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Kashi Vishwanath Mandir: काशी के राजघाट उत्खनन में हैं प्राचीन मंदिर के प्रमाण
Kashi Vishwanath Mandir: काशी का विश्वनाथ मंदिर कितना पुराना है, यह तो कोई नहीं जनता। लेकिन कुछ ज्ञात साक्ष्य इसके ईसा पूर्व होने का संकेत देते हैं।
Kashi Vishwanath Mandir: काशी का विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Mandir) कितना पुराना है, यह तो कोई नहीं जनता। लेकिन कुछ ज्ञात साक्ष्य इसके ईसा पूर्व होने का संकेत देते हैं। दरअसल, वाराणसी में राजघाट टीले (Rajghat) की आकस्मिक खोज 1939 में वर्तमान काशी स्टेशन (Kashi Railway Station) के विस्तार के समय रेलवे के ठेकेदारों द्वारा खुदाई कराते समय हुई थी। खुदाई में इन ठेकेदारों को बहुत-सी प्राचीन वस्तुएं मिलीं, जिनमें मिट्टी की मुहरें एवं मुद्राएं भी थीं।
इन वस्तुओं को भारत कला भवन (Bharat Kala Bhavan Museum) और इलाहाबाद म्यूनिसिपल म्यूजियम (The Allahabad Museum) में रखा गया है। इन मुद्राओं में मुख्यत: यूनानी देवी-देवताओं की आकृतियां तथा कुछ यूनानी राजाओं के सिर का अंकन है। यहां से मिली वस्तुओं से आकृष्ट होकर भारतीय पुरातत्त्व विभाग (Archaeological Department of India) के एक दल ने यहां उत्खनन किया। जिसमें 12 खंभों से युक्त एक मंदिर तथा ईंटों की कुछ अन्य संरचनाएँ, उत्तरी काली चमकीले मृण्भांड के टुकड़े तथा कुछ अन्य वस्तुएँ मिलीं। इसके अतिरिक्त उत्खनन में चौथे स्तर (दूसरी-तीसरी शताब्दी ई.) से अनेक यूनानी देवी-देवताओं की आकृतियों से युक्त मुद्राएँ भी मिली हैं।
इस क्षेत्र का सर्वप्रथम वैज्ञानिक उत्खनन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) के प्रो. अवध किशोर नारायण (Awadh Kishore Narayan) ने 1957 में प्रारंभ किया। इस कार्य का पुन: आरंभ 1960-61 और बाद के वर्षों में भी चलता रहा। इतिहासकार प्रो राणा पी बी सिंह (Rana P B Singh) के अनुसार, 1000 ईसा पूर्व से काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Mandir) के होने के साक्ष्य हैं। उनके अनुसार राजघाट की खुदाई (Rajghat Ki Khudai) में काशी विश्वनाथ मंदिर की सील (Kashi Vishwanath Mandir Seal) प्राप्त हुई है , जो इस बात को साबित करती है कि 1000 ईसा पूर्व मंदिर विद्यमान था।
जैन तीर्थंकर
8वीं शताब्दी ईसा पूर्व जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ (Jainism Tirthankaras Parshvanatha) का जन्म काशी में हुआ था। अंतिम जैन तीर्थंकर महावीर (Mahavira) (599-527 ईसा पूर्व) अपने जीवन काल में काशी आये थे। सातवीं सदी ईसा पूर्व में महात्मा बुद्ध (Gautama Buddha) काशी आये। सारनाथ (Sarnath) में अपना पहला प्रवचन पांच शिष्यों को दिया। बौद्ध साहित्य में इस घटना को धर्म चक्र प्रवर्तन (Dharmachakra Pravartana) कहा गया है। इतिहासकार प्रो राणा पी बी सिंह के अनुसार राजघाट उत्खनन में प्राप्त अनेक मिट्टी के बर्तनों की कार्बन डेटिंग से यह ज्ञात होता है कि यहां 800 से 500 ईसा पूर्व से लगातार नगरीय बसावट रही है।
सम्राट अशोक भी आए थे काशी
मौर्य काल (322-185 ईसा पूर्व) में भी यह नगर आबाद था। सम्राट अशोक (Samrat Ashoka) महान जब अपनी बौद्ध तीर्थ यात्रा पर निकले थे तब वो सारनाथ और काशी आये थे। उन्होंने यहाँ एक अशोक स्तम्भ भी लगवाया था। सातवीं शताब्दी ईस्वी में चीनी यात्री व्हेनसांग काशी आया था। उसने काशी का वर्णन करते हुए लिखा है कि यह घनी जनसंख्या वाला नगर है। यह वैभवपूर्ण शहर ज्ञान की पीठ भी है। इस शहर में 20 विशाल मंदिर हैं। उनमें सबसे विशाल 30 मी ऊंचा शिवलिंग है जिस पर ताम्र पत्र मढ़ा है। यह सम्राट अशोक महान द्वारा गड़वाया गया स्तम्भ था, जो कालांतर में शिवलिंग की तरह पूजा जाने लगा था। इस स्तम्भ के टुकड़े को आज लाट भैरव (Lat Bhairav) के नाम से पूजा जाता है।
गुप्त काल (320-550 ईस्वी) में विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) का पुनर्निर्माण करके इसे भव्य रूप प्रदान किया गया। काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Corridor) के निर्माण के समय जब मंदिर के आसपास के मकानों को सरकार द्वारा खरीद कर कॉरिडोर निर्माण हेतु उन्हें तोड़ा गया तो एक मकान में से गुप्त कालीन शिव मंदिर (Shiv Mandir) मिला, जिसे कॉरिडोर में संरक्षित रखा गया है।
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