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अभी नहीं टला है खतरा, यहां बिना क्वारनटाइन सड़कों पर घूम रहे प्रवासी मजदूर
कोरोना की महामारी में सबसे अचूक हथियार सोशल डिस्टेंसिंग को माना जाता है और बाहर से आये लोगों को इस कारण क्वारनटाईन भी किया जा रहा है जिससे उनसे किसी को संक्रमण फैलने न पाए।
बाराबंकी: कोरोना की महामारी में सबसे अचूक हथियार सोशल डिस्टेंसिंग को माना जाता है और बाहर से आये लोगों को इस कारण क्वारनटाईन भी किया जा रहा है जिससे उनसे किसी को संक्रमण फैलने न पाए।
मगर बाराबंकी में जो दिखाई दिया। वह एक खतरे की घण्टी की तरह है। यहां बाहर से आये मजदूरों के लिए प्रशासन ने पुख्ता इंतजाम किए थे और हर मजदूर को उसके गन्तव्य तक पहुंचाने के लिए बसों का भी खासा इंतज़ाम भी किया है।
मजदूरों को किसी से न मिलने देने के लिए पूरी एहतियात बरती जा रही है। इन सबके बावजूद कुछ मजदूर स्टेशन की दूसरी तरफ निकल कर कस्बे में बिक रहे खीरे को खरीदते दिखाई दिए। मजदूरों का इस प्रकार खुला घूमना आने वाले बड़े खतरे की आहट की रूप में समझा जा सकता है।
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गुजरात के गोधरा से बाराबंकी पहुंची थी ट्रेन
बाराबंकी के रेलवे स्टेशन पर आज मजदूरों से भरी स्पेशल ट्रेन गुजरात के गोधरा से आई। प्रशासन ने इन्हें घर पहुंचाने के लिए बसों का इन्तज़ाम भी कर रखा था और मजदूर स्टेशन से सीधे बसों में बैठ भी रहे थे मगर कुछ मजदूर प्रशासन की आंखों में धूल झोंक कर स्टेशन के दूसरी तरफ से कस्बे में चले गए और वहाँ ठेलों पर बिक रहे खीरे को खरीदने लगे। जब उनसे पूछा गया तो कुछ तो रेल की पटरियों की तरफ भाग निकले लेकिन ठेलों पर खरीददारी कर रहे मजदूरों ने बताया कि उन्हें भूख लगी थी और वह इसी लिए खीरा खरीद रहे है ।
प्रशासन ने भी इन मजदूरों को इनके गाँव के क्वारनटाईन सेन्टर ले जाकर 14 दिन तक क्वारन्टीन करती और अवधि पूरी होने के बाद इन्हें इनके परिवार वालों से मिलने को इज़ाज़त दी जाती लेकिन यह सब प्रशासन कर पाता उससे पहले ही यह मजदूर ठेलों पर खरीददारी करने लगे जो किस बड़े खतरे का कारण बन सकता है।