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 हाईकोर्ट के फर्जी आदेशों पर होगी कार्यवाही, दाखिल याचिका निस्तारित

Shivakant Shukla
Published on: 10 Dec 2018 2:58 PM GMT
 हाईकोर्ट के फर्जी आदेशों पर होगी कार्यवाही, दाखिल याचिका निस्तारित
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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोर्ट के फर्जी आदेशों के मामले में कायम जनहित याचिका यह कहते हुए निस्तारित कर दी है कि कोर्ट के निर्देश पर महानिबंधक की अध्यक्षता में गठित कमेटी इसकी निगरानी कर रही है। ऐसे में याचिका कायम रखने का औचित्य नहीं है। कमेटी की रिपोर्ट पर हाई कोर्ट प्रशासनिक तौर पर कार्यवाही करेगा। कोर्ट में कमेटी को हर तीसरे माह अपनी रिपोर्ट पेश करते रहने का भी निर्देश दिया है।

यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति वाई.के. श्रीवास्तव की खण्डपीठ ने जमानत के फर्जी आदेश बनवाने व लाभ उठाने के आरोपी अमित रस्तोगी की आपराधिक अपील पर कायम जनहित याचिका पर दिया है। कोर्ट ने इस मामले में दाखिल अपीलों को अलग से सुने जाने का आदेश दिया है। मालूम हो कि हाई कोर्ट के फर्जी जमानत आदेश अधीनस्थ अदालतों में पेश हुए शक होने पर जांच में फर्जी होने का खुलासा हुआ। इसी तरह के कई अदालतों में फर्जी आदेश मिलने पर कोर्ट से हर जमानत आदेश के हाई कोर्ट से सत्यापन के निर्देश जारी किये गए और फर्जी आदेश बनाने वाले रैकेट को पकड़ने की जिम्मेदारी सी बी आई को सौपी गयी।

सी बी आई के छापों में कई लोग गिरफ्तार हुए। रैकेट में एक दर्जन वकीलों व कुछ कोर्ट अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पायी गयी। वकीलां के कई मुंशी गिरफ्तार कर जेल में डाले गए। इसी मामले में जिन वादकारियों ने फर्जी आदेश पेश किये थे। उन पर एफ आई आर दर्ज हुई और मुकदमा चला।

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इसी में से एक अमित रस्तोगी की सजा के खिलाफ अपील को हाई कोर्ट ने जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करते हुए निगरानी तंत्र विकसित किया है और फर्जी आदेश पर रोक लगाने के तकनीकी उपाय किये गए है। अब भी महानिबंधक की कमेटी लगातार निगरानी कर रही है। याचिका पर सवाल उठाया गया कि जिन वादकारियों ने जमानत अर्जी दाखिल, उनके वकीलां ने आदेश दिए। उनकी कोई गलती नहीं है और वे जेल में है। जिन वकीलों ने फर्जी आदेश दिए उन्हें सजा के लिए पकड़ा नहीं गया। फर्जी आदेश बनाने वाले अभी भी स्वतंत्र है और कोर्ट में वकील कर अर्जी देने वाले फर्जी आदेश पेश करने के जुर्म में जेल भेजे गए। जिन्होंने अपराध किया उन्हें भी सजा मिलनी चाहिए। फिलहाल कोर्ट ने मामले को प्रशासनिक तौर पर निपटने का आदेश देते हुए याचिका निस्तारित कर दी है।

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2. बार-बार जनहित याचिका दाखिल करने पर 50 हजार का हर्जाना

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ही मुद्दे को लेकर बार बार जनहित याचिका दाखिल करने को न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग माना और 50 हजार हर्जाना लगाते हुए याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने प्रयागराज के निवासी याची राजू विश्वकर्मा को हर्जाना राशि एक माह में उ प्र राज्य लीगल सर्विस अथारिटी के पक्ष में जमा करने का भी निर्देश दिया है और कहा है कि यदि आदेश का पालन नहीं होता तो अथारिटी राजस्व की तरह वसूल करने की कार्यवाही करे।

यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति वाई.के. श्रीवास्तव की खंडपीठ ने राजू विश्वकर्मा की चौथी जनहित याचिका को खारिज करते हुए दिया है। मालूम हो कि बारा तहसील की गावसभा गरहाकटरा के गांव हरही में वेन्किज इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी मुर्गी पालन का व्यवसाय कर रही है।याची ने कम्पनी की लापरवाही से हो रहे प्रदूषण के कारण उसे दूसरी जगह शिफ्ट करने की मांग में जनहित याचिका दायर की।जो खारिज हो गयी। कुछ दिन बाद दुबारा याचिका दाखिल की।

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कोर्ट ने निर्देश के साथ निस्तारित कर दिया। कोर्ट ने मुख्य पर्यावरण अधिकारी को मौके का निरीक्षण कर कार्यवाही करने को कहा। इसके बाद तीसरी याचिका दाखिल की। कोर्ट ने मुख्य पर्यावरण अधिकारी को कार्यवाही करने का निर्देश देते हुए याचिका निस्तारित कर दी। आदेश पालन ठीक से न होने पर अवमानना याचिका दाखिल की। कोर्ट ने कहा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड निगरानी कर रहा है। बोर्ड ने कम्पनी को नोटिस दी है। इसी नोटिस को लेकर चौथी बार याचिका दाखिल की गयी। तो कोर्ट ने पूछा जब कार्यवाही हो रही है तो बार बार याचिका क्यों कर रहे है। इस पर याची ने बताया कि उसका कोई हित नहीं है। वह दूसरे गांव का है। कोर्ट ने पूछा नोटिस आपको कैसे मिली। ये तो कम्पनी को गयी है। आपका उद्देश्य प्रदूषण न होकर व्यक्तिगत खुन्नस है। केवल कम्पनी को हटाना चाहते है। जनहित में याचिका नहीं है। जनहित याचिका के उपबन्ध का दुरूपयोग है। कोर्ट ने हर्जाने के साथ याचिका खारिज कर दी है।

3. शराब के अस्थायी लाइसेंस देने पर कोर्ट की तल्ख टिप्पणी, कहा- नशे के कारोबार से न करे सरकार राजस्व वसूली

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शादी व अन्य समारोहों में आयोजकों को कुछ घण्टे के लिये समारोह में शराब पिलाने का अस्थायी लाइसेंस देने की नीति पर तीखा कटाक्ष किया है। कोर्ट ने कहा सरकार को राजस्व वसूली की चिंता है, युवा पीढ़ी बर्बाद हो जाय इसकी कत्तई परवाह नहीं है। नशे की लत से युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है। शराब, ड्रग्स, हुक्काबार पर नियंत्रण होना चाहिए। कोर्ट ने पूछा क्या सरकार नशे का कारोबार करना चाहती है। कोर्ट ने नशे के लाइसेंस पर 21 दिसम्बर तक राज्य सरकार से जवाब मांगा है।

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यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति वाई.के. श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कानपूर नगर के पैरेंट गार्जियन एसोसिएशन व दो अन्य की याचिका पर दिया है। याची अधिवक्ता रमेश उपाध्याय का कहना है कि सरकार की इस नीति के चलते युवाओ सहित बच्चो पर बुरा असर पड़ रहा है। शादी समारोहों में परिवार शामिल होता है और समारोह में नशे की अनुमति देने से बच्चों पर नशे के प्रति जिज्ञासा बढ़ेगी। आबकारी विभाग ऐसे समारोहों में शराब, हुक्काबार आदि नशे के इस्तेमाल की अनुमति दे कर नशे के कारोबार से राजस्व वसूली में लगा है। जब कि राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रामानन्द पांडेय का कहना था कि केवल शराब की अस्थायी अनुमति दी जाती है। वह भी आयोजक के मांगे जाने पर ही दिया जाता है। यह लाइसेंस साढ़े सात बजे से साढ़े 10 बजे तक ही दिया जाता है। अन्य नशे अफीम, चरस, गांजा आदि की अनुमति नहीं दी जाती। इस पर कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की कि क्या सरकार नशे का कारोबार कर राजस्व वसूलना चाहती है।

