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पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने किया राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन,कहा-युवा शक्ति के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका अहम
Ram Nath Kovind: संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व राष्ट्रपति ने राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका को काफी महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि युवा शक्ति के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है और शिक्षा व्यवस्था में होने वाले मूलभूत सुधारों के केंद्र में शिक्षक को ही होना चाहिए।
Varanasi News: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शुक्रवार को अंतर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र (आईयूसीटीई), काशी हिंदू विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया। शैक्षिक जगत के समक्ष उच्च शिक्षा में उभरती चुनौतियां विषय पर आयोजित इस दो दिवसीय में सौ से अधिक प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं।
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व राष्ट्रपति ने राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका को काफी महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि युवा शक्ति के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है और शिक्षा व्यवस्था में होने वाले मूलभूत सुधारों के केंद्र में शिक्षक को ही होना चाहिए।
राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्देश्य
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्देश्य वर्तमान समय में तथा आने वाले दिनों में शैक्षिक जगत के समक्ष उच्च शिक्षा में उभरती चुनौतियों को चिन्हित करने तथा उनके समाधान की दिशा में सार्थक विमर्श व भावी कार्ययोजना के संबंध में विचार मंथन करना है। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद थे जबकि आईयूसीटीई गवर्निंग बोर्ड के चेयरमैन और प्रख्यात शिक्षाविद प्रो.जगमोहन सिंह राजपूत ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। दो दिवसीय संगोष्ठी के दौरान 15 विषय विशेषज्ञों का व्याख्यान भी होगा।
अहंकार रहित होकर सीखने पर जोर
मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि जीवन में सीखने और सिखाने का काफी महत्व है और शिक्षक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य चिंतन और मनन करना है। उन्होंने वर्तमान में जीने पर महत्व देते हुए कहा कि हर व्यक्ति को अहंकार से रहित होकर हर समय सीखने के लिए तत्पर रहना चाहिए। उन्होंने मातृभाषा में शिक्षा देने पर जोर देते हुए कहा कि इससे छात्र को सीखने में आसानी होती है। इसलिए मातृभाषा में शिक्षा देने की प्रक्रिया को अपनाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि शिक्षक समाज में सम्मान पाने के हकदार हैं और समाज के विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए सभी स्तरों पर शिक्षकों को हमारे समाज के सबसे सम्मानित और आवश्यक सदस्यों के रूप में फिर से स्थापित किया जाना चाहिए क्योंकि वे वास्तव में नागरिकों की हमारी अगली पीढ़ी को आकार देते हैं।
चुनौतियों का समाधान पेश करें शिक्षाविद
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए देश के प्रमुख शिक्षाविद और आईयूसीटीई गवर्निंग बोर्ड के चेयरमैन प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत ने कहा कि शिक्षाविदों को राष्ट्र और राष्ट्र के लोगों के सामने मौजूद चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करना चाहिए। शिक्षाविदों को आगे आकर चुनौतियों से लड़ने की राह दिखाने की जिम्मेदारी निभानी होगी। उन्होंने कहा कि एकेडमिक क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती अपने भीतर उम्मीदों को बनाए रखना है और दूसरों को राह दिखाना है। इसके लिए इतिहास, विरासत, संस्कृति, ज्ञान निर्माण और पीढ़ीगत परंपरा के गहन अध्ययन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि शिक्षाविदों को अपनी पुरानी साख को पुनर्स्थापित करना होगा। उन्होंने शिक्षाविदों से अपील की कि वे उच्च शिक्षा संस्थानों की विश्वसनीयता को एक बार फिर से उन्नत स्तर पर पहुंचाने के लिए कड़ी मेहनत करें।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र की चुनौतियों की चर्चा
अंतर विश्वविद्यालय शिक्षा केंद्र के निदेशक प्रो.प्रेम नारायण सिंह ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सहित राष्ट्रीय संगोष्ठी में आए अन्य गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में मौजूद चुनौतियों का जिक्र करते हुए इस विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी की आवश्यकता और रूपरेखा से प्रतिभागियों को अवगत कराया। इसके साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संबंध में आईयूसीटीई के दायित्वों के संबंध में भी विस्तृत जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी से निकलने वाले निष्कर्ष आने वाले दिनों में शिक्षा जगत को नई राह दिखाएंगे। मंच संचालन डॉ. रचना विश्वकर्मा व धन्यवाद ज्ञापन केंद्र के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हरीशचंद्र ने किया। संगोष्ठी का संयोजन डॉ. दीप्ति गुप्ता व सह संयोजन डॉ. कुशाग्री सिंह कर रही हैं।