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प्रयागराज : राज्यपाल राम नाईक ने नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश को दिलायी शपथ
प्रयागराज : उच्च न्यायालय इलाहाबाद के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोविन्द माथुर ने बुधवार को 34 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। न्यायिक और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बड़ी संख्या में उपस्थित अधिवक्ताओं से खचाखच भरे मुख्य न्यायाधीश कक्ष में सुबह 9.30 बजे प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर को पद और गोपनीयता की शपथ दिलायी।
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मालूम हो कि न्यायमूर्ति माथुर 21 नवम्बर 2017 को राजस्थान उच्च न्यायालय से स्थानान्तरित होकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय आए थे। उच्च न्यायालय में वह बतौर वरिष्ठ न्यायमूर्ति कार्य कर रहे थे। 23 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश डी बी भोसले के सेवानिवृत्त होने के पश्चात वरिष्ठ न्यायमूर्ति गोविन्द माथुर को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। उन्होंने 24 अक्टूबर 2018 को बतौर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश शपथ ली थी। 29 अक्टूबर 2018 को कोलेजियम ने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोविन्द माथुर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाए जाने की संस्तुति कर दी। इसके बाद केन्द्रीय विधि मंत्रालय ने उनकी नियुक्ति की अधिसूचना भी जारी कर दी।
बता दें कि 02 सितम्बर 2004 में राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति बनने से पहले नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोविन्द माथुर जोधपुर स्थित राजस्थान उच्च न्यायालय में संवैधानिक, सर्विस एवं श्रमिक मामलों की वकालत कर रहे थे। वह राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर, इंडियन आॅयल कारपोरेशन, एनसीटीई, राजस्थान विद्यापीठ, सेंट्रल बैंक आॅफ इंडिया, वाॅटर एण्ड पाॅवर कंसल्टेंसी सर्विस दिल्ली, भीलवाड़ा सेंट्रल कोआॅपरेटिव बैंक, थार आंचलिक ग्रामीण बैंक एवं पंजाब नेशनल बैंक के वकील रहे। शपथ ग्रहण समारोह में वरिष्ठ न्यायमूर्ति विक्रम नाथ के साथ तमाम न्यायमूर्ति, न्यायिक अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा वरिष्ठ और कनिष्ठ अधिवक्ता एवं उनके परिवारीजन शामिल रहे।
दारोगा अवमानना का दोषी करार-कोर्ट ने सुनायी सजा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फिरोजाबाद के शिकोहाबाद थाने में तैनात दरोगा अशोक कुमार को अवमानना का दोषी करार दिया है और एक हजार रूपये जुर्माने के साथ एक माह के कारावास की सजा सुनाई है। कोर्ट ने याची को सजा के खिलाफ अपील दाखिल करने का समय देते हुए सजा के अमल को एक माह के लिए स्थगित रखने का आदेश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने रामपाल की अवमानना याचिका पर दिया है। कोर्ट ने शादीशुदा याचीगण के खिलाफ अपहरण के आरोप में दर्ज प्राथमिकी के तहत पुलिस रिपोर्ट पेश होने तक गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद आरोपी दारोगा ने कुमारी अंजु को गिरफ्तार कर लिया और बिना कोर्ट का आदेश लिए पाॅस्को एक्ट के तहत गिरफ्तारी दिखायी और कोर्ट आदेश की अवहेलना से बचने के लिए कोर्ट का सहारा लेने का प्रयास किया। जबकि अन्य दस्तावेजों में याची बालिग थी। पाॅस्को कोर्ट में बयान भी दर्ज हुआ। पीड़िता 19 साल की है और अपनी मर्जी से शादी की है।
कोर्ट ने विवेचना में सहयोग करने का आदेश देते हुए याचियों की पुलिस रिपोर्ट पेश होने तक गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। आदेश की जानकारी के बावजूद आरोपी दारोगा ने आदेश की अवहेलना की। जिस पर कोर्ट ने उसे अवमानना का दोषी करार देते हुए संज्ञा सनायी है।
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कोर्ट आदेश की अवहेलना के लिए दारोगा अवमानना का दोषी करार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाहजहांपुर के कटरा थाने में तैनात दारोगा विनीत मलिक को अवमानना का दोषी करार दिया है और एक हजार रूपये जुर्माने के साथ 15 दिन के कारावास की सजा सुनायी है। कोर्ट ने सजा के खिलाफ आरोपी दारोगा को अपील का समय देते हुए एक माह तक सजा के अमल को स्थगित रखा है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने अर्जुन सिंह मौर्या की अवमानना याचिका पर दिया है। याचीगण ने अपनी मर्जी से शादी की किन्तु लड़की के परिवार ने कटरा थाने में याची पर अपहरण करने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज करायी। जिस पर याचियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। कोर्ट ने याची को विवेचना में सहयोग करने का आदेश देते हुए पुलिस रिपोर्ट पेश होने तक उत्पीड़नात्मक कार्यवाही पर रोक लगा दी थी और कहा विवेचना तीन माह में पूरी की जाए। कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए विपक्षी दारोगा ने याची की गिरफ्तारी कर ली।
आरोपी ने बिना शर्त माफी मांगते हुए कहा कि वह चार साल से पुलिस सेवा में है, आदेश समझने में गलती हो गयी। भविष्य में ऐसी गलती नहीं दुहरायेगा। किन्तु कोर्ट ने कोर्ट आदेश की जानबूझकर अवहेलना करने का दोषी माना और सजा पर सफाई रखने का मौका दिया। कोर्ट ने आरोपी की सफाई को संतोषजनक नहीं माना और जान बूझकर आदेश की अवहेलना का दोषी मानते हुए सजा सुनायी है।
बीएड विशेष शिक्षा को टीईटी परीक्षा में बैठने की मिली अनुमति, एनसीटीई की अधिसूचना की वैधता पर जवाब तलब
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारतीय पुनर्वस परिषद से मान्य बीएचयू वाराणसी द्वारा जारी बीएड (विशेष शिक्षा) डिग्री धारकों को उ.प्र टीईटी परीक्षा 2018 में प्राविधिक रूप से शामिल होने की अनुमति देने का निर्देश दिया है। किन्तु कहा है कि परीक्षा में बैठने मात्र से याचियों को कोई अधिकार नहीं मिल सकेगा। कोर्ट ने राज्य सरकार व एनसीटीई से चार हफ्ते में याचिका पर जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति पी.के.एस बघेल तथा न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय की खण्डपीठ ने विजय श्याम पाल व दस अन्य लोगों की याचिका पर दिया है।
इससे पहले कोर्ट ने आशुतोष कुमार सिंह केस में दिये गये अन्तरिम आदेश के आधार पर याचियों को भी समानता के कारण उसका लाभ पाने का हकदार माना है। याचिका में एनसीटीई के 28 जून 2018 की अधिसूचना की वैधता को चुनौती दी गयी है।