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धर्मसभा व धर्म संसद: मकसद राममंदिर मगर रास्ते अलग-अलग
आशुतोष सिंह
वाराणसी। हिन्दुस्तान में समाज का तानाबाना ही धर्म पर आधारित है। धर्म की आड़ लेकर सियासी पार्टियां समय-समय पर अपना हित साधती रही हैं। ऐसे में जबकि लोकसभा चुनाव नजदीक है, एक बार फिर से पूरे देश में धर्म की बयार बहने लगी है। अयोध्या का मसला फिर से उछाला जा रहा है। जानकार बताते हैं कि राम मंदिर के बहाने सियासी जमीन तैयार की जा रही है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर संत समाज किस ओर है। दरअसल जिस वक्त अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और आरएसएस के कार्यकर्ता और संत जुटे थे उसी वक्त अयोध्या से 225 किमी दूर वाराणसी में भी संतों का जमावड़ा हुआ। एक ओर धर्मसभा का आयोजन हो रहा था तो दूसरी ओर परमधर्म संसद में भाग लेने के लिए संत वाराणसी पहुंचे थे। संतों की ओर से आयोजित दोनों ही कार्यक्रमों का एजेंडा भले ही राम मंदिर निर्माण हो, लेकिन रास्ते अलग-अलग दिख रहे हैं।
वाराणसी में आयोजित धर्म संसद के संयोजक स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद थे, जबकि अयोध्या में विहिप ने धर्मसभा आयोजित की। काशी की धर्म संसद को शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती समेत अनेक संत, समाजसेवी, समाजिक कार्यकर्ता, अधिवक्ताओं आदि का समर्थन प्राप्त था, जबकि अयोध्या में आयोजित धर्मसभा को आरएसएस के अनुषांगिक संगठनों व शिवसेना का समर्थन प्राप्त था। जहां अयोध्या में संतों ने राम मंदिर निर्माण के लिए हुंकार भरी वहीं वाराणसी में राम मंदिर निर्माण के अलावा 47 अन्य विषयों पर भी गहन चर्चा हुई। इस दौरान प्रस्तावित राम मूर्ति का मुद्दा सबसे अधिक छाया रहा।
अयोध्या में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की उपस्थिति ने मीडिया की सारी सुर्खियां बटोर लीं। ठाकरे ने सभा शुरू होने से एक दिन पहले ही यह कहकर राजनीतिक हलके में हलचल मचा दी कि हम अयोध्या मुद्दे पर कुम्भकरणी नींद में सोए और सत्ता सुख का आनन्द ले रहे महारथी को जगाने और मंदिर निर्माण की तारीख पूछने आए हैं। कहा, संसद में मंदिर निर्माण के लिए कानून लाओ। शिवसेना प्रमुख की ललकार का जवाब अभी तक किसी भाजपा नेता ने नहीं दिया है। दरअसल ठाकरे ने तीन-चार माह पहले ही 25 नवम्बर को अयोध्या आने की घोषणा कर दी थी। इससे भाजपा को लगा कि कहीं राममंदिर मुद्दा उनके हाथ से निकल न जाए और यही कारण है कि आरएसएस ने विहिप को आगे करके 25 से 27 नवम्बर तक अयोध्या में धर्मसभा आयोजित करने की घोषणा कर दी।
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राममंदिर निर्माण के लिए बनाई अलग रणनीति
राम मंदिर निर्माण को लेकर धर्म सभा और परमधर्म संसद में अलग-अलग रणनीति दिखी। एक ओर धर्मसभा में संत केंद्र सरकार पर जल्द से जल्द अध्यादेश लाने का दबाव बनाते दिखे तो दूसरी ओर परमधर्म संसद का नजरिया इससे इतर दिखा। परमधर्म संसद ने इस मुद्दे पर धर्मादेश जारी करते हुए राम मंदिर पर जल्द फैसले की बात कही। शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती ने धर्मादेश जारी करते हुए श्रीराम जन्मभूमि मामले को राष्टï्रहित या लोकहित का घोषित करते हुए न्यायालय में त्वरित सुनवाई का रास्ता केंद्र सरकार व संसद को सुझाया। शंकराचार्य ने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि प्रकरण को लोकहित या राष्टï्रीय महत्व घोषित करने से विधि व्यवस्था के तहत उच्चतम न्यायालय को चार सप्ताह में प्रकरण का निबटारा करना होगा। शंकराचार्य ने अयोध्या मामले के निस्तारण के नाम पर अध्यादेश लाने जैसी बातों को हास्यास्पद करार दिया। कहा कि इससे मुसलमानों के मन में यह बात सदा के लिए आ जाएगी कि हिंदुओं की सरकार ने अपने बल का प्रयोग करते हुए उनके साथ अन्याय किया। इसी दौरान अविमुक्तेश्वरानंद ने सभी शंकराचार्यों और संतों द्वारा राममंदिर निर्माण करने की बात कही। साथ ही ये भी कहा कि किसी राजनीतिक या अन्य संगठनों द्वारा राम मंदिर का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए।
