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राहत शिविर की बदहाली पर मजबूर है जिंदगी, भेड़-बकरियों की तरह रह रहे लोग
वाराणसीः विनाशकारी रूप धारण कर चुकी गंगा ने उत्तप्रदेश के कई जिलों में भारी तबाही मचाई है। मां गंगा ने सितम कुछ इस कदर बरपाया की रातों रात हज़ारों लोग बेघर हो गए। कहते है कुदरत के आगे किसी की नहीं चलती लेकिन स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब खुद इंसान ही इंसान के दर्द को नहीं समझता। जी हां वाराणसी में बाढ़ पीड़ितों के साथ जिस तरीके का मज़ाक हो रहा है उसे देखकर आप भी मायुस हो जाएंगे।
राहत शिविर में रहने को मजबूर
वाराणसी में बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित अस्सी से रमना तक का इलाका है। यहां सैकड़ों कालोनियां और मोहल्ले बसे हुए है जिनमें हजारो लोग इस समय बाढ़ से ग्रसित हैं। कुछ लोगों ने अपने रिश्तेदारों के यहां तो कुछ ने घर में छतो पर अपना डेरा डाला हुआ है लेकिन कुछ राहत शिविर में रहने को मज़बूर है। ऐसे ही एक राहत शिविर का हमने जायजा लिया जहां की हालत बद से बत्तर नजर आई। यहां न तो सोने को बिस्तर है और ना चलने को जगह, चार रूम और एक हॉल वाले इस शिविर में 300 सौ बाढ़ पीड़ित सहारा लिए हुए है जबकि यहां मात्र 50 लोगों के रहने की कैपसिटी है।
भेड़-बकरियों की तरह रह रहे हैं लोग
गंगा के कहर का शिकार हुए लोग अब बाढ़ राहत शिविर में शरण लेने को मजबूर है। कल तक इनके सर पर छत थी मगर आज ये सब बेघर हो गए हैं। वाराणसी के अस्सी वार्ड में राहत शिविर तैयार किया गया है। इस शिविर में बाढ़ पीड़ित भेड़ बकरियों की तरह रहने को मजबूर है। न तो यहां बिजली की सुविधा है और न ही शौच का इंतेज़ाम, यहां तक की खाना और पानी भी गले की निचे उतरने जैसा नहीं हैं।
आलाधिकारी कर चुके हैं दौरा
बाढ़ पीड़ितों के मदद का आश्वासन देने वाली अखिलेश सरकार के आलाधिकारि भी कई बार इस शिविर का दौरा किए लेकिन अब तक न तो किसी ने यहां की समस्याओं पर ध्यान दिया और न ही उसका निवारण किया और तो और जिलाधिकारी की ओर से प्रतिनिधि के तौर पर तैनात अमीनो को भी इन बातों की फ़िक्र नहीं हैं।
बनाए गए दो राहत शिविर
सिर्फ वाराणसी में बाढ़ से प्रभावित होने वालों की संख्या करीब डेढ़ से दो लाख है। खासतौर से अस्सी वार्ड में 4000 ऐसे लोग है जो बाढ़ का दंश झेल रहे है और इसके लिए यहां सिर्फ 2 शिविरों का ही प्रबंधन किया गया है। इन शिविरों की कुल क्षमता महज 100 लोगों की है। ऐसे में सरकार की तरफ से आपदा प्रबंधन और सहायता का ये तरीका कितना मुनासिब और उचित है इसका फैसला खुद जनता ही कर सकती है।