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रावण को प्रतिनायक बनाने की साजिश
योगेश मिश्र
प्राय: फिल्मों की सफलता अच्छे खलनायक पर भी निर्भर करती है। जितना अच्छा खलनायक होता है, फिल्म उतनी ही अच्छी हो जाती है। नायक भी बहुगुणित होकर चमकता है। नायक और खलनायक के चरित्र एक-दूसरे के इतने पूरक हो जाते हैं कि खलनायक नायक के लिए एक ऐसा पात्र बन बैठता है, जिससे नायकत्व मजबूत हो जाता है। कभी-कभी गलती से या नायक को मजबूत करने के लिए खलनायक प्रतिनायक में बदल दिया जाता है। राम और रावण के साथ कुछ इसी तरह का रिश्ता अलग-अलग तरह की रामायणों में पढ़ा जा सकता है। श्री राम का उल्लेख ऋग्वेद में है। वाल्मिकी रामायण के बाद राम कथा में दूसरा प्राचीन ग्रंथ अध्यात्म रामायण है। संस्कृत भाषा में 21 सर्गों में लिखा यह ग्रंथ भी वाल्मिकी द्वारा ही रचित है। विश्वभर में राम कथा पर पांच सौ से अधिक ग्रंथ हैं। किसी एक कथा पर इससे अधिक ग्रंथ कहीं नहीं हैं। हर ग्रंथ में रावण को पंडित और पुजारी बताया गया है। वह शिवभक्त है, लेकिन राक्षस भी है। उसका राक्षस होना उसके हर चरित्र पर इतना भारी पड़ता है कि रावण नाम रखना किसी को गवारा नहीं।
बावजूद इसके कुछ साहित्य में रावण का भी स्तुति गान हुआ है। दस सिर वाले रावण के बारे में यह भी कथा प्रचलित है कि दस का अर्थ होता है बहुत। आज भी कहा जाता है दस आदमी जो कहें, वही सही। जैन धर्म के कुछ ग्रंथों में रावण प्रतिनारायक है। इस धर्म के 64 श्लाका पुरुषों में उसकी गणना होती है। रावण ने शिव तांडव स्त्रोत की रचना की। ज्योतिष का अब तक का सबसे प्रमाणित ग्रंथ रावण संहिता लिखा। लाल किताब भी रावण की बताई जाती है। आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने रावण को केंद्रीय पात्र मानते हुए वयम् रक्षाम: नामक उपन्यास लिखा। पंडित मदनमोहन शर्मा ने तीन खंडों में लंकेश्वर नामक उपन्यास की रचना की। तमिल रामायणकार केव ने उसे सद्चरित्र कहा है।
रावण का मिला था वरदान
फादर कामिल बुल्के ने अपनी लोकप्रिय किताब रामकथा में लिखा है कि ब्रह्मा ने रावण को अमरत्व का वरदान दिया था। आश्वासन दिया था कि तुम्हारे सिर और भुजाएं कट जाने पर भी उत्पन्न हो जाएंगे। रावण को ब्रह्मास्त्र देकर कहा कि इससे तुम्हारा मर्म स्थान छेदित हो जाने पर ही तुम मर सकोगे। इसे मंदोदरी की सुरक्षा में रखा गया था। हनुमान स्फटिक के खंभे को लाठी से तोडक़र ब्रह्मास्त्र निकालकर लाए थे, तभी रावण मरा। रावण भी मर्म स्थान को लेकर भ्रम बनाए रखता था। जटायु से युद्ध के दौरान उसने कहा कि उसका मर्म स्थान पैर का अंगूठा है। सेरी राम रामायण में सीता हनुमान को बताती हैं कि रावण के दाहिने कान के नीचे जो छोटा सा सिर है उस पर रावण का जीव निवास करता है। अध्यात्म रामायण रावण के नाभि प्रदेश में अमृत मानती है। हिंदोशिया की राम कथाओं में रावण के जीवित रहने का जिक्र है। महराष्ट्र के अमरावती और गढ़चिरौली जिले में कोरकू और गोई आदिवासी रावण और उसके बेटे मेघनाथ को अपना देवता मानते हैं। फाल्गुन पर्व पर इनकी विशेष पूजा होती है।
