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UP Election 2022: वाराणसी दक्षिणी सीट पर इस बार दिलचस्प मुकाबला, बीजेपी के लिए क्यों अहम है यह क्षेत्र

UP Election 2022 : वाराणसी सीट पर भाजपा ने इस बार भी अपना कब्जा बनाए रखने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है।

Anshuman Tiwari
Report Anshuman TiwariPublished By Ragini Sinha
Published on: 3 March 2022 11:04 AM IST
Up election 2022
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बीजेपी (Social media)

UP Election 2022 : वैसे तो वाराणसी (Varanasi assembly seat)की सभी सीटों पर भाजपा (Bjp)और विपक्षी दलों के बीच जबर्दस्त जोर आजमाइश हो रही है मगर भाजपा और सपा के बीच शहर दक्षिणी सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है। इस बार के विधानसभा चुनाव (Up Election 2022) में शहर दक्षिणी सीटों पर सपा (Samajwadi party) और भाजपा (BJP) की मजबूत घेराबंदी कर रखी है। भाजपा के लिए यह सीट काफी अहम मानी जा रही है, क्योंकि तीन दशक से अधिक समय से इस सीट पर लगातार भाजपा का ही कब्जा है और काशी विश्वनाथ मंदिर का इलाका भी इसी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

भाजपा की ओर से काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का प्रचार केवल देश से ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी किया गया है। इसलिए भाजपा ने इस बार भी इस सीट पर कब्जा बनाए रखने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। माना जा रहा है कि इस सीट का चुनावी नतीजा बड़ा सियासी संदेश देने वाला होगा। वैसे इस सीट का काफी गौरवशाली इतिहास रहा है। 1957 के चुनाव में इसी सीट से जीत हासिल करने के बाद डॉ संपूर्णानंद ने प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली थी।

1989 से ही भाजपा का कब्जा

अगर शहर दक्षिणी सीट के इतिहास को देखा जाए 1989 से लगातार इस सीट पर भाजपा का ही कब्जा बना हुआ है। इस सीट को भाजपा का मजबूत किला बनाने में सबसे बड़ा योगदान श्यामदेव राय चौधरी दादा का माना जाता है। दादा को 1989 में पहली बार इस सीट पर जीत हासिल हुई थी। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी डॉ रजनी कांत दत्ता को हराकर पहली जीत हासिल की थी और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

1989 के बाद दादा ने 1991, 1993, 1996, 2002, 2007 और 2012 में भी इस सीट पर जीत हासिल की। 2017 में दादा का टिकट काटे जाने पर भाजपा में काफी विरोध भी देखने को मिला था। हालांकि बाद में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के दखल देने से नाराज दादा को मना लिया गया था। आम लोगों के बीच घुल- मिलकर रहने वाले बेहद सादगी पसंद दादा हमेशा जनता से जुड़े मुद्दों की लड़ाई लड़ते रहे और उनकी कामयाबी के पीछे उनके इस संघर्ष को ही बड़ा कारण माना जाता रहा है।

पिछले चुनाव में कांग्रेस ने दी थी कड़ी चुनौती

2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को वाराणसी जिले की सभी आठ सीटों पर जीत हासिल हुई थी मगर वाराणसी दक्षिणी सीट पर जीत का मार्जिन सबसे कम था। 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर कड़ा मुकाबला हुआ था क्योंकि कांग्रेस ने पूर्व सांसद डॉ राजेश मिश्रा को चुनाव मैदान में उतार दिया था। भाजपा की ओर से पहली बार चुनाव मैदान में उतरे डॉक्टर नीलकंठ तिवारी ने उन्हें करीब 15,000 से अधिक मतों से हराया था।

इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी डॉ नीलकंठ तिवारी को 92,560 वोट हासिल हुए थे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी डॉ राजेश मिश्रा को 75,334 मत मिले थे। जीत हासिल करने के बाद डॉ नीलकंठ तिवारी को योगी सरकार में भी जगह मिली थी और उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया था। इस बार भी भाजपा ने नीलकंठ तिवारी को ही चुनाव मैदान में उतारा है।

पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट इसी इलाके में

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण वाराणसी की सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा ने पूरी ताकत लगा रखी है मगर इन सभी सीटों में शहर दक्षिणी की सीट को सबसे अहम माना जा रहा है। भाजपा तीन दशक से अधिक समय से अपना गढ़ माने जाने वाली इस सीट पर किसी दूसरे दल की सेंधमारी नहीं होने देना चाहती।

इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ कॉरिडोर भी इसी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। भाजपा की ओर से इस बार काशी के विकास के साथ ही काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को भी देश दुनिया में खूब प्रचारित किया जा रहा है। इसलिए यह सीट भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण हो गई है।

भाजपा को घेरने में जुटी है सपा

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी राजेश मिश्रा से कड़ी चुनौती मिली थी और इस बार सपा प्रत्याशी किशन दीक्षित भाजपा को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। वाराणसी के बहुचर्चित महामृत्युंजय मंदिर के महंत परिवार से जुड़े किशन दीक्षित को उतारकर सपा ने भाजपा की मजबूत घेरेबंदी का प्रयास किया है। राजेश मिश्रा इस बार शहर दक्षिणी सीट छोड़कर कैंट विधानसभा सीट से किस्मत आजमा रहे हैं। इस तरह इस सीट पर मुख्य रूप से सपा और भाजपा के बीच में ही मुकाबला हो रहा है।

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद विश्वनाथ गली के दुकानदारों का व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इसके साथ ही काफी संख्या में लोगों को विस्थापित भी होना पड़ा है। कई दुकानों का अस्तित्व भी पूरी तरह समाप्त हो गया है। गंगा घाट से सीधे विश्वनाथ मंदिर का जुड़ाव होने के बाद गली में आने जाने वालों की चहल-पहल भी कम हुई है। ऐसे में इन लोगों में नाराजगी दिख रही है। भाजपा की ओर से लोगों की नाराजगी दूर करने की कोशिश जरूर की जा रही है मगर अभी तक बात नहीं बन सकी है।

चुनावी नतीजे से निकलेगा बड़ा सियासी संदेश

शहर दक्षिणी सीट पर भाजपा और सपा की ओर से पूरी ताकत इसलिए भी लगाई जा रही है क्योंकि इस सीट के चुनावी नतीजे से बड़ा सियासी संदेश निकलने वाला है। भाजपा इस सीट को जीत कर यह संदेश देने की कोशिश में जुटी हुई है कि लोगों में पार्टी के प्रति किसी भी प्रकार की नाराजगी नहीं है। दूसरी ओर सपा इस सीट को जीतकर काशी को मॉडल के रूप में पेश करने की पीएम मोदी की मुहिम को धक्का पहुंचाने की कोशिश में लगी हुई है। सपा नेताओं का भी मानना है कि अगर पार्टी यह सीट जीतने में कामयाब रही तो इससे पूरे देश में अलग तरह का सियासी संदेश जाएगा।

मतदाताओं को साधने में जुटे नीलकंठ तिवारी

भाजपा प्रत्याशी डॉक्टर नीलकंठ तिवारी ने इस सीट पर पूरी ताकत लगा रखी है और उन्होंने एक वीडियो संदेश के जरिए क्षेत्र के मतदाताओं से कहा है कि यदि उन्हें किसी भी प्रकार की नाराजगी है तो उन्हें माफ कर देना चाहिए। अब यह देखने वाली बात होगी कि वह क्षेत्र के मतदाताओं का समर्थन हासिल करने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं।

प्रधानमंत्री 4 मार्च को दो दिनों तक डेरा डालने के लिए काशी पहुंच रहे हैं और इस दौरान वे रोड शो भी निकालेंगे। पीएम मोदी का रोड शो इस विधानसभा क्षेत्र को भी कवर करेगा और माना जा रहा है कि उसके बाद भाजपा के पक्ष में माहौल जरूर बन सकता है।

Ragini Sinha

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