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Raja Bhaiya: भदरी रियासत से लखनऊ की सियासत तक कुछ ऐसा रहा है, राजा भैया का दिलचस्प सियासी सफर

Raja Bhaiya Biography: साल 1993 में अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले प्रतापगढ़ जनपद स्थित भदरी रियासत के उत्तराधिकारी राजा भैया मात्र 24 साल की उम्र में पहली बार निर्दलीय विधायक बने थे।

Krishna Chaudhary
Published on: 6 Jan 2023 2:29 AM GMT (Updated on: 8 Jan 2023 6:58 AM GMT)
Raja Bhaiya
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Raja Bhaiya (photo: social media ) 

Raja Bhaiya Biography in Hindi: हिंदी पट्टी के दो बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति बाहुबलियों के किस्से के बिना अधुरी है। इन राज्यों में सत्ता के शीर्ष पर कोई भी बैठे, बाहुबलियों के दबदबे को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता। समय काफी बीत चुका है, कई बाहुबली अतीत का अध्याय बन चुके हैं। लेकिन कुछ का जलवा अभी भी अपने इलाके में कायम है। ऐसे बाहुबली नेताओं में सबसे पहला नाम आता है, कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का।

साल 1993 में अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले प्रतापगढ़ जनपद स्थित भदरी रियासत के उत्तराधिकारी राजा भैया मात्र 24 साल की उम्र में पहली बार निर्दलीय विधायक बने थे। ये वो दौर था, जब यूपी की राजनीति मंडल बनाम कमंडल में मोटे तौर पर बंटी थी। ऐसे सियासी माहौल में राजा भैया ने अपनी स्वतंत्र पहचान कायम की। इसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1993 से लेकर 2022 तक यूपी की सियासत में कई दलों के पक्ष में तूफानी जनादेश आया, लेकिन इनमें से किसी में इतनी ताकत नहीं थी, जो राजा भैया को विधानसभा पहुंचने से रोक सके।

यूपी जैसे विशाल प्रदेश में अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित करने वाले रघुराज प्रताप सिंह के बारे में जितने किस्से और कहानियां अफवाहों के शक्ल में उड़ती हैं, भारत में शायद ही किसी राजनेता के बारे में ऐसा सुनने को मिलता होगा। साल 2022 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में राजा भैया पहली बार किसी दल के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरे थे। जनता एकबार फिर उनपर अपना भरोसा जताते हुए सातवीं बार विधानसभा पहुंचाया। तो आइए एक नजर शाही घराने से आने वाले इस राजनेता के अब तक के सफर पर डालते हैं।

Raja Bhaiya (photo: social media )

राजा भैया का परिवार

राजा भैया जिनका एक नाम तूफान सिंह भी है, का जन्म 31 अक्टूबर 1967 को भादरी रियासत में हुआ था। उनके पिता का नाम उदय प्रताप सिंह और माता का नाम मंजुल राजे है। उनकी मां भी राजघराने से आती हैं। उनके पास पैतृक संपत्ति समेत लगभग 200 करोड़ से ज्यादा की चल-अचल संपत्ति होने का अनुमान है। राजा भैया अपने माता-पिता की अकेली संतान हैं।

उनकी पत्नी भानवी कुमारी बस्ती शाही घराने से आती हैं। राजा भैया के चार बच्चे हैं, दो बेटे और दो बेटियां। राघवी कुमारी उनकी सबसे बड़ी बेटी है। उनकी दूसरी बेटी का नाम बृजेशवरी है। बेटों का नाम शिवराज प्रताप सिंह और बृजराज प्रताप सिंह है। राजा भैया अपने शाही शौक के लिए भी जाने जाते हैं। उन्हें घुड़सवारी, शूटिंग, प्लेन उड़ाना, जंगल सफारी और शिकार करने का शौक है। कई बार उनका ये शौक उनके जीवन पर खतरा भी बन चुका है।

Raja Bhaiya (photo: social media)

दादा थे राज्यपाल और पिता थे हिंदुवादी नेता

रघुराज प्रताप सिंह के दादा राजा बजरंग बहादुर सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। आजादी के बाद जब हिमाचल प्रदेश अलग राज्य बना तो वे उसके राज्यपाल बने थे। उनके पिता राजा उदय प्रताप सिंह कभी सक्रिय राजनीति में नहीं आए। इसके बजाय वो विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़े रहे और इन संगठनों में अहम पदों पर काम किया। उदय प्रताप सिंह की छवि इलाके में एक दबंग और कट्टर छवि के राजनेता की थी।

राजनीति में आने के खिलाफ थे पिता

भदरी रियासत के कुंवर राजा भैया कानून की डिग्री हासिल करने के बाद सक्रिय राजनीति में उतरना चाहते थे, लेकिन उनके पिता इसके लिए तैयार नहीं थे। कहा तो ये भी जाता है कि पिता उदय प्रताप सिंह अपने बेटे की शिक्ष के भी खिलाफ थे, लेकिन उनकी मां ने उन्हें शिक्षा से वंचित नहीं होने दिया। एक दिन राजा भैया ने अपने पिता के सामने चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की, पिता ने उन्हें गुरूजी से अनुमति लेने को कहा। वहां से अनुमति मिलने के बाद साल उत्तर प्रदेश की सियासत में साल 1993 में रघुराज प्रताप सिंह का सियासी सफर शुरू हुआ।