संतों ने किया राम की प्रतिमा का विरोध
परमधर्म संसद में यूपी सरकार की उस पहल की जमकर निंदा हुई, जिसमें अयोध्या में सरयू किनारे भगवान राम की 221 फीट ऊंची प्रतिमा लगाने की बात कही गई है। यूपी की योगी सरकार भले ही रामभक्तों को तोहफा देते हुए श्रीराम की सबसे बड़ी मूर्ति लगाने का प्लान बना रही हो, लेकिन संतों के एक बड़े धड़े को योगी का ये प्लान रास नहीं आ रहा है। धर्म संसद में संतों ने राम मूर्ति के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। इसे लेकर द्वारिकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती कहते हैं कि राम मंदिर से ध्यान भटकाने के लिए बीजेपी सरकार ने राममूर्ति का दांव चला है। अयोध्या में श्रीराम का पहले मंदिर बनना चाहिए। राम मूर्ति को लेकर विरोध के पीछे संत तर्क दे रहे हैं। धर्म संसद में पहुंचें संतों का कहना था कि राम की 221 मीटर ऊंची मूर्ति भगवान का अपमान है। पक्षी और जीव जंतु खुले में लगी मूर्ति के आसपास घूमेंगे। भगवान की मूर्ति सिर्फ मंदिरों में रखी जा सकती है, जो चारों ओर से घिरी हो। संतों के मुताबिक ऐसा लग रहा है कि बीजेपी सरकार सरदार पटेल और श्रीराम में होड़ पैदा करना चाहती है।
संतों ने सरकार को आगाह करते हुए कहा कि लोगों की भावनाएं आहत करने वाला कोई कार्य ना करें वरना संत समाज आंदोलन को बाध्य होगा। संतों ने राममूर्ति के प्रस्ताव को आर्थिक अपराध बताया। संतों के मुताबिक मूर्ति के निर्माण पर लगभग 800 करोड़ रुपए खर्च आने की संभावना है। ये पैसा राममंदिर निर्माण के नाम पर लोगों से लिया गया है। ऐसे में अगर इसे मूर्ति बनाने पर खर्च किया जाता है तो यह लोगों के साथ छलावा होगा। साथ ही ये आर्थिक अपराध की श्रेणी में भी आएगा। संतों के अनुसार अगर पैसा मंदिर निर्माण के लिए लिया गया तो उसका इस्तेमाल भी उसी मद में होना चाहिए।
मंदिर ध्वस्तीकरण को असंवैधानिक बताया
काशी की धर्म संसद में पहले दिन यानी 25 नवम्बर के पहले सत्र में बनारस के पक्कामहाल में विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के लिए मंदिर व घर तोडऩे का मुद्दा छाया रहा। धर्म संसद की शुरुआत ही इस मुद्दे पर चर्चा से हुई। परमधर्म संसद में पहुंचे संतों ने साफ कहा कि मंदिर तोडऩे वाली सरकार आखिर किस मुंह से मंदिर निर्माण की बात कह रही है। संतों ने काशी में मंदिरों के ध्वस्तीकरण को अधार्मिक, अशास्त्रीय और असंवैधानिक बताया। संतों के मुताबिक काशी में श्री विश्वनाथ मंदिर गलियारे के बहाने अनेक प्राचीन मंदिरों का विध्वंस कर देव विग्रहों के अपवित्रीकरण का कार्य किया जा रहा है, जिसे हिंदू समाज कभी बर्दाश्त नहीं करेगा। काशी में देव मंदिरों को तोडऩे वाले अयोध्या में मंदिर निर्माण के अधिकारी कैसे हो सकते हैं। इसके अलावा संसद की कार्यवाही के दौरान गंगा की अविरलता का मुद्दा भी छाया रहा। संसद में गोरक्षा और धर्मांतरण पर भी बहस हुई। कुछ प्रतिनिधियों ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि 2014 के बाद मीट निर्यात में लगातार वृद्धि हुई है। अब भारत दुनिया का सबसे बड़ा मीट निर्यातक देश बन गया है।
संतों के निशाने पर रहे पीएम मोदी
