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दावे और हकीकत: हवाई अड्डे के नाम पर सब हवा-हवाई
सुशील कुमार
मेरठ: मेरठ में अंतरराष्ट्रीय स्तर के हवाई अड्डे के निर्माण के प्रस्ताव पर मंडरा रहे बादल अभी छंटते नहीं दिख रहे हैं। हालांकि जिले के प्रभारी मंत्री श्रीकांत शर्मा ने हाल ही में अपने मेरठ दौरे के दौरान जिले के विकास को नई उड़ान देने का भरोसा जगाया था। उन्होंने मेरठ को पश्चिमी उप्र का दिल बताते हुए कहा था कि मेरठ वासी उड़ान की तैयारी रखें। उनको यह कहे अभी करीब एक सप्ताह ही बीता होगा कि 24 सितम्बर को उत्तर प्रदेश सरकार ने पड़ोस के गौतमबुद्धनगर में जेवर के पास बनने वाले नोएडा इंटरनेशनल ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट के बिड डाक्यूमेंट में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूर कर दिया। कहा गया है कि इस एयरपोर्ट का पहला रनवे 2023 से चालू होगा। इस खबर के बाद मेरठ के लोग इस बात से ठगा महसूस कर रहे हैं कि पड़ोस के गौतमबुद्धनगर जैसे शहरों से उड़ान मिलेगी, लेकिन मेरठ के लोगों को हवाई सेवाओं के लिए हिंडन या दिल्ली का ही रुख करना पड़ेगा।
सीएम भी कर चुके हैं घोषणा
पश्चिमी उप्र का सबसे प्रमुख शहर होने के बावजूद अभी तक मेरठ में अंतरराष्ट्रीय स्तर के हवाई अड्डे के निर्माण के प्रस्ताव पर मंडरा रहे खतरे के बादलों से पता चलता है कि केंद्र और प्रदेश सरकार इसे लेकर कितना गंभीर है। ऐसा नहीं है कि दोनों ही सरकारें मेरठ की मांग से अनजान हैं। प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ तो मेरठ में आकर हवाई सेवा शुरू करने की घोषणा तक कर चुके हैं जबकि केंद्र में नागरिक उड्डयन मंत्रालय में दर्जनों बार अर्जी लगाई जा चुकी है। जनप्रतिनिधियों के साथ ही मेरठ के उद्यमी व व्यापारी तक कई बार उड़ान सेवा शुरू करने की मांग रख चुके हैं।
सकारात्मक थी सर्वे रिपोर्ट
एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने किटको कंपनी से इस बाबत एक सर्वे कराया था। सर्वे रिपोर्ट में मेरठ से बेंगलुरु, मुंबई, जम्मू, लखनऊ व इलाहाबाद जैसे शहरों की उड़ान पर सकारात्मक रुख दिखा था। लगभग सालभर में यह ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की गई थी। मेरठ में एयरपोर्ट डेवलप किए जाने की खातिर 4 जुलाईए 2014 को एएआई के साथ प्रदेश सरकार ने समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किया था और इस कड़ी में मौजूदा 47 एकड़ की जमीन पर फैली हवाई पट्टी को एएआई को सौंप दिया गया था। प्रदेश सरकार को कुल 503 एकड़ जमीन देनी थी और एएआई को एयरपोर्ट डेवलप करना था। शेष भूमि के लिए 5600 रुपये के रेट से अधिग्रहण पर किसानों को जिला प्रशासन ने राजी किया और तय किया गया कि लगभग 920 करोड़ रुपया जारी होते ही जमीन लेकर एएआई को दे दी जाएगी। लेकिन तभी मेरठ में हवाई अड्डे को घाटे का सौदा बताते हुए एएआई और प्रदेश सरकार ने भी हाथ खींच लिए।
तर्क पर खड़े हुए सवाल