Raja Bhaiya (photo : social media )

कुंडा के किंग बने राजा भैया, सात बार जीत चुके हैं चुनाव

साल 1993 के बाद से कुंडा और राजा भैया एक दूसरे के पूरक बन चुके हैं। साल 1993 में शुरू हुआ जीत का क्रम साल 2022 तक जारी है। चुनाव दर चुनाव उनके जीत का मार्जिन बढ़ता गया। हालांकि, इस साल हुए विधानसभा चुनाव में उनका मार्जिन पहले से कम हो गया, फिर भी सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के जोड़ लगाने के बावजूद वो जीतने में कामयाब रहे। राजा भैया की सबसे बड़ी खासियत ये रही कि वो निर्दलीय जीतने के बावजूद मंत्री पद हासिल कर लेते थे।

यूपी की राजनीति ने जिस समय जैसी करवट ली, राजा भैया ने अपने आप को उस हिसाब से ढाल लिया। 1996 के विधानसभा चुनाव में जिस कल्याण सिंह ने उन्हें कुंडा का गुंडा बताकर लोगों से उन्हें हराने की अपील की, चुनाव बाद वो उन्हीं के कैबिनेट में नजर आए। बीजेपी में राजनाथ सिंह का कद बढ़ने के बाद वो उनके करीब चले गए और उनकी सरकार में भी मंत्री बन गए। बीजेपी के सत्ता से बाहर होने के बाद एकबार फिर उन्होंने अपना सियासी आका बदला और मुलायम सिंह यादव के करीब चले गए। जिसके कारण वो पहले मुलायम सिंह यादव की कैबिनेट में और फिर उनके बेटे अखिलेश यादव की कैबिनेट में मंत्री बने।

कुंडा में परिवार का रसूख कायम

कुंडा स्थित राजा भैया के आवास को बेंती कोठी कहा जाता है। जहां पर पहले उनके दादा, फिर पिता और अब वो जनता दरबार लगाया करते हैं। आज भी सप्ताह में दो बार ये दरबार लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में फरियादी जुटते हैं। न्याय तंत्र सुलभ होने के बावजूद अभी भी वहां की जनता कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने की बजाय राजा भैया की अदालत में न्याय के लिए पहुंचती है। उनके दरबार में जमीन, परिवार से लेकर तमाम तरह के विवाद के मामले आते हैं, जिनका न्यायपूर्वक वो निपटारा करते हैं।

राजा भैया के इसी बेंती कोठी आवास के पीछे 600 एकड़ का तालाब है। जिसके बारे में कई खौफनाक किस्से मशहूर हैं। माना जाता था कि उस तालाब में राजा भैया ने घड़ियाल पाल रखे थे और अपने दुश्मनों को उसी तालाब में फेंक देते थे। इस तालाब से एकबार नरकंकाल मिलने के बाद इन अफवाहों ने और जोर पकड़ा। हालांकि, राजा भैया इस बात को लोगों का मानसिक दिवालियापन बताते हैं। वो बताते हैं कि एकबार 1990 के दशक में पूर्व पीएम चंद्रशेखर के सामने बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव ने उनसे तालाब में घड़ियाल रखने की बात पूछी थी।

Raja Bhaiya (photo: social media )

मायावती की सरकार में कसा था शिकंजा

राजा भैया का यूपी की राजनीति में बसपा सुप्रीमो मायावती से छ्त्तीस का आंकड़ा रहा है। मायावती ने अपने शासनकाल में राजा भैया और उनके पिता को अपहरण और धमकाने के मामले में जेल भेज दिया था। पिता के महल और भदरी कोठी पर पुलिस के छापे भी पड़े। मायावती सरकार ने राजा भैया पर पोटा जैसा कठोर कानून लगा दिया था। उनपर गैंगस्टर एक्ट के तहत भी मामला दर्ज हुआ था। हालांकि, मुलायम सिंह यादव की सरकार आने के बाद उनपर लगे पोटा कानून की धाराओं को खत्म कर दिया गया। राजा भैया जब जेल से छूट थे, तब उनके समर्थकों ने नारा लगाया था, 'जेल का ताला टूट गया, राजा भैया छूट गया'।

विवादों से रहा है गहरा नाता

राजा भैया लंबी-चौड़ी हिस्ट्रीशीट रखने वाले बाहुबली राजनेता हैं। उनपर 47 मुकमदे दर्ज हैं। वो किसी न किसी मामले को लेकर विवाद में आते रहे हैं। साल 2012 में कुंडा में डीएसपी जिया उल-हक की हत्या कर दी गई थी। उनके क्षेत्र में हुए इस हत्याकांड की गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी। राजा भैया मीडिया में खलनायक की तरह पेश किए जाने लगे थे। उस दौरान वो सपा सरकार में मंत्री हुआ करते थे। दवाब में आकर अखिलेश यादव ने उनसे इस्तीफा ले लिया। इस मामले की सीबीआई जांच कराई गई। जिसमें राजा भैया को क्लीनचिट मिल गई। नतीजतन ने उन्हें 8 माह बाद फिर से मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया था।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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