कई स्थानों पर होती है रावण की पूजा
मध्य प्रदेश के विदिशा के एक गांव में रावण को महात्मा और बाबा के रूप में माना जाता है। यहां उसकी 8 फीट लेटी पाषाण प्रतिमा है। दशहरे के दिन शृंगार करके पूजा का चलन है। रावण की जान नाभि में बसती थी, ऐसी दंतकथा है। इसीलिए यहां उसकी मूर्ति की नाभि में तेल लगाने की परंपरा है। नोएडा का बिसरख रावण का पैतृक गांव माना जाता है। उसके पिता विश्रवा मुनि यहीं रहते थे। यहीं तीनों बेटे-दशग्रीव, कुंभकरण और विभीषण जन्मे। कन्या चंद्र नखा भी यहीं पैदा हुई। बाद में आचरण के चलते उसका नाम सुपर्णखा रखा गया। इसे ललित निबंधकार कुबेर नाथ ने प्रमाणित किया है। जिस दिन रावण का पुतला फूंका जाता है, उस दिन बिसरख के लोग शोक मनाते हैं।
कानपुर के पास शिवाला स्थित कैलाश मंदिर में विजया दशमी के दिन रावण की महाआरती होती है। 1865 में शृंगेरी के शंकराचार्य की उपस्थिति में महाराजा गुरु प्रसाद द्वारा यहां छिन्न मस्तिका माता की मूर्ति स्थापित की गई है। 1900 में महाराजा शिवशंकर लाल ने कैलाश मंदिर परिसर में रावण का मंदिर बनवाया। उन्नाव के मौरावां कस्बे में राजा चंदन लाल द्वारा 1804 में स्थापित रावण की मूर्ति की पूजा आज भी की जाती है। मध्य प्रदेश के मंदसौर में रहने वाले नामदेव वैश्य समाज के लोगों की मानें तो मंदोदरी मंदसौर की थी। यहां रावण को जमाई मानकर खातिरदारी होती है। यहां रावण की 35 फीट ऊंची बैठी हुई कंकरीट प्रतिमा है जहां लोग मनौती मांगने और पूजा करने आते हैं। फतेहपुर के खजुहा में रावण के चार कुंतल वजनी तांबे के सिर की पूजा होती है। लखनऊ के रानी कटरा क्षेत्र में रावण का भव्य मंदिर है जहां उसकी मूर्ति ही नहीं, उसका भव्य दरबार बनाया गया है। दशहरे के दिन रावण की खास पूजा होती है। जोधपुर के लोगों का मानना है कि मंदोदरी यहां की पूर्व राजधानी मंडोर की रहने वाली थी। दोनों के विवाह स्थल पर आज भी रावण की छतरी मौजूद बताई जाती है।
बदल चुकी हैं व्याख्याएं
वर्तमान समय में राम-रावण कथा की व्याख्याएं बदल गई हैं। इस पूरी कथा में समकालीन मनुष्य ने अपनी समस्याएं और अपना चेहरा देख लिया है। घोर कलयुग के दौर में बुराइयों का दशानन अट्टïहास कर रहा है। रावण जीवन पाता जा रहा है। राम का जीना मुश्किल है, लेकिन उन्हें मारना असंभव। इसलिए उन्हें हाशिये पर छोड़ दिया जा रहा है। रावण के निरंतर बढऩे की दशांए कहीं उसकी उपस्थिति को और अधिक सर्वव्यापी तथा गहरा न कर दें। यह आम चिंता का सबब है। कहीं रावण को खलनायक की जगह प्रतिनायक बनाकर पेश किये जाने की तैयारियां भी दिखने लगी हैं। फिल्मों में कभी खलनायक नहीं जीतता है। अंत में ही सही वह पराजित होता है अथवा मारा जाता है। लेकिन अगर खलनायक प्रतिनायक बना दिया गया तो उसके मारे जाने की, उसके पराजित होने की उम्मीदें खत्म हो जाती हैं। इस प्रवृति से बचने की जरूरत है। रावण खलनायक था। प्रतिनायक नहीं।