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7 January 1921: नेहरू गांधी परिवार के कारण मुंशीगंज की रक्तरंजित भूमि को अब तक नहीं मिल पाया इंसाफ-अजय अग्रवाल

7 January 1921: अधिवक्ता और बीजेपी के रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के उम्मीदवार रहे अजय अग्रवाल ने रविवार को एक बड़े ही ऐतिहासिक मगर शोकाकुल सभा में 7 जनवरी 1921 में अंग्रेजों की बर्बरता के कारण शहीद हुए 750 किसानों को श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर उन्होंने अंग्रेज सरकार की कड़ी भर्त्सना करते हुए इस घटना को दूसरा जलियांवाला बाग बताया।

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Newstrack Network
Published on: 7 Jan 2024 11:20 PM IST
Because of the Nehru-Gandhi family, the bloody land of Munshiganj has not got justice till now - Ajay Aggarwal
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नेहरू गांधी परिवार के कारण मुंशीगंज की रक्तरंजित भूमि को अब तक नहीं मिल पाया इंसाफ-अजय अग्रवाल: Photo- Newstrack

Raebareli News: प्रसिद्ध अधिवक्ता और बीजेपी के रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के उम्मीदवार रहे अजय अग्रवाल ने रविवार को एक बड़े ही ऐतिहासिक मगर शोकाकुल सभा में 7 जनवरी 1921 में अंग्रेजों की बर्बरता के कारण शहीद हुए 750 किसानों को श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर उन्होंने अंग्रेज सरकार की कड़ी भर्त्सना करते हुए इस घटना को दूसरा जलियांवाला बाग बताया।

निशाने पर गांधी परिवार

साथ ही साथ अजय अग्रवाल ने इस बात के लिए रोष जताया कि कांग्रेस के इतने वर्षों के शासन और नेहरू गांधी परिवार के लगातार ही इस पाक सरजमीं से संसद पहुंचने के बावजूद इसे न तो राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा मिल सका और न ही इस स्थान को वो तरजीह और सम्मान मिल सका जो मिलना चाहिए था। उन्होंने कहा कि उनकी पूरी कोशिश होगी कि इस ऐतिहासिक भूमि के साथ न्याय हो और इसके लिए जो भी जरूरी कदम उठाने होंगे, वो करेंगे।

7 जनवरी 1921 का वो काला दिन

अजय अग्रवाल ने कहा कि अंग्रेज शासन के हुक्म से सभा में मौजूद सैकड़ों निहत्थे और बेकसूर किसानों पर पुलिस बलों द्वारा गोलियों की बौछार कर दी गई। इसके बाद सई नदी की धारा किसानों के खून से रक्त रंजित हो उठी थी। 750 से ज्यादा किसान मारे गए थे और 1500 से ज्यादा घायल हुए थे। उन्होंने मुंशीगंज (रायबरेली) में एक बड़ी जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि इतिहास के आइने में तमाम आंदोलन दर्ज हैं, जो आजादी दिलाने में सहायक बने। उनमें से एक रायबरेली जिले में मुंशीगंज किसान आंदोलन भी है। यहां शहीद किसानों की याद में स्मारक है, जो अंग्रेजों के जुल्म और सितम के काले अध्याय के विरुद्ध भारतीय किसानों के बलिदान की याद दिलाता है।

माटी में है बलिदान की खुशबू

अजय अग्रवाल ने कहा कि इस माटी में देश के उस किसान आंदोलन की खुशबू है, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की जड़े हिला दी थी। भारतीय किसानों के इस आंदोलन को मुंशीगंज गोलीकांड का नाम दिया गया। कई जानकर इसे जलियांवाला बाग कांड से भी बड़े हत्याकांड का दर्जा देते हैं।

उन्होंने कहा कि राष्ट्र के लिए सैकड़ों किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। भारतीय किसानों के उस अदम्य साहस और शौर्य की अमर गाथा मुंशीगंज गोली कांड के कुछ अनछुए पहलुओं से अजय अग्रवाल ने सबको रूबरू कराया।

