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सिखों का फेक एनकाउंटर: 47 पुलिसवालों को उम्रकैद के साथ जुर्माना
लखनऊ: 25 साल पहले तीर्थयात्रा से वापस लौट रहे 11 सिखों को उग्रवादी बताकर फेक एनकाउंटर में मारने के मामले में सीबीआई की लोकल कोर्ट ने सोमवार को फैसला सुनाया। सभी 47 पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। जुर्माने को रैंक के हिसाब से तीन कैटेगरी बांटा गया है। एसएचओ को 11 लाख, एसआई को 8 लाख और कांस्टेबल को 2.75 लाख रुपए जुर्माना देना होगा। जुर्माने से प्राप्त राशि से सभी विक्टिम परिवारों को 14-14 लाख रुपए मुआवजा दिया जाएगा।
हाई कोर्ट में करेंगे अपील
विशेष अदालत के फैसले के बाद आरोपियों ने कहा कि वे हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती देंगे।
किस धारा में कितनी सजा...
कोर्ट ने बंधक बनाना, अपहरण करना और हत्या कर देने के दोष में सभी आरोपियों को अलग-अलग सजा सुनाई हैं।
-आईपीसी की धारा 302 में दोषी होने पर उम्रकैद दी गई।
-आईपीसी की धारा 364 के तहत 10 साल सश्रम कारावास और जुर्माना।
-आईपीसी की धारा 365 के तहत पांच साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई।
-सभी सजा एक साथ चलेंगी।
कोर्ट ने कहा- जब तक एनकाउंटर के लिए प्रमोशन मिलेगा तब तक नहीं रुकेगा सिलसिला
-सोमवार को जज ने सभी आरोपियों को कस्टडी में लेने के लिए कहा। फैसला लंच के बाद सुनाया गया।
-सीबीआई के स्पेशल जज लल्लू सिंह ने कहा- यह सुनियोजित नरसंहार था। उन्होंने आरोपियों की रहम की मांग पर कहा कि यह सिस्टम का दुर्भाग्य है।
मैंने अपने फैसले में लिखा है कि जब तक एनकाउंटर के बदले पुलिस को प्रमोशन मिलता रहेगा तब तक यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं लेगा।
-इससे बड़ा फर्जीफिकेशन और क्या हो सकता है कि जो एसओ जीडी में मुठभेड़ में लगा बताया जा रहा है वह उसी समय हॉस्पिटल में ड्रिप लगवा रहा होता है।
-इसकी तस्दीक खुद तात्कालिक डॉक्टर कोर्ट आकर करता है।
-सीबीआई ने जिले के बड़े अधिकारियों को बचाया। इनके पर नए सिरे से जांच शुरू करने के संबंध में संबंधित राज्य को विचार करना चाहिए।
मौत की सजा क्यों नहीं?
-सीबीआई के वरिष्ठ अभियोजक एससी जायवाल की ओर से दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग को नकारते हुए कोर्ट ने कहा कि आजीवन कारावास की सजा कठोरतम सजा है।
-क्योंकि आजीवन सजा भोगते हुए अपराधी रोज मरता है और रोज जीता है। एक विचार उसके दिमाग में पनपता है, जो उससे रोज-रोज सवाल करता है कि उसने ऐसा अपराध क्यों किया?
फैसले के बाद दोषियों के परिजनों का हंगामा
-सजा सुनाए जाने के बाद सभी दोषियों ने फैसले की कॉपी की मांग करते हुए जमकर हंगामा काटा।
-जब पुलिस सभी दोषियों को जेल ले जाने लगी तो उन्होंने आगे अपील के लिए फैसले की कॉपी मांगी।
-इसमें देर होने बाद उनके साथ आए परिजन भड़क गए और सीबीआई जज की अदालत के सामने ही हंगामा काटना शुरू कर दिया।
-हालांकि जब हंगामा चल रहा था उससे पहले जज लल्लू सिंह कोर्ट छोड़ चुके थे।
फैसले की कॉपी के लिए हंगामा करते दोषी और उनके परिजन
परिजनों का आरोप
-हंगामा कर रहे परिजनों का आरोप है कि सजा सुनाए जाने के पहले ही कुछ चैनलों पर सजा के बारे में बता दिया गया।
दोषी बोले बिना फैसले की कॉपी के नही हटेंगे
-कोर्ट के आदेश के बाद दोषियों ने कहा जब तक हमें फैसले की कॉपी नहीं मिल जाती तब तक हम कोर्ट से नही हटेंगे।
-यही कारण रहा कि चार बजे फैसला आने के बाद भी रात से आठ बजे तक सभी दोषी और उनके परिजन कोर्ट रूम के पास हंगाम करते रहे।
