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Kanpur News: जानिए क्यों कानपुर में रावण दहन से पहले लगते हैं रावण के जयकारे, होती है पूजा अर्चना
Kanpur News: कानपुर में रावण दहन से पहले साल में एक बार खुलने वाले रावण के मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है, हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी बड़े ही धूमधाम के साथ पूजा अर्चना की गई है।
Kanpur News: उत्तर प्रदेश में आज जहां धूमधाम के साथ दशहरे पर्व मनाया जा रहा है और देर रात रावण दहन (Ravana Dahan) की तैयारियां चल रही है। तो वहीं कानपुर उत्तर प्रदेश का एक ऐसा जिला है जहां पर रावण दहन से पहले साल में एक बार खुलने वाले रावण के मंदिर (Ravana Temple ) में पूजा अर्चना की जाती है और हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी बड़े ही धूमधाम के साथ रावण के मंदिर में पूजा अर्चना की गई है और भारी संख्या में क्षेत्रीय लोग के साथ-साथ दूरदराज के जिलों से लोग इस पूजा में शामिल होए।
155 साल पहले हुई थी मंदिर की स्थापना
पूरे प्रदेश में और देश में जहां जय श्रीराम के नारे लग रहे हैं तो वही कानपुर के कैलाश मंदिर शिवाला जहां माता छिन्नमस्ता मंदिर के द्वार पर रावण का मंदिर है।बाहर पर 155 साल से प्रतिवर्ष की की भांति इस बार भी साल में एक बार खुलने वाले रावण के मंदिर में रावण के जयकारों की गूंज गूंज रही है और मंदिर में पुजारी व अन्य लोगों ने बड़े ही धूमधाम के साथ रावण की पूजा अर्चना करने के बाद प्रसाद वितरित करते हुए नजर आ रहे है।
पर ऐसा कानपुर में क्यों होता है इसकी जानकारी करने पर पुजारी बताते हैं कि यहां पर स्व.गुरु प्रसाद शुक्ला करीब 155 साल पहले मंदिर की स्थापना कराई थी इस मंदिर शिव और शक्ति के बीच रावण का भी मंदिर है और रावण की प्रतिमा स्थापित है। उन्होंने बताया कि ऐसी मान्यता है कि रावण शक्तिशाली होने के साथ प्रकांड विद्वान पंडित होने के साथ शिव और शक्ति का साधक था और उसकी नाभि में अमृत था।
भगवान श्रीराम ने जब उसकी नाभि को बाण से भेद दिया था तो रावण धरती पर आ गिरा था लेकिन उसकी मृत्यु नहीं हुई थी। जिसके बाद खुद भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण जी को रावण के पास ज्ञान प्राप्ति के लिए भेजा था जिसके बाद से कानपुर में रावण दहन से पहले साल में एक बार रावण के मंदिर के पट खुलते हैं और लोग बल, बुद्धि, दीर्घायु और अरोग्यता का वरदान पाने के लिए जुटते हैं और आशीर्वाद लेते हैं।
की जाती है महाआरती
दशहरे के दिन रावण के मंदिर के कपाट खुलते हैं और भक्तों की भीड़ इकट्ठी होती है इस दौरान रावण के श्रृंगार के साथ दूध,दही, घृत,शहद, चंदन, गंगाजल से अभिषेक किया जाता है। इसके बाद महाआरती होती है और लोगो सरसों के तेल का दीपक जलाने के साथ लोग पुष्प अर्पित कर साधना करते थे। और महा आरती पूर्ण होने के बाद 1 साल के लिए पुनः कपाट बंद कर दिए जाते हैं।