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Pitru Paksha 2021 : भटकती आत्माओं की मुक्ति का द्वार है काशी का पिशाचमोचन कुंड, जानिए पितृपक्ष में यहां क्यों लगती है भीड़

काशी खंड की मान्यता के अनुसार पिशाच मोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से है। पितरों की शांति के लिए यहां देश भर से लोग आते हैं और विधि-विधान तर्पण पूर्वक करते हैं।

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Newstrack NetworkPublished By Ashiki
Published on: 20 Sep 2021 8:33 AM GMT
Pishach Mochan Kund
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पिशाचमोचन कुंड (Photo- Social Media)

Pishach Mochan Kund: सनातन धर्म में पितृपक्ष ((Pitru Paksha) के दौरान पितरों की पूजा और पिंडदान का विशेष महत्व बताया गया है। इस साल पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) आज से शुरू हो रहे हैं और 6 अक्टूबर तक चलेंगे। इन दिनों में लोग अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध के लिए हर साल भारी मात्रा में लोग वाराणसी जाते हैं। आज हम आपको वाराणसी की उस जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां लोग भारी मात्रा में आते हैं और पितरों का श्राद्ध करते हैं।

पिशाच मोचन कुंड पर क्यों पितृपक्ष में लगती है भीड़

काशी मोक्ष की नगरी कही जाती है। कहा जाता है वाराणसी (Varanasi) से ही भगवान शिव ने सृष्टि की रचना की थी। कहा जाता है कि काशी में प्राण त्यागने वाले हर इंसान को भगवान शंकर खुद मोक्ष प्रदान करते हैं, इसीलिए कई लोग अपने अंतिम समय में काशी (Kashi) में ही आकर बस जाते हैं। वाराणसी में एक जगह है जिसका नाम है पिशाच मोचन कुंड (Pishach Mochan Kund)। ऐसी मान्यता है कि यहां त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है। इसीलिए पितृ पक्ष के दिनों में पिशाच मोचन कुंड (pishach kund) पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है।


पुराणों में भी है जिक्र

काशी के पिशाच मोचन कुंड (Pishach Mochan Kund) का बखान गरुड़ पुराण (Garuda Purana) में भी किया गया है। आज से शुरू हो रहे पितृपक्ष पर तर्पण के लिए आने वालों का सिलसिला शुरू हो चुका है। गरुण पुराण और काशी खंड में इस कुंड का वर्णन मिलता है। काशी खंड की मान्यता के अनुसार पिशाच मोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से है। पितरों की शांति के लिए यहां देश भर से लोग आते हैं और विधि-विधान तर्पण पूर्वक करते हैं।


पिशाच मोचन कुंड के बारे में खास बातें

पूरे भारत में सिर्फ पिशाच मोचन कुंड पर ही त्रिपिंडी श्राद्ध होता है, जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु की बाधाओं से मुक्ति दिलाता है।

हजार साल पुराने इस कुंड किनारे बैठ कर अपने पितरों जिनकी आत्माएं असंतुष्ट हैं उनके लिए यहा पितृ पक्ष में आकर कर्म कांडी ब्राम्हण से पूजा करवाने से मृतक को प्रेत योनियों से मुक्ति मिल जाती है।

यहां कुंड़ के पास एक पीपल का पेड़ है, जिसको लेकर मान्यता है कि इस पर अतृप्त आत्माओं को बैठाया जाता है।

इसके लिए पेड़ पर सिक्का रखवाया जाता है ताकि पितरों का सभी उधार चुकता हो जाए और पितर सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें और यजमान भी पितृ ऋण से मुक्ति पा सके।

Ashiki

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