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Prayagraj News: ललिता माता मंदिर में सती का पंजा गिरा था, पांडव ने किया था यहां विश्राम
Prayagraj News: प्रयागराज का ललिता देवी धाम (Lalita Devi Mandir) 51 शक्ति पीठों मे से एक पीठ है। इस पूरे शक्ति पीठ में कुल 5 मन्दिर हैं ।
Prayagraj News: प्रयागराज शहर के बीचों बीच दुर्गा के एक रूप माँ ललिता का एक धाम है (Prayagraj me maa Lalita Devi Mandir) । पुराणों के अनुसार 88 हजार ऋषियों की तपोस्थली में स्थापित आदिशक्ति त्रिपुर सुंदरी जगत जननी ललित माता का मंदिर एक सौ आठ शक्तिपीठों में माना जाता है। यही कारण है कि अमावस्या एवं नवरात्र (Navratri) के अलावा आम दिनों में भी हजारों श्रद्धालु दर्शन-पूजन करने आते हैं। इस आदि शक्ति पीठ का वर्णन देवी पुराण से मिलता है। इसके अनुसार पिता दक्ष से मिले अपमान से आहत होकर जब दक्ष पुत्री ने अपने प्राण उत्सर्ग कर दिये तो सती के वियोग में भगवान शिव ने तांडव (bhagwan shiv tandav) शुरू कर दिया। यह देख भगवान विष्णु ने बाण से सती के शव के 51 भाग कर दिये। सती के शव के अंश जहां गिरे वहीं शक्तिपीठ की स्थापना हो गई। यहां पर सती के दाहिने हाथ का पंजा गिरा ( sati ke hath ka panja) था। भगवान शंकर को हृदय में धारण करने वाली सती नैमिष में लिंगधारिणी नाम से विख्यात हुईं। बाद में इन्हें ललिता देवी के नाम से जाना जाने लगा।
यह है प्रयागराज का ललिता देवी धाम (Lalita Devi Mandir) 51 शक्ति पीठों मे से एक पीठ है। इस पूरे शक्ति पीठ में कुल 5 मन्दिर हैं (kul 5 mandir) । सब से आगे भोले नाथ का मन्दिर (bhole nath mandir) है। हनुमान जी का एक मन्दिर (hanuman mandir) , राम जी का मंदिर (ram mandir) और राम मन्दिर के बगल माँ ललिता की शक्तिपीठ मौजूद है (maa lalita shakti peeth) । इस शक्तिपीठ की कुल लम्बाई (shakti peeth ki lambai)108 फीट की है। मन्दिर के अन्दर देवी के ललित रूप की एक मूर्ति मौजूद है। यह भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक है।
पीपल का पेड़ के नीचे पांडवों ने विश्राम किया था
मन्दिर (Lalita Devi Mandir) के अन्दर एक पीपल का पेड़ है। इसी पेड़ के नीचे पांडवों (Pandava) ने विश्राम किया था, यहीं पर पांडव कूप है जहां पांडवों ने पूजा की थी और जल पिया था। आज भी उस कुएं को पांडव कूप (Pandav koop) के नाम से जाना जाता है। मन्दिर परिसर के अन्दर एक पीपल का पेड़ भी मौजूद है जहां अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त पेड़ के चारों तरफ़ धागा बांधते हैं।
आदि शक्ति पीठ (Lalita Devi Mandir) का वर्णन देवी पुराण से मिलता है। पुराणों के अनुसार सती के शव के विभिन्न अंगों से 51 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ था। इसके पीछे यह कथा यह है कि दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में `बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया। शंकर की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी यज्ञ में भाग लेने गयीं।
यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। इस अपमान से पीड़ित हो, सती ने यज्ञ-अग्नि पुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। भगवान शंकर के आदेश पर उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया और दुःखी हो इधर-उधर घूमने लगे। तदनन्तर जहाँ-जहाँ सती के शव के विभिन्न अंग और आभूषण गिरे, वहाँ 51 शक्ति पीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिवजी को पुनः पति रूप में प्राप्त किया।
51 शक्ति पीठों मे से एक ललिता देवी मंदिर
प्रयागराज का ललिता देवी (Lalita Devi Mandir) का शक्ति पीठ उन्हीं 51 शक्ति पीठों मे से एक है। पुराणों मे यह वर्णन मिलता है की इसी स्थान पर देवी सती के धाहिने हाथ का पंजा गिरा था। माना जाता है की ललिता देवी के इस रूप के दर्शन मात्र से विजय श्री मिलती है।
इस धाम (Lalita Devi Mandir) का वर्णन द्वापर युग मे भी मिलता है, जब पांडव लाक्षा गृह से बच के निकल थे तो इलाहाबाद के इसी धाम मे ही उन्होंने एक रात विश्राम किया था और इसी जगह पे देवी ललिता की स्तुति की थी। आज भी यहाँ वह पांडव कुंड मौजूद है जहा रात भर पांडव रुके थे और इसी कुंड के पानी से उन्होंने स्नान किया था।
ललिता देवी (Lalita Devi Mandir) के इस धाम में हर साल नवरात्र के मौके पर एक विशाल मेला लगता है। देवी के शक्ति पीठ के रूप मे जाना जाने वाले इस धाम में नवरात्र के अलावा भी आम दिनों में लोग यहाँ गाजे -बाजे के साथ आते हैं और रोज़ ही यहाँ शाम को एक विशेष आरती होती है। देवी जागरण तो यहाँ का नियमित हिस्सा है जिसमें शामिल होकर श्रद्धालु आस्था के सागर में गोते लगते हैं। मन्दिर के बाहर पूरे साल मेले जैसा माहौल रहता है। चारों तरफ़ दुकानें सजी रहती हैं।