राम शिरोमणि शुक्ल
रायपुर: छत्तीसगढ़ में आजकल जबरिया सेवानिवृत्ति पर चर्चा गरम है। राज्य के कर्मचारी जबरिया सेवानिवृत्ति देने के सरकारी आदेश के खिलाफ सड़कों पर उतर कर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं। कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार भेदभाव पूर्ण तरीके से सेवानृत्ति की नीति लागू कर रही है। जिस आरोप में कुछ कर्मचारियों को जबरिया सेवानिवृत्ति दी जा रही है, उससे भी बड़े आरोपों वाले कर्मचारियों-अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। इतना ही नहीं, बड़े दागियों को पदोन्नति तक सरकार दे रही है। इससे सरकार की मंशा साफ पता चलती है।
जबरिया सेवानिवृत्ति की सरकार की कार्रवाई के कर्मचारियों के विरोध को उस समय और ज्यादा ताकत मिली, जब राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग ने पूरे मामले की जांच शुरू कर दी। आयोग ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव विवेक ढांड एवं डीजीपी को नोटिस जारी कर 15 दिनों के भीतर इस मुद्दे पर जवाब मांगा है।
आयोग के मुख्य अवर सचिव डीएस कुमारे ने नोटिस में चेतावनी दी है कि अगर तय समय में जवाब नहीं मिला, तो आयोग भारत के संविधान द्वारा प्राप्त शक्तियों का उपयोग भी कर सकता है और उपस्थित होने के लिए समन भी जारी कर सकता है। वैसे जबरिया सेवानिवृत्ति का मुद्दा बहुत पहले से राज्य के कर्मचारियों में रहा है। लेकिन राज्य सरकार के एक ताजा फैसले से यह उभरकर सामने आ गया।
हाल ही में खराब सीआर और लोकहित में अच्छा काम न करने के बहाने सरकार ने एक झटके में 42 पुलिस अधिकारियों को जबरिया सेवानिवृत्ति का आदेश दे दिया।
इनमें 15 टीआई, 19 एएसआई और 09 एसआई शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि इनमें 34 पुलिस अधिकारी एससी-एसटी वर्ग के हैं। इसी आधार पर नौकरी से हटाए गए पुलिसकर्मियों ने सरकार पर आरोप लगाया कि कार्रवाई भेदभावपूर्ण है। पुलिसकर्मियों ने राज्यपाल से भी शिकायत की कोशिश की, लेकिन मुलाकात संभव नहीं हो सकी। उसके बाद इन कर्मचारियों ने एससी-एसटी आयोग का दरवाजा खटखटाया और अपनी शिकायत दर्ज कराई।
इसके बाद ही आयोग ने सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इससे पहले भी सरकार कुछ कर्मचारियों-अधिकारियों को जबरिया सेवानिवृत्ति दे चुकी है। सरकार की ओर से ठीक से काम न करने और भ्रष्टाचार के आरोपों के आधार पर प्रमुख सचिव स्तर के दो आईएएस अधिकारियों को नौकरी से हटाया जा चुका है।
इनमें एक 1986 बैच के आईएएस अजय पाल सिंह और 1988 बैच के बाबूलाल अग्रवाल को सेवानिवृत्ति दी गई। इन्हें मिलाकर बीते तीन साल में छत्तीसगढ़ में पांच अधिकारियों को जबरिया सेवानिवृत्ति दी जा चुकी है, जिनमें तीन आईपीएस और दो आईएएस हैं। सबसे पहले आईपीएस अधिकारी राजकुमार देवांग को नौकरी से हटाया गया। इसके बाद केसी अग्रवाल और एएम जूरी को हटाया गया। इसके अलावा, वन विभाग में 05 एसडीओ, 19 रेंजर और 22 तृतीय श्रेणी कर्मचारियों को जबरिया सेवानिवृत्ति का आदेश दिया जा चुका है। इससे कर्मचारियों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है।
केंद्र की तर्ज पर काम की समीक्षा