कोर्ट में 38 अपराधी पहुंचे
-सोमवार को 38 अपराधी कोर्ट में मौजूद थे। बाकी बचे 9 अपराधी कोर्ट नहीं आए।
-इनमें से 20 पहले से ही जेल में थे। कुल 57 दोषी थे, जिनमें से 10 की मौत हो चुकी है।
शुक्रवार को 20 पुलिसकर्मियों को भेजा गया था जेल
-पिछले शुक्रवार को 20 पुलिसवालों को कोर्ट ने कस्टडी में लेकर जेल भेज दिया था।
-कार्यवाही के दौरान गैरहाजिर 27 पुलिसकर्मियों के खिलाफ एनबीडब्ल्यू जारी कर उनके जमानतदारों को दी गई थी।
अभियोजन पक्ष ने क्या कहा
-अभियोजन पक्ष ने कहा कि जिनका काम रक्षा का होता है जब वहीं भक्षक बन जाएं तो उसके लिए सजा-ए-मौत से कम कोई सजा नहीं हो सकती।
-इसलिए सभी आरोपियों को मौत की सजा दी जाए।
-वहीं बचाव पक्ष के वकील ने आरोपियों की उम्र को देखते हुए थोड़ी नरमी बरतने की मांग की है।
फैसला सुन रो पड़ा एक दोषी
क्या था पूरा मामला
-सीबीआई के विशेष अभियोजक सतीश चंद्र जायसवाल के मुताबिक, घटना 12 जुलाई 1991 की है।
-नानकमथा पटना साहिब, हुजूर साहिब और अन्य तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हुए 25 सिखों का एक जत्था बस से वापस लौट रहा था।
-पीलीभीत जिले के कछालाघाट पुल के पास पुलिस ने सुबह करीब 11 बजे बस रोक ली।
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-पुसिल ने इनमें से 11 सिखों को बस से उतार लिया। फिर अलग-अलग थाना क्षेत्रों में मुठभेड़ दिखाकर इन्हें मार दिया।
-पुलिस ने इस मुठभेड़ की एफआईआर थाना विलसड़ा, थाना पुरनपुर और थाना नोरिया में दर्ज कराई।
-मारे गए सिख तीर्थयात्रियों के पास से अवैध असलहों की बरागदगी दिखाई गई।
-और कहा गया कि उन्हेांने पुसिल पार्टी पर फायर किया था।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई सीबीआई जांच
-बाद में घटना की सीबीआई जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में वकील आरएस सोढ़ी ने अर्जी लगाई।
-कोर्ट ने सीबीआई से जांच के आदेश दिए।
-सीबीआई ने कई थानों के एसओ, एसआई और कॉस्टेबलों को फेक एनकाउंटर का दोषी पाया।
-12 जून 1995 को 57 पुलिसवालों के खिलाफ आरोपपत्र कोर्ट को भेजा गया।
-विचारण के दौरान दस अभियुक्तों की मौत हो गई, जबकि शेष अभी जीवित हैं, जिनके खिलाफ केस चला।
ये थे शामिल
दोषी पाए गए पुलिसकर्मियों में ज्ञान गिरि, लाखन सिंह, हरपाल सिह, कृष्णवीर सिंह, करन सिंह नेमचंद्र, सत्येंद्र सिंह, बदन सिंह, मो. अनीस, नत्थू सिंह, वीरपाल सिंह, दिनेश सिंह, अरविंद सिंह, राम नगीना, बिजेंद्र सिंह, एमपी विमल, सुरजीत सिंह, सत्यपाल सिंह, रामचंद्र सिह, हरपाल सिंह शामिल हैं।
इस मामले में कोर्ट ने उठाए थे ये सवाल
-एक समय में तीन थानों में मुठभेड़ कैसे हो सकती है ?
-मारे गए युवकों के शव उनके परिजनों को क्यों नहीं सौंपे गए,पुलिस ने क्यों किया अंतिम संस्कार?
-अगर मुठभेड़ हुई तो मरने वालों के शरीर पर लाठी डंडे के निशान कैसे बने?
-मुठभेड़ में किसी पुलिस वाले को खरोंच तक नही आई ?
-पुलिस ने मुठभेड़ की जगह 12 बोर के तमंचे क्यों दिखाए, जबकि युवकों को आतंकवादवादी बताया था ?
दलजीत को आज भी याद है वो समय
अपनी आंखों के सामने पति और देवर को पुलिस द्वारा बस से उतारने की गवाह बनी बलविंदर जीत सिंह कौर ने बताया कि वह लम्हा आज तक ताजा है। जब भी आंखें बंद करती हूं तो वही सच्चाई सामने आ जाती है। बलविंदर कौर के पति बलजीत सिंह उर्फ पप्पू और जसवंत की भी हत्या की गई थी।
नीचे की स्लाइड्स में देखें मृतक के परिजनों की तस्वीरें...
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