मेरठ से उड़ान न मिल पाने को लेकर तर्क यह दिया गया कि दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और जीएमआर के बीच अनुबंध की वजह से 2033 तक दिल्ली के 150 किमी के घेरे में दूसरा कोई हवाई अड्डा डेवलप नहीं हो सकता। इस तर्क पर भी तमाम सवाल खड़े होते हैं। पहला कि अगर ऐसा है तो हिंडन को मंजूरी कैसे मिली, दूसरा मेरठ में हवाई पट्टी पहले से है उसका उच्चीकरण होना है और तीसरा यह कि दिल्ली एयरपोर्ट से मेरठ की एरियल दूरी 69 किमी है और जेवर की 66। जेवर में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाया जा रहा है और मेरठ को उपेक्षित रखा गया है। हिंडन से हवाई उड़ान के लिए प्रदेश सरकार ने जीएमआर से संपर्क कर अनुबंध किया, लेकिन मेरठ के मामले में यह दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। बहरहाल नई खबर यह है कि मेरठ में मौजूदा हवाई पट्टी को विकसित करके छोटे विमान से प्रदेश के शहरों के बीच उड़ान की योजना तैयार की जा रही है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर हवाई पट्टी के विस्तार के लिए जमीन की आवश्यकता, उपलब्धता और उसके मूल्यांकन का प्रस्ताव जिला प्रशासन तैयार कर रहा है। दावा है कि बहुत जल्द यह प्रस्ताव शासन को भेज दिया जाएगा।
सांसद को चुनाव पूर्व उड़ान का विश्वास
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा.लक्ष्मीकांत बाजपेयी कहते हैं कि उड़ान मेरठ के औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक है। इसमें जमीन की उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती है। इसके बाद मेरठ से उड़ान भरने में समय नहीं लगेगा। 18 सीटर विमान उड़ाने के लिए फायर ब्रिगेड, एम्बुलेंस और सुरक्षा की व्यवस्था राज्य सरकार अपने स्तर से दे सकती है। वहीं एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया आठ-दस दिन में अस्थायी एयर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम चालू कर लेता है। स्थानीय सांसद राजेंद्र अग्रवाल की मानें तो दिल्ली के एयरपोर्ट और जीएमआर के पुराने अनुबंध की वजह से मेरठ को हक नहीं मिल पा रहा है। बकौल राजेन्द्र अग्रवाल इस संबंध में केंद्रीय मंत्रियों के साथ ही सीएम योगी तक से मेरी बात हुई है। प्रदेश सरकार इस दिशा में हल निकलने के लिए प्रयास भी कर रही है। उड़ान के लिए मेरठ सबसे मुफीद शहर है। यहां के लोगों की जरूरत और खर्च करने की क्षमता भी दूसरे शहरों से अधिक है। मुझे विश्वास है कि चुनाव पूर्व मेरठ से उड़ान मिल जाएगी।
जरुरत के मुताबिक जमीन उपलब्ध नहीं
वहीं मेरठ की आयुक्त अनीता सी मेश्राम इस मामले में अधिक कुछ ना कहते हुए सिर्फ इतना ही कहती हैं कि हवाई पट्टी के विस्तार के लिए मुख्यमंत्री के आदेश पर डीएम से भूमि की आवश्यकता, उपलब्धता, किसानों की सहमति और इसके मूल्यांकन के संबंध में रिपोर्ट मांगी गई है। इसे तैयार किया जा रहा है। इसके बाद सरकार के निर्देश के मुताबिक जमीन की व्यवस्था की जाएगी। दूसरी तरफ विभागीय सूत्रों की मानें तो केंद्र सरकार की उड़ान योजना रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम में भले ही मेरठ को शामिल करके हवाई अड्डा बनाने की तैयारी की जा रही हो, लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा जमीन है। यहां आवश्यकता के मुताबिक जमीन उपलब्ध नहीं है।
लिहाजा एएआई को फिर से मास्टर प्लान को जमीन की उपलब्धता के आधार पर संशोधित करने के लिए कहा गया है। सूत्रों के अनुसार एएआई द्वारा तैयार किए गए तीसरे मास्टर प्लान में हवाई पट्टी की भूमि के अलावा हवाई अड्डे के लिए दो चरणों में 405 एकड़ जमीन की मांग की गई थी। चार जुलाई 2014 को एएआई के साथ प्रदेश सरकार ने समझौता करके 47 एकड़ की जमीन पर फैली हवाई पट्टी को एएआई को सौंप दिया था। एयरपोर्ट अथॉरिटी द्वारा हवाई अड्डे के लिए प्रदेश सरकार से कुल 503 एकड़ जमीन की मांग की गई थी। हवाई अड्डे के लिए मेरठ महायोजना में 503 एकड़ जमीन आरक्षित की गई है। 