दरअसल, केंद्र की तर्ज पर राज्य सरकार राज्य सेवा के अधिकारियों की काम की समीक्षा कर रही है। राज्य शासन द्वारा 50 वर्ष की आयु तथा 20 वर्ष की सेवा पूरी करने वाले सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों के काम की समीक्षा कर यह देख रही है कि वे ईमानदारी पूर्वक काम कर रहे हैं अथवा नहीं। अगर नहीं, तो उन्हें सेवानिवृत्ति दे देने के बारे में तय किया गया है।
छानबीन में शारीरिक क्षमता में कमी होना, शासकीय सेवक के वार्षिक प्रतिवेदन में संपूर्ण सेवाकाल के अभिलेखों का समग्र मूल्यांकन अच्छी श्रेणी से कम होने आदि की पड़ताल की जाएगी और ऐसा पाए जाने पर जबरिया सेवानिवृत्ति का आदेश दे दिया जाएगा। सरकार की ओर से छानबीन समिति गठित की गई है। समिति के गोपनीय प्रतिवेदन संबंधित विभागाध्यक्षों को सौंपे जाएंगे। बाद में संभाग स्तर पर राजस्व कमिश्नर और जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में छानबीन होगी। उसके बाद आई संस्तुतियों के आधार पर कार्रवाई की जाएगी।
छत्तीसगढ़ शासन के सामान्य प्रशासन विभाग मंत्रालय, नया रायपुर द्वारा मुख्य सचिव विवेक ढांड के आदेशानुसार समस्त कलेक्टरों एवं विभागाध्यक्षों को पत्र भेजा गया था।
राज्य शासन के निर्णय के मुताबिक प्रतिवर्ष 1 जनवरी और 1 जुलाई की स्थिति में 50 वर्ष की आयु अथवा 20 वर्ष की सेवा पूर्ण करने वाले शासकीय सेवकों की जबरिया सेवानिवृत्ति के संबंध में मूलभूत नियम 56 तथा छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1976 के नियम 42 के तहत उनके सेवा अभिलेखों की छानबीन समिति द्वारा की जानी है और पालन प्रतिवेदन सामान्य प्रशासन विभाग को अनिवार्य रूप से भेजा जाना है।
सामान्य प्रशासन विभाग ने इस बारे में विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए हैं। कई विभागों में कार्यरत कर्मचारियों के संबंध में शिकायतें लंबित रही हैं। उनके कार्य में लापरवाही की शिकायतें आती रही हैं। इस सबके मद्देनजर सरकार की ओर से यह कार्रवाई की जा रही है।
पार्टियां भी कूदीं
जबरिया सेवानिवृत्ति के मुद्दे पर राजनीतिक पार्टियां भी सरकार के खिलाफ खड़ी हो गई हैं। राजनीतिक दलों का भी आरोप है कि सरकार भ्रष्ट अधिकारियों को बचाती रहती है और भेदभावपूर्ण तरीके से कर्मचारियों को निशाना बनाती है।
कांग्रेस का कहना है कि भेदभावपूर्ण तरीके से किसी भी कर्मचारी के खिलाफ नहीं की जानी चाहिए। शासकीय सेवकों को दोषसिद्ध होने से पहले ही जबरिया सेवानिवृत्ति देना असंवैधानिक और अन्यायपूर्ण है।
भाजपा सरकार संविधान के अनुच्छेद 311 का उल्लंघन कर रही है। कांग्रेस ने यह सवाल भी उठाया कि क्या सरकार भ्रष्टाचार के आरोपी मंत्रियों के खिलाफ भी इसी तरह कार्रवाई करेगी। आईएएस, आईपीएस और राज्य सेवा के सैकड़ों अधिकारियों के खिलाफ एसीबी और ईओडब्ल्यू में करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार के मामले दर्ज या लंबित हैं। सरकार उन्हें प्रमोट कर रही है और छोटे कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। यह उचित नहीं है।
छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस की ओर से जबरिया सेवानिवृत्ति का विरोध किया गया है। पार्टी की ओर से कहा गया है कि भाजपा सरकार विभिन्न शासकीय विभागों के कर्मचारियों पर अक्षमता और भ्रष्ट व्यवहार का आरोप लगाकर जबरिया सेवानिवृत्ति दे रही है। यह गलत है। किसी की रोजी-रोटी को गैरवाजिब कारण बताकर छीनना अमानवीय है।