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रेलवे क्रॉसिंग के गेटमैन की जिंदगी का सच, गेट की पहरेदारी में बीत रही जिंदगी

raghvendra
Published on: 21 Dec 2018 3:19 PM IST
रेलवे क्रॉसिंग के गेटमैन की जिंदगी का सच, गेट की पहरेदारी में बीत रही जिंदगी
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धर्मेन्द्र सिंह

लखनऊ: दोपहर के ढाई बजे हैं। अंबेडकर यूनिवर्सिटी के पास बिजनौर रोड की रेलवे क्रॉसिंग से अभी-अभी एक मालगाड़ी गुजरी है। क्रॉसिंग के गेटमैन शोभित यादव लाल-हरी झंडियां गेट केबिन में रखकर फाटक का गेट खोलने में जुट जाते हैं। गेट खुलने से पहले ही दोनों तरफ से लोग जल्दी-जल्दी आगे निकलने लगते हैं।

शोभित यादव कई सरकारी नौकरियों का टेस्ट दे चुके हैं, लेकिन किसी न किसी लेवल पर असफल हो गए। सेना की नौकरी के सबसे करीब तब पहुंचे थे जब नॉन टेक्निकल जॉब की परीक्षा पास भी कर ली थी, लेकिन मेडिकल में फेल हो गए। रेलवे में ग्रुप डी वैकेंसी निकली तो अप्लाई किया। यहां सफलता मिली और २०१३ से शोभित गेटमैन हैं। पहले वह बस्ती में किसी क्रॉसिंग की देखभाल करते थे और अब २०१३ से बिजनौर क्रॉसिंग के गेटमैन हैं।

मालगाड़ी निकल चुकी है। क्रॉसिंग की भीड़ भी छंट चुकी है। शोभित अब इत्मिनान से गेट केबिन में बैठकर पानी पीते हैं। अगली ट्रेन की घंटी बजने तक की फुरसत है। तभी आलमनगर स्टेशन मास्टर का फोन आ जाता है। इसके बाद शोभित किसी और अधिकारी से फोन पर बात करने लगे। पूछने पर बताया कि अभी जो मालगाड़ी गुजरी है, उसी के आगे कूदकर किसी युवती ने आत्महत्या करने की कोशिश की है। बुरी तरह जख्मी युवती इस गेट से करीब दो किमी दूर पटरी के किनारे पड़ी हुई है। शोभित कई और जगह फोन मिलाकर बातचीत में व्यस्त हो जाते हैं। मसला है कि घायल युवती को कैसे अस्पताल पहुंचाया जाए और उसके परिवार वालों को कैसे सूचित किया जाए।

घर के आसपास नहीं मिलता साधन

शाम को ड्यूटी खत्म होने के बाद शोभित पूरी फुरसत में हो जाते हैं। बताते हैं कि वह कानपुर देहात जिले के रहने वाले हैं। उनके पिता चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में बतौर सीनियर क्लर्क काम कर रहे हैं। घर में मां, दो भाई और दो बहने हैं। शोभित घर में सबसे छोटे हैं। भाई प्राइवेट नौकरी करते हैं। शोभित, अपनी पत्नी और साल भर की बेटी के संग रेलवे के दो कमरे के मकान में रहते हैं। क्वार्टर जहां है वहां पर नजदीक कोई यातायात का साधन नहीं है। रात में कोई बात हो गई तो पड़ोसी की बाइक या कोई गाड़ी लेकर जाना पड़ता है। रेलवे क्वार्टर से करीब डेढ़ किमी पैदल चलकर जाने पर आने जाने के लिए कोई गाड़ी मिलती है।

स्वस्थ रहने के लिए करते हैं योगासन

शोभित की ड्यूटी हफ्ते में तीन दिन बिजनौर रोड क्रॉसिंग और दो दिन आलमनगर क्रॉसिंग पर रहती है। ड्यूटी टाइम सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक का है। आठ बजे ड्यूटी पर पहुंचने से पहले शोभित के दिन की शुरुआत सुबह ५ बजे से हो जाती है। सुबह की रूटीन में टहलना और योगा शामिल है। शोभित बताते हैं कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में स्वस्थ रहने के लिए सभी उपाय करना जरूरी है। टहलने व योगाभ्यास के बाद नहा-धोकर नाश्ता करते हैं। वर्दी पहनकर योग्यता प्रमाणपत्र जेब में सहेज कर रखते हैं और टिफिन लेकर साढ़े सात बजे साइकिल से क्रॉसिंग गेट के लिए निकल जाते हैं, जो २ किमी दूर है। आलमनगर क्रॉसिंग करीब १२ किमी दूर है सो वहां की ड्यूटी वाले दिन जरा जल्दी घर से निकलना होता है। शोभित बताते हैं कि इस ड्यूटी में वर्दी और प्रमाणपत्र बहुत जरूरी है।

शोभित बताते हैं कि ड्यूटी टाइम में वह गेट छोडक़र कहीं नहीं जा सकते। वे बताते हैं कि हमारा काम सिर्फ गेट बंद करना-खोलना ही नहीं है। जब कोई ट्रेन यहां से गुजरती है तो हमें यह भी देखना होता है कि ट्रेन में कोई गड़बड़ी तो नहीं है। कुछ भी खराबी दिखाई देने पर इंजन ड्राइवर और गार्ड को एलर्ट करने के लिए लाल झंडी दिखाना, रात में रेड लाइट जलाना, सीटी बजाना, चिल्लाना, गिट्टी फेंकना जैसे भी हो उनका ध्यान खींचने की कोशिश करते हैं।

सुननी पड़ती हैं लोगों की गालियां

शोभित बताते हैं कि ड्यूटी के दौरान अक्सर ऐसा होता है कि गेट बंद होने पर कोई गाली बकने लगता है। बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती है कि सबके सामने गाली सुननी पड़ती है, लेकिन क्या करें लड़ाई तो कर नहीं सकते। कई बार रेलवे अधिकारियों से गुहार लगाई है कि आरपीएफ का एक सिपाही भी २४ घंटे तैनात किया जाए, लेकिन कोई सुनता नहीं है।

शोभित बताते हैं कि वह न तो इस नौकरी से खुश हैं न इसकी तनख्वाह से। इसीलिए वह दूसरी नौकरी की भी तैयारी में जुटे रहते हैं। शोभित बताते हैं कि बेटी जहां तक पढ़ेगी उसे पढ़ाऊंगा और बड़ी होकर जो बनना चाहेगी उसको मैं बनाने की कोशिश करूंगा। इच्छा है कि बेटी एक खिलाड़ी बने। आती-जाती ट्रेनों को देखते हुए शोभित दार्शनिक अंदाज में कहते हैं- मेरी ही नहीं, सबकी जिंदगी ऐसी ही भागी चली जा रही है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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