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आशियाना गैंग रेप विक्टिम ने बांटी मिठाई, कहा-सिर्फ मेरी नहीं थी लड़ाई
Ved Prakash Singh
लखनऊ: आशियाना गैंग रेप मामले में 13 अप्रैल का दिन उस इंसान के लिए बेहद खास रहा, जिसने इंसाफ के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। वो थी इस रेप केस की विक्टिम। आरोपी के बालिग साबित होने के फैसले को सुनते ही उसकी आंखें भर आईं। उसे लगा जैसे उसने ये लड़ाई जीत ली। कोर्ट का फैसला आने के बाद विक्टिम ने सड़कों पर मिठाईयां बांट अपनी खुशी जाहिर की।
विक्टिम ने बताया, 11 साल तक चले इस केस में विक्टिम पर सामाजिक और आरोपी के परिवार से कई तरह के दबाव आए थे। लेकिन विक्टिम और उसके परिवार ने उसका सामना किया, जो समाज के लिए मिसाल पेश करता है।
एक वक्त तो मानो सांसें थम सी गई थी
जज की ओर से यह कहना कि आरोपी गौरव शुक्ला बालिग है। यह सुनते ही विक्टिम को ऐसा लगा जैसे उसने आधी लड़ाई जीत ली। विक्टिम ने कहा, 'इस फैसले से उसकी सालों की लड़ाई को एक नई ताकत मिल गई है। लग रहा है अब न्याय मिलेगा।' कुछ समय पहले तक जब गौरव शुक्ला की उम्र निर्धारण के लिए दोबारा सुनवाई होने लगी थी तो कुछ समय के लिए विक्टिम की सांसें मानो थम सी गई थी।
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सामाजिक परेशानियों से होना पड़ा रूबरू
विक्टिम ने रेप के बाद की अपनी कठिन राह को बताया, कि उसे कई तरह की सामाजिक परेशानियों से रूबरू होना पड़ा। एक तरफ तो पैसों से मजबूत आरोपी गौरव शुक्ला और उसके साथियों की धमकियां आये दिन मिलती रहती थी। वहीं दूसरी तरफ समाज में व्यंग कसने वाले लोग भी काम नहीं थे। 13 साल की उम्र में यह सब झेलना आसान नहीं होता है।
विक्टिम बनी दूसरों के लिए मिसाल
विक्टिम ने बताया कि वह यह लड़ाई सिर्फ अपने और अपने परिजनों के लिए नहीं लड़ रही है। बल्कि समाज की उन लाचार और गरीब लड़कियों के लिए भी है जिन्हें आवाज उठाने से पहले ही चुप करा दिया जाता है। पीड़िता ने कहा की वह सबके लिए एक मिसाल कायम करना चाहती है।
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आरोपी ने किए कई जतन, लेकिन सच आया सामने
आशियाना गैंग रेप का मुख्य आरोपी और पूर्व एमएलसी का भतीजा गौरव शुक्ला ने खुद को नाबालिग साबित करने के ढेरों जतन किए। अपनी रसूख का इस्तेमाल करते हुए डालीगंज स्थित आशा विद्यालय से हाईस्कूल की फर्जी मार्कशीट तक बनवाई। जांच में यह सामने आया कि जिस रोल नंबर की मार्कशीट आरोपी दिखा रहा था उस पर एक युवती का नाम दर्ज है।
सच की हुई जीत
इसके बाद आरोपी ने स्वयं के ऊपर महानगर कोतवाली में केस दर्ज कराया जिससे यह साबित किया जा सके कि वह नाबालिग है। लेकिन पेशी के दौरान गौरव से एक गलती हो गई। उसने यह कबूल किया कि उसने अपनी नर्सरी की पढ़ाई हजरतगंज के एक निजी स्कूल में की है। इसके बाद जांच में पता चला कि आरोपी का नगर निगम से जन्म प्रमाण पत्र बना हुआ है। इसमें उसकी जन्म तिथि 14 अक्टूबर 1987 दर्शाई गई थी। हालांकि आरोपी की असली जन्मतिथि 14 सितंबर 1986 है। इन सभी साजिशों के बाद भी सच की ही जीत हुई।
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संस्था का जुझारूपन काबिले-तारीफ
मामले को गंभीरता से लेते हुए एडवा संस्था ने पीड़िता का हाथ थामा और उसे न्याय दिलाने की रह पर आगे बढ़ी। इस बीच संस्था को कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा। संस्था के कर्मचारियों को धमकी भरे पत्र भेजे गए। कई दिनों तक संस्था के बाहर कई अज्ञात बदमाशों ने चक्कर भी लगाए। लेकिन इन सब के बावजूद संस्था ने विक्टिम का साथ न छोड़ते हुए उसे आगे बढ़ने में मदद की। संस्था ने विक्टिम की पढ़ाई करवाई और उसे अपने पैरों पर खड़ा होने को प्रोत्साहित किया।
आशियाना गैंग रेप मामले का घटनाक्रम :
-2 मई 2005, लड़की को अगवा कर चलती कार में गैंग रेप।
-4 जुलाई 2005, पहला आरोपी फैजान गिरफ्तार, पूछताछ में कबूला गुनाह।
-18 अक्टूबर 2005, मुख्य आरोपी गौरव शुक्ला को किशोर न्याय बोर्ड ने नाबालिग घोषित किया।
-10 मई 2006, आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल।
-25 मई 2007, हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए रोजाना सुनवाई शुरू की।
-5 सितंबर 2007, सेशन कोर्ट ने आरोपी अमन बक्शी और भारतेन्दु मिश्रा को दोषी साबित किया।
-23 जनवरी 2009, सेशन कोर्ट में आरोपी फैजान का ट्रायल शुरू।
-8 अप्रैल 2010, सेशन कोर्ट ने गौरव शुक्ला की उम्र के विवाद को किशोर न्याय बोर्ड के पास भेजा।
-1 जनवरी 2012, किशोर न्याय बोर्ड ने सुनवाई शुरू की।
-25 जुलाई 2012, हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि किशोर न्याय बोर्ड उम्र का निर्धारण करे।
-10 जनवरी 2013, बोर्ड ने निर्णय सुरक्षित रखा।
-15 जनवरी 2013 को बोर्ड ने मुख्य आरोपी को नाबालिग करार दिया।