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Rampur By Election 2022: क्या रामपुर में आजम का रोना कह गया सब हाल? 'सियासी आंसू' या मजबूरी
Rampur By Election 2022: रामपुर उपचुनाव में सपा से ज्यादा आज़म खान की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। ये सीट उनके लिए 'गढ़' रहा है। लेकिन, आज़म के आंसुओं ने अपने पीछे कई सवाल छोड़ दिए हैं।
Rampur By Election 2022: समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान रामपुर विधानसभा उप चुनाव के लिए आयोजित एक जनसभा में फफक पड़े। मोहल्ला चाह खजान में आयोजित सभा को संबोधित करते हुए आजम मंच पर भावुक हो गए। आजम के रोने के अब सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। सवाल ये है कि, क्या आज़म का रोना सपा वोटों को लामबंद कर पाएगा? क्या आज़म के आंसू मुस्लिम वोटों की एकजुटता का सबब बनेंगे?
हम ऐसा इसलिए कह रहे, क्योंकि रामपुर के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो चुनाव में बीते 45 वर्षों में पहली बार आजम खान (Azam Khan) या उनके परिवार का कोई शख्स इस सीट से चुनाव नहीं लड़ रहा है। सपा ने इस सीट पर आजम खान के करीबी आसिम रजा (Asim Raza) को चुनावी मैदान में उतारा है। उनके सामने बीजेपी (BJP) ने आकाश सक्सेना (Akash Saxena) को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। इतिहास भले ही समाजवादी पार्टी और आजम खान के पक्ष में दिख रही हो, मगर इस बार आकाश सक्सेना उन्हें कड़ी चुनौती देते दिख रहे हैं।
मोदी लहर में भी बरकरार रखा था 'गढ़'
आज़म खान और उनके परिवार के बिना रामपुर सीट के लिए सोचना भी किसी सपने से कम नहीं है। रामपुर विधानसभा सीट के इतिहास (Rampur Constituency History) पर नजर डालें तो सपा नेता आजम खान अब तक रिकॉर्ड 10 बार यहां से विधायक चुने गए हैं। 1996 के बाद सपा को कभी इस सीट पर हार का मुंह नहीं देखना पड़ा। बीते 21 साल से यहां सपा का जलवा कायम रहा है। 2017 यूपी चुनाव के वक्त भी जब पीएम 'मोदी लहर' में एक एक बाद एक कई किले ध्वस्त हो गए, लेकिन रामपुर से आजम खान जीत हासिल करने में कामयाब रहे। हालांकि, इसके बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में आजम खान के सांसद बनने के बाद उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। तब उपचुनाव में आजम खान की पत्नी डॉ. तंजीन फातिमा सपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचीं।
क्या आंसू रोक पाएंगे वोटों का बिखराव?
साल 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की आंधी चली। मोदी लहर का असर पूरे उत्तर प्रदेश में देखने को मिला। तब बीजेपी ने पूरे प्रदेश में 300 से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही, लेकिन रामपुर विधानसभा सीट हार गई। आजम खान 46,852 वोटों से विजयी रहे। उन्होंने बीजेपी के शिव बहादुर सक्सेना को शिकस्त दी। उन्हीं शिव बहादुर सक्सेना के बेटे आकाश सक्सेना इस बार रामपुर सीट से बीजेपी प्रत्याशी हैं। 2022 विधानसभा चुनाव आजम खान ने जेल से ही लड़ा। यह पहला चुनाव था, जब न तो आजम खान वोट मांगने निकल पाए और न ही रामपुर के लोगों ने उनकी आवाज सुनी। बावजूद वो जीत गए। लेकिन, 6 महीने के भीतर ही हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। सपा के भीतर भी आजम का अब वो कद नहीं रह गया है। और न अब नेताजी ही रहे। रामपुर से गढ़ में भी आजम को अपनों से ही चुनौती मिलती दिख रही है। तो ऐसे में आंखों से आंसू निकलना स्वाभाविक है। क्योंकि, आजम अब कई मोर्चों पर लड़ाई लड़ रहे हैं और ऐसे में आंसू वोटों के बिखराव को रोकने का जरिया हो सकता है।
अब जीत की गारंटी नहीं रहे आज़म !
दरअसल, रामपुर सीट सपा का गढ़ रहा है। विपक्षी पार्टियों ने यहां लाख कोशिश की, लेकिन कभी किसी दल की दाल नहीं गल पाई। इसकी वजह आज़म खान का रुतबा और बड़ा कद रहा है। मगर, इस बार लोकसभा उपचुनाव में आजम खान को बीजेपी ने तगड़ा झटका दिया है। उससे उनकी जड़ें हिल गई हैं। शायद यही वजह है कि आज़म के बेहद करीबी जो करीब 20-25 सालों से साथ थे, अब जुदा हो चले हैं। ये वो लोग थे जिन्हें कभी आज़म खान ने मुख्य पदों पर तैनात किया था। आज उन्होंने भी साथ छोड़ दिया। आज़म के करीबी एक-एक कर सपा छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए। इसमें मुख्य नाम आजम के मीडिया प्रभारी रहे फ़साहत अली शानू का है। वह अपने कई दर्जन समर्थकों के साथ हल ही में बीजेपी में चले गए। इसके अलावा, आए दिन सपा नेताओं की पार्टी से बेरुखी सिरदर्द बनती जा रही है। सपा छोड़कर बीजेपी में शामिल होने का सिलसिला जारी है।
'मेरे खून के आंसुओं का बदला लेना चुनाव में '
सपा उम्मीदवार आसिम रजा के समर्थन में बोलते हुए आजम खान की आंखें भर आई थी। उन्होंने कहा, 'अब आप लोग मेरे साथ धोखा मत करना। मेरे पास धोखा खाने का समय नहीं है। आप लोग मेरी जगह आसिफ रजा को जिता कर विधानसभा भेज दीजिए। लोकसभा उपचुनाव में आप लोग एक बार धोखा दे चुके हैं। इस बार धोखा मत देना। मेरे खून के आंसुओं का बदला आपलोग उप चुनाव में लेना।'
'सियासी आंसू' या मजबूरी
रामपुर और सपा सरकार में आजम खान का कद देख चुके लोग भी इस बार आज़म के आंसू देख सोचने को मजबूर हो गए कि, क्या ये 'सियासी आंसू' हैं या मजबूरी के। जानकार मानते हैं कि, आजम अब पहले की तरह मजबूत और कद्दावर नहीं रहे। पार्टी के अंदर उन्हें अखिलेश यादव से उस तरह का साथ और सम्मान नहीं मिल रहा जैसे पहले हुआ करता था। दूसरी तरफ, योगी सरकार के दौरान उन पर 87 केस हो गए। इसी तरह एक मामले में उनकी विधायकी भी जाती रही। खैर, अब ये रामपुर विधानसभा उप चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि आज़म के आंसुओं ने कितना काम किया।