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Kashi Vishwanath Temple: जब से सृष्टि, तबसे काशी विश्वनाथ मंदिर
Kashi Vishwanath Temple: मुख्य ज्ञानवापी काशी विश्वनाथ मन्दिर का उल्लेख स्कन्द पुराण के काशी खंड में विस्तार से मिलता है। 1
Kashi Vishwanath Temple: यदि कोई पूछे कि काशी स्थित बाबा विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) कबसे है तो उसका एक ही जवाब हो सकता है – जब से सृष्टि है। काशी में विश्वेशर मन्दिर का निर्माण सबसे पहले किसने करवाया था इसकी कोई जानकारी नहीं है। मन्दिर से सम्बन्धित जितनी भी जानकारी है वह सिर्फ इनके जीर्णोंद्धार और पुनर्निर्माण से सम्बन्धित है। वैसे, इस मन्दिर का उल्लेख महाभारत, उपनिषद, पुराण आदि में मिलता है। इस मंदिर की महिमा इसी से समझी जा सकती है कि द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सबसे प्रमुख इस स्थान को प्रथम लिंग माना गया है। ऐसा माना जाता है कि साक्षात भगवान शंकर माता पार्वती के साथ इस स्थान पर विराजमान हैं। शिव और शक्ति के संयुक्त रूप वाले इस धाम को मुक्ति का द्वार बताया जाता है।
मुख्य ज्ञानवापी काशी विश्वनाथ मन्दिर (Kashi Vishwanath Temple) का उल्लेख स्कन्द पुराण के काशी खंड में विस्तार से मिलता है। 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक 'तीर्थ चिंतामणि' में वर्णन किया है कि अविमुक्तेश्वर और विशेश्वर एक ही ज्योर्तिलिंग है।
इस मंदिर का इतिहास (Kashi Vishwanath mandir ka etihas) अनादि काल से माना जाता है और मान्यता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 11 वीं सदी में राजा हरिश्चन्द्र ने करवाया था। वैसे, अगर ज्ञात इतिहास की बात करें तो मोहम्मद गौरी ने 1194 ईस्वी में इस मंदिर को ध्वस्त करने की कोशिश की थी। 1447 ईस्वी में जौनपुर के मोहम्मद शाह नामक सुल्तान ने भी इसको तोड़ने की कोशिश की थी।
प्राचीन मंदिरों में से एक
विश्वनाथ मंदिर पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। इस मंदिर के मुख्य देवता को विश्वनाथ या विश्वेश्वर नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है पूरे ब्रह्मांड का शासक। कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है। माना जाता है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था तब प्रकाश की पहली किरण काशी की धरती पर पड़ी थी। तभी से काशी ज्ञान तथा आध्यात्म का केंद्र माना जाता है। ये भी कहा जाता है कि सृष्टि का केंद्र काशी है। माना जाता है कि निर्वासन में कई साल बिताने के पश्चात भगवान शिव इस स्थान पर आए थे और कुछ समय तक काशी में निवास किया था।
अहिल्याबाई होलकर
यह मंदिर बहुत बार ध्वस्त (demolished) हुआ। आज जो मंदिर स्थित है उसका निर्माण चौथी बार हुआ है। 1585 में एक मशहूर व्यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण (Kashi Vishwanath mandir ka nirman) करवाया। 15 वीं और 16 वीं शताब्दी में अकबर के शासनकाल के दौरान मंदिर को नष्ट कर दिया गया था लेकिन अकबर के श्वसुर राजा मान सिंह ने मंदिर का निर्माण कराया था। 1669 में औरंगजेब के शासन काल के दौरान भी इस मंदिर को बहुत नुकसान पहुँचाया गया। काशी का मूल विश्वनाथ मंदिर बहुत छोटा था और 17वीं शताब्दी में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसे भव्य और सुंदर स्वरूप प्रदान किया। कहा जाता है कि एक बार रानी अहिल्या बाई होलकर के स्वप्न में भगवान शिव आए। इसलिए उन्होंने 1777 में यह मंदिर निर्मित कराया। सिख राजा रंजीत सिंह ने 1835 में मंदिर का शिखर सोने से मढ़वा दिया। तभी से इस मंदिर को गोल्डेन टेम्पल नाम से भी पुकारा जाता है।
ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरिश्चन्द्र ने काशी विशेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। फिर सम्राट विक्रमादित्य ने अपने समय में उसका पुनर्निर्माण करवाया। सम्राट विक्रमादित्य द्वारा निर्मित विश्वेशर मन्दिर पर ही पहला हमला मोहम्मद गौरी ने 1194 में किया था।
मुहम्मद हसन निजामी ने अपनी पुस्तक 'ताजुल मासिर' में वाराणसी पर मोहम्मद गौरी के हमले के बारे में लिखा है। इतिहासकारों के अनुसार जिस भव्य विश्वेश्वर मंदिर को मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था उस मन्दिर को गुजरात के एक सौदागर द्वारा बनबाया गया था लेकिन एक बार फिर इसे संभवतः सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया।
एक अन्य पुस्तक 'दान हारावली' के अनुसार 1585 में राजा टोडरमल (Raja Todarmal) की सहायता से पंडित नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। 1632 में शाहजहां ने इस भव्य मंदिर को तोड़ने के लिए सेना भेजी लेकिन हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वेशर मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी। 9 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने का आदेश जारी किया।
सौ साल से ज्यादा समय बाद 1777 – 80 में मालवा की महारानी अहिल्याबाई द्वारा काशी विश्वेश्वर मन्दिर (Kashi Vishweshwar Temple) के बगल में काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने एक हजार किलो सोने का छत्र बनवाया।
फैक्ट फाइल
- अहिल्याबाई होलकर द्वारा मंदिर निर्माण के बाद इस मंदिर की देख-रेख (mandir ki dekh rekh ) पांडा या महंत के वंशानुगत समूह द्वारा की जाने लगी थी। वर्ष 1900 में महंत देवी दत्त के दामाद पंडित विश्वेश्वर दयाल तिवारी ने मंदिर के प्रबंधन के लिए मुकदमा दायर किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें मंदिर का मुख्य पुजारी घोषित कर दिया गया था।
- इस भव्य मंदिर में शिवलिंग की ऊंचाई 60 सेंटीमीटर है और वह शुद्ध चांदी के 90 सेंटीमीटर की परिधि वाले योनी से घिरा हुआ है।
- 1828 में ग्वालियर राज्य के मराठा शासक दौलत राव सिंधिया की पत्नी बाईजा बाई ने ज्ञान वापी परिसर में 40 से अधिक खंभे के साथ एक छत वाले तरुमाला का निर्माण करवाया था।
- 1833-1840 के दौरान काशी में ज्ञानवपी कुंआ, घाट और अन्य नजदीकी मंदिरों का निर्माण किया गया था।
- मंदिर परिसर के पूर्व में एक 7 फुट ऊंची नंदी बैल की पत्थर से बनी मूर्ति स्थित है, जोकि नेपाल के राजा द्वारा इस मंदिर को उपहार के रूप में दी गई थी।
- इस भव्य मंदिर पर बना गुंबद शुद्ध सोने से बनाया गया है। इसे बनाने के लिए 1835 में महाराजा रणजीत सिंह जी ने 1 टन सोने का दान मंदिर को दिया था। सबसे ऊँचे वाले गुंबद की कुल ऊंचाई लगभग 15.5 मीटर है।
- इस मंदिर में कई स्थानों पर चाँदी का भी उपयोग किया गया है, जिसे 1841 में नागपुर के एक शासक ने मंदिर में दान दिया था।