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Vidhansabha Election 2022 : बदलते जमाने के साथ बदलता गया चुनावी प्रचार
Vidhansabha Election 2022 : बदलते जमाने के साथ चुनाव प्रचार का तरीका भी बदल चुका है।
Vidhansabha Election 2022 : बदलते जमाने में बदल गया चुनाव प्रचार का तरीका, जहां किसी बड़े नेता के कार्यक्रम की जानकारी होने पर पूरा गांव अपने घरों मे ताला लगा कर चुनावी जन सभा में उनके भंषणों को सुनने के लिए पैदल या बैलगाड़ी से पहुंच जाते थे। यह बातें अपने उम्र का शतक पूरा कर चुके ज़िले के भनवापुर ब्लाक क्षेत्र के पंड़िया गांव निवासी राम मूरत पांण्डेय ने बताया।
उन्होंने बताया की पुराने समय में हुए चुनवी समर की कहानी को साझा करते हुए राम मूरत पांण्डेय ने बताया कि पहले चुनाव के दौरान प्रत्याशी व उनके समर्थक गांव गांव-गांव पैदल ,बैलगाड़ी, या फिर साइकिल से जो किसी किसी के पास होता था घर घर जा कर चुनाव चिन्ह लोगों को बताते थे।आज कि तरह जगह जगह होटल ,चाय की दूकान नही होता था जिसके कारण प्रचार करने वाले समर्थक साथ में चूड़ा, लाई, बतासा, भूजा आदि खाद्य सामग्री साथ लेकर चलते थे।
पहले की अपेक्षा अब नहीं हो रहा कटाछ भाषा में चुनावी गीत
चुनाव के दौरान प्रचार के लिए जहां आज सारी पार्टियां अपने अपने दलों व प्रत्याशियों के नाम व उनकी उपलब्धियों को जोड़ते हुए मतदाताओं को रिझाने के लिए गीतों की रिकार्डिंग करा कर लाउडस्पीकर के माध्यम से बजाते है।वहीं पहले के समय में पार्टी के समर्थक दूसरे पार्टियों के प्रत्याशियों उनके नेताओं के नाम पर कटाछ गीतों का काफी प्रचलन था,जिसे बैलगाड़ी पर बाद्य यंत्रों के साथ गाते थे।
उस जमाने में कांग्रेस के खिलाफ जनसंघ(वर्तमान में भाजपा)ने नारा दिया था " जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हटबंदी में,द्वार खड़ी औरत चिल्लाए मेरा मरद गया नसबंदी में।"जली झोपडी भागे बैल,यह देखो दीपक का खेल",संजय की मम्मी,बड़ी निक्कमी।"खरो रुपयो चांदी को,राज महात्मा गांधी को"आदि इस तरह से राजनीतिक दलों के द्वारा नारों के माध्यम से एक दूसरे पर जवाबी हमला किया करते थे।
अटल बिहारी वाजपेयी की जनसभा में घरों पर ताला बंद कर जाते थे लोग
अपने जीवन के एक सौ दो वर्ष पूरा कर चुके राम मूरत पांण्डेय ने अपने चुनावी अनुभव को साझा करते हुए कहा कि क्षेत्र मे सबसे अधिक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को लोग ज्यादा पसंद करते थे।उनके जनसभा की जानकारी होने पर निर्धारित जगह पर समय से पहले लोग पहुंच जाते थे।लोग अपने घरों में ताला लगा कर जनवरों को हरवाहों (नौकरों) के हवाले कर पूरा समय अटल जी के भांषणों को लोग बहुत ध्यान से सुनते थे।इतना ही नही अटल बिहारी वाजपेई ने जब अपना पहला चुनाव पड़ोसी जिले बलरामपुर से लड़ा तो जानकारी होने पर यहां के लोग उन्हे देखने और उनके भांषणों को सुनने बलरामपुर जिले के गैंसड़ी,पचपेड़ा तुलसीपुर आदि क्षेत्रों में अपने रिस्तेदारी में एक एक सप्ताह रूक जाते थे।
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