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मनरेगा में होते हैं 260 तरह के कार्य, फिर साहब व प्रधानों को क्यों रास आ रहा इंटरलॉकिंग और पशुशेड

Sant Kabir Nagar News Today: जिले की ग्राम पंचायतों में पशुशेड और इंटरलॉकिंग सड़क के निर्माण की ही धूम मची है। मनरेगा की पक्की परियोजनाओं में ये दोनो कार्य अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों की पहली पसंद साबित हो रहे हैं।

Amit Pandey
Report Amit PandeyPublished By Shreya
Published on: 5 Dec 2021 7:43 AM GMT
मनरेगा में होते हैं 260 तरह के कार्य, फिर साहब व प्रधानों को क्यों रास आ रहा इंटरलॉकिंग और पशुशेड
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इंटरलॉकिंग सड़क (फोटो साभार- सोशल मीडिया)  

Sant Kabir Nagar News Today: तो क्या मनरेगा (MGNREGA) जिले के जिम्मेदार अधिकारियों और कार्यदाई संस्थाओं के हाथ की कठपुतली बन गई है? जिले में मनरेगा योजना (MGNREGA Yojana) के संचालन की बिखरी तस्वीर देख तो कुछ ऐसा ही प्रतीत होता नजर आ रहा है। जी हां मनरेगा एक्ट (MGNREGA Act) के अनुसार, मनरेगा के तहत सामूहिक और व्यक्तिगत क्षेत्र में कुल 260 तरह की परियोजनाओं पर कार्य संचालित कराए जा सकते हैं। फिर भी जिले की ग्राम पंचायतों में पशुशेड और इंटरलॉकिंग सड़क के निर्माण की ही धूम रहती है। मनरेगा की पक्की परियोजनाओं में ये दोनो कार्य अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों की पहली पसंद साबित हो रहे हैं।

सूत्रों की माने तो मनरेगा में लूट तंत्र की ललक इसकी सबसे बड़ी वजह साबित हो रही है। विकास खंड वार मनरेगा की पक्की परियोजनाओं पर गौर करें तो इंटरलॉकिंग सड़कों (Interlocking Road) और पशुशेडों की भरमार नजर आती है। ग्रामीणों का दावा है कागजों में तैयार पशुओं के आशियाने धरातल पर या तो हैं ही नहीं या फिर पुराने पशु घरों को नया दिखा कर भुगतान ले लिया गया है। जिसके चलते जहां ग्राम प्रधानों को मोटा मुनाफा हासिल हो जाता है वहीं निगहबानी की जिम्मेदारी उठाने वाले साहबों की भी पौ बारह हो जाती है।

क्यों रास आ रहा इंटरलॉकिंग सड़कों का निर्माण

इंटरलॉकिंग सड़कों के निर्माण की मनरेगा योजना से बढ़ी चाहत के पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। सूत्र बताते हैं की इस सड़क के निर्माण में लगने वाली ईंट की कीमत एस्टीमेट में 20 से 22 रुपए तक दिखाई जाती है जबकि सड़क निर्माण में 10 से 12 रुपए प्रति ईंट की दर से मिलने वाली ईंट लगा दी जाती है। इतना ही नहीं कहीं कहीं तो इंटरलॉकिंग सड़क के नीचे गिट्टियों का बेस भी नहीं दिया जाता है। इतना ही नहीं एस्टीमेट में इंटरलॉकिंग ईंट के साइज में खेल होना आम बात है।

ऐसा नहीं है की कार्यदायी संस्थाओं का ये खेल अधिकारियों के दूरदर्शी नजरों की पकड़ में नहीं आता है। लेकिन इन दूरदर्शी नजरों पर कमीशन की चाशनी से लबरेज पर्दा डाल कर सब कुछ आल इस वेल कर दिया जाता है। पिछले दिनों जिले के दक्षिणी छोर पर स्थित एक विकास खंड में कमीशन की चाशनी वाले परदे को लेकर जिले के जिम्मेदार अधिकारियों के बीच हुई गरमागरम बहस की चर्चा भी फिजाओं में खूब तैर रही है।

विभागीय सूत्रों की माने तो दिवाली के समय पक्की परियोजनाओं के हुए भुगतान का वारा न्यारा तो तभी हो गया था लेकिन बाद में जब जिले के एक जिम्मेदार साहब को इन पक्की परियोजनाओं के खेल की जानकारी हुई तो उनकी भी डिमांड का स्थानीय साहब तक फरमान पहुंच गया। जिसको लेकर साहबों में ही तकरार की खबरें आम होने लगी। ऐसे में मनरेगा एक्ट में अनुमन्य सभी 260 कार्यों का संचालन होना मुश्किल नजर आ रहा है।

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Shreya

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