Prayagraj News: कानपुर की सौम्या तिवारी बनी मैटरनिटी लीव का लाभ पाने वाली पहली छात्रा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला देते हुए कहा कि अंडरग्रैजुएट छात्राओं को भी मातृत्व लाभ मिले इसके लिए जल्द से जल्द नियम बनाने के निर्देश दिए हैं।

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Report Syed RazaPublished By Divyanshu Rao
Published on: 18 Dec 2021 11:17 AM GMT
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मैटरनिटी लीव की प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

Prayagraj News: एपीजे अब्दुल कलाम विश्वविद्यालय से संबंध कानपुर के कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉ‌लाजी (Krishna Institute of Technology) की बीटेक छात्रा सौम्या तिवारी (Soumya Tiwari) को मैटरनिटी लीव का लाभ देते हुए हाईकोर्ट ने चार माह में बी टेक परीक्षा में बैठाने का इंतजाम करने का निर्देश विश्वविद्यालय को दिया है। इस तरह सौम्या तिवारी इस लाभ के लिए जंग लड़ने वाली और यह लाभ पाने वाली पहली छात्रा बन जाएगी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला देते हुए कहा कि अंडरग्रैजुएट छात्राओं को भी मातृत्व लाभ मिले इसके लिए जल्द से जल्द नियम बनाने के निर्देश दिए हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि मातृत्व किसी भी महिला का मौलिक अधिकार है। ऐसे में छात्राओं को भी मातृत्व लाभ पाने का अधिकार है। किसी भी महिला को उसके इस ‌अधिकार और मातृत्व सुविधा देने से वंचित नहीं किया जा सकता।

एपीजे अब्दुल कलाम विश्वविद्यालय से संबंध कानपुर के कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉ‌लाजी की बीटेक छात्रा सौम्या तिवारी की याचिका पर न्यायमूर्ति अजय भनोट ने यह आदेश दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय को याची को चार माह में बी टेक परीक्षा में बैठाने का इंतजाम करने का निर्देश दिया है। याची गर्भवती थी, जिसके कारण वह परीक्षा में नहीं बैठ सकी। विश्वविद्यालय ने मातृत्व लाभ जैसे नियम न होने के आधार पर परीक्षा कराने से इनकार कर दिया।

आपको बता दे याचिकाकर्ता सौम्या तिवारी ने कानपुर के कृष्णा इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मैं वर्ष 2013-14 के सत्र में बीटेक इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन पाठ्यक्रम में दाखिला लिया हालांकि उसने सभी सेमिस्टर को सफलतापूर्वक पास किये लेकिन तीसरे सेमेस्टर के दौरान कुछ परीक्षाओं में वह शामिल नहीं हो सकी। गर्भवती होने व बच्चे को जन्म देने के बाद सौम्या रिकवरी के चलते परीक्षा में शामिल नहीं हो सकी। जिसकी वजह से उसका कोर्स पूरा नहीं हुआ था। उसने विश्वविद्यालय में अतिरिक्त अवसर देने की मांग भी की थी जिसे विश्वविद्यालय ने नामंजूर कर दिया था।

मैटरनिटी लीव की प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

इसके बाद सौम्या ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पूरे मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अंडर ग्रेजुएट छात्र के मातृत्व लाभ के लिए जल्द से जल्द नियम बनाने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि विश्वविद्यालय छात्राओं को मातृत्व लाभ देने से मना नहीं कर सकता है। ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 14,15, (3) और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

न्यायमूर्ति अजय मनोज ने याची को बीटेक के द्वितीय व तृतीय सेमेस्टर के 2 प्रश्न पत्रों में सम्मानित होने के लिए अतिरिक्त अवसर देने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में तीन बिंदुओं को तय किया है। पहला यह कि क्या एक महिला का बच्चे को जन्म देने का अधिकार मौलिक अधिकार है। दूसरे यह कि क्या एक छात्रा को मातृत्व संबंधी लाभ देने से इस आधार पर इनकार किया जा सकता है कि इस संबंध में कोई नियम नहीं है और तीसरा यह कि याची किस तरह का मातृत्व लाभ पाने की अधिकारी है और इसे किस स्तर पर दिया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि छात्रा को भी मातृत्व लाभ और सुविधाएं पाने का मूल अधिकार है। कोई भी संस्था इससे इंकार नहीं कर सकती। केंद्र और राज्य सरकार ने इसके पक्ष में बहस की।

Divyanshu Rao

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