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Jhansi News: पहले बंगला फ्यून, फिर बीस साल में बन गए ओएस, रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने शुरू की जांच
Jhansi News: मामले की जानकारी रेलवे बोर्ड की बिजिलेंस और मुख्यालय विजिलेंस को हुई तो उन्होंने गोपनीय स्तर से उक्त मामले की जांच शुरु कर दी है। इसकी भनक लगते ही कार्मिक विभाग में हड़कंप मच गया है।
Jhansi News: रेलवे में चली आ रही ब्रिटिश युग की विरासत का फायदा 2020 से पहले सैकड़ों लोगों ने उठाया है। इनमें कई ऐसे लोग शामिल है जिन्हें पहले बंगला फ्यून बनाया गया। इसके बीस साल बाद वह कार्यालयाध्यक्ष बन गया। इस मामले की जानकारी रेलवे बोर्ड की बिजिलेंस और मुख्यालय विजिलेंस को हुई तो उन्होंने गोपनीय स्तर से उक्त मामले की जांच शुरु कर दी है। इसकी भनक लगते ही कार्मिक विभाग में हड़कंप मच गया है। बिजिलेंस टीम ने वर्ष 2003 से लेकर 2023 तक के दस्तावेजों की जांच शुरु कर दी है। यह पता लगाया जा रहा है कि किन-किन बंगला फ्यून को कहां और किस आधार पर प्रमोशन दिया गया है।
रेलवे में ब्रिटिश काल से चली आ रही लाटशाही का जलवा रहा कायम
मालूम हो कि चपरासी टेलीफोन अटेंडेंट-कम-डाक खलासी को शुरुआती 120 दिनों की सेवा के बाद ग्रुप डी श्रेणी में भारतीय रेलवे के अस्थायी कर्मचारी के रूप में माना जाता था। तीन साल की सेवा पूरी होने पर स्क्रीनिंग टेस्ट के बाद पोस्टिंग स्थायी मानी जाती थी। इस तरह वह व्यक्ति सीधे तौर पर रेलवे का हिस्सा बन जाता है। बाद में उसके पास शैक्षणिक योग्यता और विभागीय परीक्षाओं को पार करते हुए आगे बढ़ने का पूरा मौका होता है। वर्ष 2020 से पहले झाँसी रेल मंडल में कुछ रेलवे अधिकारियों ने बंगला फ्यून पर युवकों को भर्ती कर लिया था। 120 दिनों की सेवा के बाद ग्रुप डी श्रेणी में भारतीय रेलवे के अस्थायी कर्मचारी के रुप में माना जाने लगे थे। इनमें रेलवे में एक ऐसा कर्मचारी शामिल है जिसे लगातार प्रमोशन मिलता ही जा रहा है।
रेलवे बोर्ड बिजिलेंस और मुख्यालय विजिलेस की नजर ओएस पर
बताते हैं कि बंगला फ्यून के तीन साल बाद उसे चपरासी बनाया गया। चपरासी के बाद उसे सिक फिट की चार्ज दिया गया। कुछ साल बाद उसे जूनियर लिपिक बनाया गया। यही नहीं, सीनियर क्लर्क बनाया गया। इसके बाद वह 2023 में कार्यालयाध्यक्ष बनाया गया है। जबकि नियम यह है कि एक पद पर ज्यादा से ज्यादा चार से पांच साल तक तैनाती हो सकती हैं। इसके बाद तबादला कर दिया जाता हैं मगर रेलवे के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए उक्त रेल कर्मचारी को फायदा दिया है। इस समय वह दलाली प्रथा स्कीम का काम कर रहा हैं। हालांकि 2020 के बाद बंगला फ्यून की भर्ती नहीं की गई है। इतने कम समय में प्रमोशन मिलने के मामले की जानकारी रेलवे बोर्ड की बिजिलेंस और मुख्यालय बिजिलेंस के संज्ञान में लायी गयी तो बिजिलेंस अफसरों में हड़कंप मच गया है।
2020 में बंद हो गई रेलवे में बंगला फ्यून प्रथा
सूत्रों का कहना है कि बिजिलेंस ने इन बिन्दुओं को लेकर गोपनीय जांच शुरु कर दी है। यह पता लगाया जा रहा है कि इस कर्मचारी को किस अफसर ने अपने बंगला फ्यून पर भर्ती किया था। इसके बाद उसको किन-किन आधारों पर प्रमोशन मिला है और किन अफसरों ने किस आधार पर प्रमोशन दिया है। इसी रेल कर्मचारी को क्यों दिया गया है? बाकी रेल कर्मचारियों के साथ धोखा क्यों रखा गया ?