4. हाईकोर्ट फ्लाई ओवर, सर्विस लेन चौड़ीकरण पर मांगा जवाब

इलाहाबाद हाईकोर्ट के बगल पी डी टण्डन रोड (कानपूर रोड) पर बने फ्लाई ओवर बृज के नीचे की सर्विस लेन से अतिक्रमण हटाकर चौड़ा करने की मांग में दाखिल जनहित याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। याचिका की अगली सुनवाई 9 जनवरी को होगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ तथा न्यायमूर्ति वाई.के. श्रीवास्तव की खंडपीठ ने बार एसोसिएशन के पूर्व महासचिव प्रभा शंकर मिश्र की जनहित याचिका पर दिया है। याची अधिवक्ता राकेश पांडेय बबुआ का कहना है कि फ्लाई ओवर बन कर चालू हो चुका है और सर्विस लेन अभी तक नहीं बनी है। फ्लाई ओवर के शुरुआत में 12 फीट की सड़क है जब कि कम से कम 7 मीटर यानि 21 फीट होनी चाहिए। याचिका में सर्विस लेन की गाइड लाइन का पालन करने व अतिक्रमण हटाकर सर्विस लेन चालू करने की मांग की गयी है।

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5. अक्षयवट मंदिर में बदलाव पर चार हफ्ते में मांगा जवाब

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अक्षयवट पातालपुरी मंदिर में बदलाव के खिलाफ याचिका पर केंद्र सरकार व ओ डी फोर्ट इलाहाबाद के कमांडेंट से 4 हफ्ते में जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति अभिनव उपाध्याय तथा न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने श्री अक्षयवट मंदिर किला प्रयाग की याचिका पर दिया है। याचिका याची संस्था के सचिव रवीन्द्र नाथ योगेश्वर व अन्य ने दाखिल की है। याचिका का प्रतिवाद भारत सरकार के अधिवक्ता सभाजीत सिंह ने किया।

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याची का कहना है कि जलालुद्दीन अकबर ने गंगा यमुना मुहाने पर किले का निर्माण कराया। किले में पातालपुरी अक्षयवट मंदिर है। अकबर ने ही मंदिर में याची के पूर्वजों को पूजा का अधिकार दिया जिसे शाह आलम द्वितीय ने1795 में आदेश जारी कर मान्यता दी है। औरंगजेब ने मंदिर के चढ़ावे को जजिया मुक्त कर दिया था। किले के कमांडेंट के 24 फरवरी 2018 के आदेश से सुंदरीकरण के बहाने पातालपुरी मंदिर का नाम दिगम्बर जैन पद चिन्ह किया जा रहा है। याची का कहना है कि 500 परिवार मंदिर के चढ़ावे से जीविका चला रहे है। कुम्भ मेले के चलते किये जा रहे बदलाव से याचियों के जीविका को छीनने का प्रयास हो रहा है। याचिका में टीकरमाफी के महंत स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी को भी पक्षकार बनाया गया है।

6. कुम्भ मेले में प्लाट आवंटन पर निर्णय लेने का निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुम्भ मेला प्रयाग में याची संस्था को नियमानुसार प्लाट आवंटित करने पर मेला प्रभारी को विचार कर निर्णय लेने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अभिनव उपाध्याय तथा न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खण्डपीठ ने सिंह वाहिनी संस्थान के अध्यक्ष राजेश कुमार सिंह की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। याची अधिवक्ता का कहना था कि याची ने 5 नवम्बर 18 को कुम्भ मेला में भूमि आवंटन की ऑनलाइन अर्जी दी है किन्तु उसे जमीन नहीं दी जा रही है। मेला प्रभारी के वकील का कहना था कि अभी आवंटन शुरू नहीं हुआ है जब शुरू होगा तो नियमानुसार निर्णय लिया जायेगा। इस पर कोर्ट ने याचिका निस्तारित कर दी।

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