अयोध्या से इतर परमधर्म संसद में शिरकत करने पहुंचे संतों के निशाने पर खास तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रहे। संतों ने गंगा निर्मलीकरण के बहाने प्रधानमंत्री पर जमकर निशाना साधा। परमधर्म संसद के अंदर गंगा नदी को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि गंगा के निर्मल प्रवाह को बनाए रखने के लिए इस नदी पर किसी डैम का निर्माण न किया जाए। सरकार को इस संबंध में कानून बनाना चाहिए। धर्म संसद में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि गंगा नदी पर सभी डैम को ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए। साथ ही तुरंत प्रभाव से गंगा नदी में बहाए जाने वाले औद्योगिक कचरे को रोका जाना चाहिए। साधु-संतों ने पहले दिन की बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धोखा देने वाला व्यक्ति बताया जिसने गंगा की सफाई के बड़े-बड़े सपने दिखाए और साढ़ चार साल बाद भी गंगा की हालत जस की तस है। अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि मोदी ने कहा था कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है, लेकिन हैरानी होती है कि बनारस का सांसद होने के बावजूद मोदी कभी गंगा का हाल जानने घाट पर नहीं पहुंचते हैं। अगर कभी गए भी तो अपने विदेशी मेहमानों के साथ। खुद को मोदी गंगा प्रेमी बताते हैं, लेकिन जब गंगा किनारे आते हैं तो गंगाजल का आचमन तक नहीं करते हैं। नमामि गंगे परियोजना का क्या हुआ।
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धर्म संसद में जारी धर्मादेश की मुख्य बातें
- राम मंदिर निर्माण के लिए केंद्र को राम जन्मभूमि मामले को राष्टï्रीय महत्व और लोकहित का मामला घोषित करने का प्रस्ताव भेजा जाएगा।
- लोकहित का मामला घोषित होने पर सुप्रीम कोर्ट को चार सप्ताह में पूरी करनी होगी सुनवाई।
- श्रीरामजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति से किया गया अनुरोध कि कोर्ट से जल्द सुनवाई की प्रार्थना करें।
- सभी सांसदों और लोकसभा अध्यक्ष को भेजा जाएगा धर्मादेश।
- काशी में मंदिरों को तोडऩे की आलोचना की गई। इसे असंवैधानिक बताया गया।
- धर्मादेश में कहा गया कि काशी में मंदिर तोडऩे वाले अयोध्या में मंदिर निर्माण के अधिकारी कैसे हो सकते हैं।
संतों की राय
धर्मसंसद का मूल उद्देश्य सरकार को सही रास्ते पर लाना है। आप देखिए कैसे वाराणसी में मंदिर टूट रहे हैं। गंगा का क्या हाल है। इसे लेकर परमधर्म संसद का आयोजन किया गया। हमारी मांग है कि सरकार इन विषयों पर ध्यान दें क्योंकि ये हमारी आस्था से जुड़े हुए विषय हैं। इनकी अनदेखी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
गार्गी पंडित, धर्मगुरु
देखिए राममंदिर के मुद्दे पर संसद के अंदर गंभीरता से विचार किया गया है। जो भी कोर्ट का फैसला होगा, वही हमें मान्य होगा। इससे इतर कुछ भी नहीं हो सकता है। जहां तक अध्यादेश की बात है तो हम इसके समर्थन में नहीं है क्योंकि इससे मुस्लिमों में अच्छा संदेश नहीं जाएगा। हम उस राम के मंदिर के निर्माण की मांग कर रहे हैं जो सौम्य और शांति के प्रतीक हैं। इसलिए हम शांति और सौहार्द से मंदिर निर्माण के पक्ष में हैं।
किशोर दवे, धर्मगुरु
राममंदिर निर्माण को लेकर संसद के अंदर सभी से सुझाव मांगे गए हैं। देखिए मंदिर बनना ही चाहिए। मंदिर कैसे बने ये सरकार को तय करना है। आज जो लोग अध्यादेश की बात कर रहे हैं वो लोग साढ़े चार सालों तक कहां थे?चुनाव आते ही सबको अध्यादेश की याद आने लगी? ये गलत परंपरा होगी। बेहतर होगा हमें कुछ और इंतजार कर लेना चाहिए।
हिमांशु गिरि, धर्माचार्य
राम की मूर्ति लगाकर सरकार क्या साबित करना चाहती है? आमजनमानस, संत समाज राममंदिर निर्माण की मांग कर रहा है और यूपी सरकार राम मूर्ति लगाने की बात कह रही है। लोगों को बेवकूफ ना बनाए सरकार। अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए सरकार ने ये नया दांव चला है।
अजय गौतम, धर्माचार्य