इस रेल कर्मचारी ने बना ली है बेसुमार संपत्ति?
बीस साल के दौरान इस रेल कर्मचारी ने बेसुमार संपत्ति कर रखी है। इनमें आलीशान मकान भी शामिल है। इतना पैसा कहां से आया है। इसकी बिजिलेंस भी अपने स्तर से जांच कर रही हैँ। सूत्र बताते हैं कि यह सब दलाली प्रथा के तहत संपत्ति बनाई गई है। इसमें एक चिकित्सक भी शामिल है? उसे चिकित्सक का दलाल कहा जाता है?
अब बंद हो गई बंगला चपरासी की प्रथा
मालूम हो कि भारतीय रेलवे ने वरिष्ठ अधिकारियों के आवासों पर टेलीफोन अटेंडेंट-कम-डाक खलासी के रूप में तैनात किए जाने वाला “बंगला चपरासी” को देने के अभ्यास को समाप्त करने का निर्णय लिया था। रेलवे बोर्ड द्वारा 6 अगस्त को ब्रिटिश-युग की विरासत की समीक्षा के बाद बकायदा एक आदेश जारी कर इसे बंद करने की बात कही थी। इसमें यह बात कही जा रही है कि रेलवे अधिकारियों ने टेलीफोन अटेंडेंट-कम-डाक खलासी की सेवाओं का दुरुपयोग करने की कोशिश की थी।
बार-बार मरीज को रेफर करने की जांच करने आएगी टीम?
रेलवे के मंडल चिकित्सालय में एक डॉक्टर द्वारा मरीजों को बार-बार रेलवे अस्पताल से दूसरे अस्पताल के लिए रेफर किया जा रहा था। इस मामले की जानकारी तत्कालीन डीआरएम और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक को हुई तो उन्होंने आपत्ति दर्ज की थी। साथ ही उक्त चिकित्सक को आदेश दिया था कि मरीज को रेफर नहीं करेंगे। इस मामले को मुख्यालय के अफसरों के संज्ञान में लाया गया। शुक्रवार को प्रयागराज से चिकित्सकों की एक टीम झाँसी आ रही हैं। वह टीम उक्त मामले की जांच करेगी। जांच में कौन-कौन दोषी पाया जाता है? तो उसके खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है।
किन-किन रेलकर्मचारियों को कराई गई ब्रेल लिपि की ट्रेनिंग
रेलवे का मानना है कि किसी भी रेल कर्मचारी को डॉक्टर के पैनल ने अंधा पाया है तो उसे ब्रेल लिपि की ट्रेनिंग कराई जाती है। पूर्व में कई रेल कर्मचारी ब्रेल लिपि की ट्रेनिंग कर चुके हैं। इनमें कुछ लोग ऐसे भी शामिल है जिन्हें ब्रेल लिपि की ट्रेनिंग नहीं कराई गई। ट्रेनिंग करने के बाद उन्हें कार्मिक विभाग में सेवा करने का मौका दिया जाता है। मालूम हो कि रेलवे के विकलॉग कोटा में तीन प्रतिशत ही भर्ती होते हैं।
यह मामला उनकी संज्ञान में नहीं
इन मामलों में झाँसी रेल मंडल के जनसंपर्क अधिकारी मनोज कुमार सिंह ने जानकारी ली गई तो उनका कहना है कि यह मामला उनकी संज्ञान में नहीं है, अगर संज्ञान में आता है तो संबंधित विभाग के अफसरों से जानकारी ली जाएगी। जानकारी मिलते ही इसका जवाब दिया जाएगा।