47 एकड़ में फिलहाल हवाई पट्टी बनी है। 86 एकड़ का अधिग्रहण किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में वन व अन्य विभागों की 18 एकड़ जमीन है। अब 352 एकड़ जमीन का इंतजाम ही किया जाना है। केंद्र सरकार की जिस उड़ान योजना के तहत मेरठ की हवाई पट्टी के विस्तार का प्रयास किया जा रहा है उसके तहत मेरठ से 2500 रुपये में लखनऊ तक का हवाई सफर मुमकिन है।
सत्ता पक्ष के लोग कर रहे पैरोकारी का दावा
केंद्र सरकार की उड़ान योजना के तहत हवाई पट्टी का विस्तार करके छोटे विमान उड़ाने की व्यवस्था की जानी है। इसके लिए एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने जुलाई में तीसरी बार मास्टर प्लान नागरिक उड्डयन विभाग को सौंपकर दो चरणों में कुल 405 एकड़ जमीन की मांग की है। पहले चरण में 282 तथा दूसरे चरण में 122 एकड़ जमीन की आवश्यकता होगी। आखिर सरकार द्वारा इस मामले में मेरठ की उपेक्षा क्यों की जा रही है जबकि सत्ता पक्ष के लोग इस मामले में सरकार के समक्ष अपनी तरफ से जमकर पैरोकारी करने का दावा करते नही थक रहे हैं। इस सवाल के जवाब में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी इतना ही कहते हैं कि मैने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था। इस पर सीएम के निर्देश पर नागरिक उड्डयन विभाग ने डीएम से रिपोर्ट मांगी है। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए एमडीए और मेरठ तहसील के अधिकारी जुटे हैं। बाजपेयी की मानें तो खसरों की संख्या, प्रत्येक खसरे की जमीन और जमीन के मालिकों के नाम का विवरण तैयार है।
बढ़ाई जानी है हवाई पट्टी की लंबाई-चौड़ाई
उधर विभागीय अफसरों के अनुसार मेरठ की मौजूदा हवाई पट्टी 23 मीटर चौड़ी है और 1513 मीटर लंबी है। इस हवाई पट्टी को 72 सीटर विमान के मानक के मुताबिक 30 मीटर चौड़ा और 1845 मीटर लंबा करना होगा। हवाई पट्टी के दोनों ओर 75.75 मीटर चौड़ी कच्ची जमीन चाहिए ताकि हादसे की स्थिति में क्षति कम से कम हो सके। जमीन खरीदने के लिए जिला प्रशासन द्वारा शासन को दो सुझाव दिए जाएंगे। पहला किसानों से वार्ता करके आपसी सहमति से जमीन का बैनामा करा लिया जाए तथा दूसरा नई भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के माध्यम से सर्किल रेट से दो और चार गुना राशि का भुगतान करने का सुझाव है।
पांच साल से अधिक समय से चल रही कवायद
मेरठ से हवाई उड़ान को लेकर पांच साल से भी अधिक समय से कवायद चल रही है। पूर्व केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री चौ.अजित सिंह ने मेरठ में हवाई अड्डे की घोषणा की थी, लेकिन सपा सरकार द्वारा जमीन उपलब्ध कराने में बरती गई उदासीनता के कारण मामला फंस गया। इसके बाद भाजपा सरकार ने भी इस तरफ अपेक्षित ध्यान नहीं दिया। प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी घोषणा जरूर करते रहे। राष्ट्रीय लोकदल के पश्चिमी उत्तर प्रदेश महासचिव राजकुमार सांगवान की मानें तो मेरठ में हवाई उड़ान का मामला अधर में लटका होने के पीछे सबसे बड़ी वजह यही है कि सरकार नहीं चाहती है कि मेरठ में हवाई उड़ान का श्रेय चौधरी अजित सिंह को मिले। उन्होंने कहा कि सरकार की यह सोच बेहद निन्दनीय है क्योंकि महज श्रेय के चक्कर में जनता को किसी सुविधा से वंचित करना बड़ी ही ओछी राजनीति कही जा सकती है।