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रायबरेली में कोरोना का कहर: श्मशान घाटों पर शवों की कतार, लकड़ी की भारी कमी
रायबरेली में श्मशान घाटों पर शवों की वेटिंग चल रही। शव जलाने के लिए लकड़ी की भारी किल्लत हो गई है।
रायबरेली: कोरोना के बढ़ते प्रकोप में अब रायबरेली का हाल भी लखनऊ जैसा हो गया है। श्मशान घाटों पर शवों की वेटिंग चल रही। शव जलाने के लिए लकड़ी की भारी किल्लत हो गई है। फतेहपुर जिले से लकड़ियां मंगाई जा रही हैं। यही नही बल्कि शव दाह के लिए आम की जगह यूकेलिप्टस व चिलवल की लकड़ियों से काम चलाया जा रहा। इन लकड़ियों के रेट भी आसामान छू रहे, बाजार में यूकेलिप्टस व चिलवल की लकड़ियों एक हजार से 1200 रुपये प्रति क्विंटल है।
मिली जानकारी के अनुसार जिले में सबसे अधिक शव डलमऊ श्मशान घाट पहुंच रहे हैं। किसी दिन 40 या फिर 50 और किसी दिन यह आंकड़ा 100 तक पहुंच रहा है। ऊंचाहार क्षेत्र के गोकना श्मशान घाट पर 15 से 20 और सरेनी के गेगासो श्मशान घाट पर 20 से 25 शवों को हर दिन अंतिम संस्कार के लिए पहुंचाया जाता है। हर दिन यह आंकड़ा कम होने के बजाय बढ़ता जा रहा है।
डलमऊ के राजेंद्र पंडा, कमलेश पंडा कहते हैं कि कोरोना के बाद श्मशान घाट पर शवों की संख्या हर दिन बढ़ रही है। आम की लकड़ी मिलना मुश्किल हो गया है। ऐसे में चिलवल, यूकेलिप्टस की लकड़ी की व्यवस्था कराई जा रही है। बाहर से लकड़ी मंगाने पर स्थानीय पुलिस परेशान करती है। इससे और दिक्कत आ रही है। यही हाल रहा तो शवों का अंतिम संस्कार भी नहीं हो पाएगा। लोगों को अपने के शवों को भू-समाधि देनी पड़ेगी।
बता दें कि शव का अंतिम संस्कार चंदन की लकड़ी से किया जाना सबसे अच्छा माना जाता है। लेकिन चंदन की लकड़ी जुटा पाना मुश्किल हो पाता है इसलिए आम की लकड़ी से भी शव का अंतिम संस्कार करना अच्छा माना जाता है। क्योंकि आम को अमृत फल कहा जाता है। उसकी लकड़ी शुद्ध मानी जाती है। आम की लकड़ी से भी अंतिम संस्कार करने पर चंदन की लकड़ी के कुछ अवशेष रखे जाते हैं। चिलवल और यूकेलिप्टस की लकड़ी से शवों का अंतिम संस्कार सही नहीं माना जाता।