर अखाड़ा परिषद के बाहर के संत कोई गलत काम करते हैं तो उस संप्रदाय का प्रधान उस पर अंकुश लगाने के लिए अधिकृत हैं। अखिल भारतीय संत महासभा के स्‍वामी चक्रपाणि ने तो अखाड़ा परिषद के फैसले को पहले ही खारिज कर दिया है। उनका खारिज करना उचित भी है।

संन्‍यासी और बैरागी अखाड़े के संतों का संघर्ष

अखिल भारतीय दंडी संन्‍यासी प्रबंधन समिति के राष्‍ट्रीय संरक्षक और हरियाणा के नागेश्‍वर धाम पीठाधीश्‍वर स्‍वामी महेशाश्रम ने तो अखाड़ा परिषद पर ही हमला बोल दिया है। उनका कहना है कि पहले अखाड़ा परिषद ही बताए कि क्‍या उसका कोई औचित्‍य है क्‍या।

कुंभ मेला (फोटो- सोशल मीडिया)

अखाड़ा परिषद स्‍वामी करपात्री जी ने 1954 में तब बनवाया था, जब कुंभ मेले में स्‍नान के लिए संन्‍यासी और बैरागी अखाड़े के संत आपस में संघर्ष करते थे। इसे रोकने के लिए यह अस्‍थाई परिषद बनी थी । इसके तहत किसी भी कुंभ मेले से तीन महीने पहले परिषद गठन होना होता था। मेला खत्‍म होते ही भंग हो जाना था। स्‍थाईकरण की व्‍यवस्‍था थी ही नहीं।

यह तो कुछ संतों ने अपना महत्‍व बनाए रखने के लिए अपने मन से इसे स्‍थाई बना दिया। अखाड़ों का काम धर्म पर होने वाले आघातों को शंकराचार्यों के निर्देशन में रोकना है, न कि स्‍वयं फैसले कर लेना। कौन संत है, कौन नहीं, अखाड़ा परिषद यह तय करने वाला कौन होता है? यह सूची अनर्गल घोषणा है। इसे कोई नहीं मानता।

सोहम् संप्रदाय के संत स्‍वामी अच्‍युतानंद महाराज ने कहा कि संत समाज अपने दायित्‍व को स्‍वयं समझता है। हम अपने आपको सही रखें तो किसे समझाने की जरूरत है कि कौन सही है, कौन नहीं। कौन असली, कौन नकली है, यह कोई संस्‍था कैसे तय कर सकती है। अच्‍छा या बुरा घोषित करना अखाड़ा परिषद का काम नहीं। वह अपने अखाड़े की व्‍यवस्‍था देखे, उसी का नियंत्रण करे, यही उचित होगा। समाज को वैसे भी अपनी इच्‍छाओं के अनुरूप काम करने वाले संत ही उचित लगते हैं। संतों को स्‍वयं का आचरण ठीक रखने की जरूरत है।

हरिद्वार के स्‍वामी देव स्‍वरूपानंद महाराज का विचार है कि समाज खुद देख लेता है, तय कर लेता है कि कौन संत है, कौन नहीं। अखाड़ा परिषद की दृष्‍टि से कौन संत है, कौन नहीं, यह तय करना उसका काम नहीं है। अखाड़ा परिषद को इस तरह के फैसले लेने का कानूनी अधिकार भी नहीं है। समाज किसको मानता है, किसको नहीं, यह उस पर निर्भर है।

अखाड़ा परिषद के ही तमाम संतों का स्‍तर कितना गिरा है। अखाड़ा परिषद चाहे तो वहां सुधार करे। समाज में कई तरह के लोग होते हैं। लोग अपने अपने स्‍तर से अच्‍छा बुरा तय करते हैं। दरअसल, कुछ लोग समय पाकर अपनी अपनी राजनीति कर रहे हैं। इस समय अखाड़ा परिषद में यही हो रहा है। संत समाज एक दूसरे की गलतियों को दूर करने की सलाह तो दे सकता है, पर किसी पर कोई फैसला नहीं थोप सकता।

इलाहाबाद के संत को धमकी, मुकदमा लिखाने को दी अर्जी

अखाड़ा परिषद को लेकर उठे विवादों के बीच संयुक्‍त धर्माचार्य मोर्चा के राष्‍ट्रीय संयोजक आचार्य कुशमुनि स्‍वरूप ने इलाहाबाद के सिविल लाइंस थाने में एक अर्जी दी है, जिसमें खुद को जान-माल का खतरा बताते हुए रिपोर्ट दर्ज करने को कहा है। पुलिस ने उनकी अर्जी ले तो ली है । लेकिन उस पर फिलहाल मुकदमा नहीं लिखा है।

आचार्य कुशमुनि का कहना है कि बीते दिनों उनके पास एक फोन आया। फोन करने वाले ने खुद को महंत नरेंद्र गिरि का शिष्‍य और भांजा बताते हुए उन्‍हें धमकाया है कि अगर तुमने नरेंद्र गिरि के खिलाफ कोई बात कही तो तुम्‍हें जान से मार देंगे। इस बारे में महंत नरेंद्र गिरि से उनका पक्ष जानने के लिए संपर्क की कोशिश की गई लेकिन संपर्क नहीं हो सका।

मूल रूप में यह 5 अक्टूबर, 2017 को अखाड़ा परिषद के विवाद के परिप्रेक्ष्य में लिखी गई थी।



\
Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

Next Story