क्या है इतिहास

रायबरेली जिले में शहर के एक क्षोर पर स्थित मुंशीगंज कस्बा सई नदी के तट पर बसा है। 5 जनवरी 1921 को किसान तत्कालीन कांग्रेस शासकों के अत्याचारों से तंग आकर, अमोल शर्मा और बाबा जानकी दास के नेतृत्व में एक जनसभा कर रहे थे। दूर-दूर के गांव के किसान भी सभा में भाग लेने के लिए आए थे। जनसभा को असफल करने के मकसद से तालुकेदार ने तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर एजी शेरिफ से मिलकर दोनों नेताओं को गिरफ्तार करवा कर लखनऊ जेल भिजवा दिया।

दोनों नेताओं की गिरफ्तारी के अगले ही दिन रायबरेली में लोगों के बीच तेजी से यह खबर फैल गई कि लखनऊ के जेल प्रशासन द्वारा दोनों नेताओं की हत्या करवा दी गई है। इसके चलते 7 जनवरी 1921 को रायबरेली के मुंशीगंज में सई नदी के तट पर अपने नेताओं के समर्थन में एक विशाल जनसमूह एकत्रित होने लगा। किसानों के भारी विरोध को देखते हुए नदी किनारे बड़ी मात्रा में पुलिस बल तैनात कर दिया गया था।

अंग्रेजी शासन ने सभा में मौजूद किसानों पर पुलिस बलों द्वारा गोलियों की बौछार करा दी। इसके बाद सई नदी की धारा किसानों के खून से लाल हो गई। 750 से ज्यादा किसान इस नरसंहार में मारे गए थे और 1500 से ज्यादा हताहत हुए थे।

मुंशीगंज गोलीकांड कई मायनों में है बेहद खास-

मुंशीगंज गोलीकांड कई मायनों में बेहद खास है। इसकी तुलना अन्य किसी आंदोलन से करना भी उचित नहीं होगा। हालांकि, यह बात सही है कि मुंशीगंज गोलीकांड को स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में वह दर्जा नहीं मिल सका, जिसका यह हकदार रहा। लेकिन जंगे आजादी की दिशा और दशा बदलने में यह जरूर कामयाब रहा।

भाजपा नेता अजय अग्रवाल ने इस अवसर पर यह घोषणा कि वह मुंशीगंज के शहीदों को तथा उनके परिवार जनों को तथा यहां की धरती को उचित सम्मान व स्थान दिलाएंगे तथा यहां के शहीद स्मारक को एक राष्ट्रीय स्मारक के रूप में घोषित करने के लिए केंद्रीय मंत्रियों से मिलेंगे।

मुंशीगंज शहीद स्मारक को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की माँग

मुंशीगंज स्थित शहीद स्मारक को राष्ट्रीय धरोहर तथा राष्ट्रीय स्मारक घोषित किये जाने के सम्बन्ध में भाजपा नेता तथा सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता अजय अग्रवाल ने केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी से टेलीफोन पर वार्ता की तथा उनको मुंशीगंज के विषय में पूरी जानकारी दी।

उनको बताया कि रायबरेली के मुंशीगंज नें 7 जनवरी, 1921 को अंग्रेजों द्वारा बर्बरतापूर्ण गोलियों को दागने की वजह से सात सौ पचास से अधिक किसान शहीद हो गये थे और हजारों लोग घायल हुए थे। इसलिए इसको दूसरा जलियांवाला बाग कांड कहा जाता है। जलियांवाला बाग हत्याकांड अमृतसर में 13 अप्रैल, 1919 को घटित हुआ था, जिसमें करीब 1200 लोग शहीद हुए थे। रायबरेली की पूरी जनता की मांग है कि केन्द्र सरकार का संस्कृति मंत्रालय इसको राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा दे तथा इसको राष्ट्रीय स्मारक घोषित करे।

उन्होंने केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री को बताया कि इस सम्बन्ध में आज हर वर्ष की तरह एक वृहद् कार्यक्रम रायबरेली के मुंशीगंज में आयोजित किया गया था जिसमें उन्होंने विशाल जन समूह के सामने यह आश्वासन दिया कि 15 दिनों के अंदर वह केंद्रीय सरकार से इस विषय में कुछ प्रभावी कदम उठाने के लिए अनुरोध करेंगे और उन्होंने केंद्रीय मंत्री से निवेदन किया कि मुंशीगंज के शहीद स्मारक क्षेत्र को राष्ट्रीय धरोहर तथा राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा शीघ्र अति शीघ्र घोषित करें।

Shashi kant gautam

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