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राशन कार्ड भी मानकों की आड़ में हुए लाकः कैसे जलेंगे मजलूमों के चूल्हे !
जिलापूर्ति अधिकारी राजीव तिवारी का कहना है कि शहरी क्षेत्रों का आबादी के हिसाब से 64 फीसदी राशनकार्ड होने का सरकारी मानक है। वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर यह मानक पूरा हो गया है। अब कोई नया राशनकार्ड नहीं बनेगा। हमारी मजबूरी है । ग्रामीण अंचलों में आबादी के हिसाब से राशनकार्डो की संख्या 43 फीसदी है।
शरद मिश्र
बांदा - गरीबी और बदहाली से जूझते रहिये । जरूरत मंदो की पेट की आग नहीं बुझेगी क्योकिं उनके घरों के ठंढे पड़े चूल्हों में आग नहीं जलेगी। सरकार के आंकड़े बांदा जिले के शहरी क्षेत्र में राशन कार्ड जारी करने के लिये अभिलेखों में हाउसफुल हो चुकें हैं। इसलिये राशन कार्ड निर्मोही सरकार ने लाक डाउन कर अपने बेदर्द होने का इरादा सार्वजनिक कर दिया है। योगी सरकार की नियमावली के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में अब नए राशनकार्ड नहीं बनेंगे। इसकी वजह बताई गई है कि कुल जनसंख्या में 64 फीसदी राशन कार्ड बनाए जाते हैं। यह मानक यहां बांदा में पूरा हो चुका है।
आंकड़े क्या बोलते हैं
आप को जानकारी दे दें कि लॉकडाउन में जिले के शहर सहित ग्रामीण अंचलों में नए राशनकार्डों के 12 हजार आवेदन किए गए थे।
सत्यापन के बाद 9091 राशनकार्ड बनाए गए हैं। 2909 आवेदन सत्यापन के लिए लंबित हैं। अब जनपद में अंत्योदय के 48352 और पात्र गृहस्थी के 3,76,714 राशनकार्ड हैं। पहले इनकी संख्या 3,67,623 थी।
विभागीय आंकड़ों के अनुसार शहरी क्षेत्रों में अंत्योदय सहित 44,739 पात्र गृहस्थी के राशनकार्ड थे। लॉकडाउन के बाद नए राशनकार्डो के लिए 3 हजार आवेदन हुए। इनमें सत्यापन के सरकारी दावे के मुताबिक कोरोना आपतकाल में1721 राशनकार्ड बना दिए गए। अब इनकी संख्या 45540 हो गई। 1279 आवेदन सत्यापन के लिए अभी लंबित हैं।
ग्रामीण अंचलों में अंत्योदय सहित 3,22, 884 पात्र गृहस्थी के राशनकार्ड थे। नए राशनकार्डों के लिए 9 हजार आवेदन हुए। सत्यापन के बाद 7,379 राशनकार्ड बनाए गए। अब इनकी संख्या 3,30,254 हो गई। 1630 आवेदन सत्यापन के लिए लंबित हैं।
क्या कहते हैं आपूर्ति अधिकारी
जिलापूर्ति अधिकारी राजीव तिवारी का कहना है कि शहरी क्षेत्रों का आबादी के हिसाब से 64 फीसदी राशनकार्ड होने का सरकारी मानक है। वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर यह मानक पूरा हो गया है। अब कोई नया राशनकार्ड नहीं बनेगा। हमारी मजबूरी है । ग्रामीण अंचलों में आबादी के हिसाब से राशनकार्डो की संख्या 43 फीसदी है।
अब ग्रामीण अंचलों के ही राशनकार्ड बनाए जाएंगे। अब आप ही सोचिये कि सरकार नियमों में ढील दे तो शहरी क्षेत्र में राशन कार्ड बनें । पर सरकार दरिया दिल दिखाना नहीं चाहती। आखिर क्यों ? यह जनता कि समझ में आयेगा या नहीं यह तो उसकी तार्किक शक्ति ही जाने ! पर यह तो तय है कि गरीब जनता भूखों मरे तो मरें ! पर सरकारी खजाने का मुंह खुलेगा यह संभव नहीं ! जनप्रतिनिधियों को इसकी चिन्ता हो यह परिलक्षित भी नहीं हो रहा । जरूरत मंदो का पेट भरने की फेस बुकिया होड़ जरूर जारी है ।