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गठबंधन की गांठ खोलने में जुटे बागी, उम्मीदवारी के लिए तलाश रहे पार्टी
पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ सीटों पर सपा-बसपा गठबंधन की चुनावी रणनीति की पहली तस्वीर साफ होने के बाद बागियों की आहटें सुनी जाने लगी हैं। निषाद पार्टी और पीस पार्टी गठबंधन को आंखें दिखा ही रही है, तो सपा के पुराने दिग्गज भी अनदेखी को लेकर रणनीति ही नहीं नई राह तलाशने में जुट गए हैं। जिन सीटों पर पार्टी का नाम तय हो गया है, वहां उम्मीदवारी के लिए पेशबंदी और बगावत साथ-साथ नजर आ रही है। भाजपा की आक्रामक राजनीति और प्रियंका के करिश्मे के भरोसे नये सिरे से पूर्वांचल में पांव जमाने की कांग्रेस की कोशिशों के बीच गठबंधन के रणनीतिकारों की नींद उड़ी हुई है।
गोरखपुर-बस्ती मंडल की 9 सीटों में से बसपा 6 और सपा 3 सीटों पर लड़ेगी। पिछले लोकसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने वाली पार्टी का फार्मूला चलता तो बसपा को सात और सपा को दो सीटें ही मिलतीं। बहरहाल, बसपा बांसगांव, देवरिया, सलेमपुर, डुमरियागंज, बस्ती, संतकबीर नगर और सपा कुशीनगर, महराजगंज और गोरखपुर सीट पर चुनाव लड़ेगी। सपा के खाते में बसपा के मुकाबले कठिन सीटें मिली हैं। मसलन, गोरखपुर में खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर है तो वहीं कुशीनगर में कांग्रेस के दिग्गज कुंवर आरपीएन सिंह की दावेदारी है। सपा और बसपा ने अभी प्रत्याशी नहीं घोषित किया है, लेकिन संभावित चेहरों के साथ बागियों की आवाज अंदरखाने से बुलंद होती दिख रही है।
गठबंधन के सामने उसके पुराने साथी भी बागी तेवर दिखा रहे हैं। गठबंधन में महराजगंज लोकसभा की सीट सपा के खाते में गई है, लेकिन निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.संजय निषाद पिछले एक पखवाड़े से महराजगंज में खुद को गठबंधन का उम्मीदवार बता रहे हैं। इतना ही नहीं गठबंधन में खुद को अधिक तरजीह नहीं मिलता देख निषाद पार्टी और पीस पार्टी के कर्ताधर्ता कांग्रेस के संपर्क में हैं। पिछले 17 फरवरी को पीस पार्टी और निषाद पार्टी ने कांग्रेस की पूर्वांचल प्रभारी प्रियंका गांधी से मिलकर पांच-पांच सीटों पर चुनाव लडऩे की इच्छा जाहिर की। उनके साथ पहले से कांग्रेस को समर्थन दे चुके महान दल के केशव देव मौर्य भी थे।
बदल जाएगा गोरखपुर सीट का गणित
निषाद पार्टी की नजदीकियां कांग्रेस से बढ़ती हैं तो गोरखपुर सीट का चुनावी गणित बदल जाएगा। गोरखपुर में हुए उपचुनाव में सपा और बसपा ने निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को साइकिल का चुनाव निशान दिया था। प्रवीण ने गोरखपुर सीट पर गोरक्षपीठ के दो दशक पुराने वर्चस्व को तोडक़र जीत हासिल की थी। नए उलटफेर में प्रवीण निषाद का गणित बिगड़ता है तो सपा गोरखपुर से पूर्व मंत्री स्व.जमुना निषाद की पत्नी राजमति या बेटे अमरेन्द्र निषाद पर दांव खेल सकती है। इसके साथ ही पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद को गठबंधन उम्मीदवार बना दिया जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
महराजगंज सीट का गणित उलझा
उधर, सपा के खाते की महराजगंज सीट का गणित भी उलझा हुआ है। इस सीट से सपा की तरफ से पूर्व सांसद अखिलेश सिंह तो बसपा की तरफ से विधानपरिषद के पूर्व उपसभापति गणेश शंकर पांडेय की मजबूत दावेदारी थी। बदले समीकरण में सपा के अखिलेश यादव की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है। हालांकि पिछली बार बसपा के टिकट पर दूसरे नंबर पर रहने वाले बिल्डर काशीनाथ शुक्ला भी सपा के सिंबल पर चुनाव लडऩे को लेकर हाथ-पैर मार रहे हैं। ऐसे में गणेश शंकर पांडेय के कदम को लेकर समर्थकों में बेचैनी है।
कुशीनगर की सीट भी सपा के खाते में गई है। यहां से पूर्व मंत्री ब्रह्माशंकर और राधेश्याम सिंह के बीच टिकट को लेकर जोर आजमाइश है। वहीं देवरिया जिले से जुड़ी तीनों सीटें बसपा के खाते में हैं। ऐसे में सपा के टिकट की कतार में खड़े कई पुराने सपाई अब प्रगतिशील समाजवादी से संपर्क बढ़ाने में जुट गए हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में देवरिया सदर, सलेमपुर और बांसगांव (सुरक्षित) तीनों संसदीय सीटों पर बसपा दूसरे नंबर पर थी। सलेमपुर सीट पर बसपा ने प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा को प्रभारी घोषित किया है तो सदर पर पूर्व सांसद गोरख जायसवाल के दामाद विनोद जायसवाल को प्रभारी बनाया है। दोनों ने ही चुनावी अभियान की शुरुआत भी कर दी है।
सीटों के ऐलान से पूर्व कई सपाई भी यहां से दावेदारी पेश कर रहे थे। कई ने शहर में जगह-जगह बैनर-होर्डिंग लगवाकर अपने मंसूबे जाहिर भी कर दिए थे और पूरे जोर-शोर से प्रचार में उतर गए थे। सपा जिलाध्यक्ष रामइकबाल यादव का कहना है कि चुनाव में गठबंधन को जीत दिलाने के एकमात्र मकसद से काम करते हुए सभी कार्यकर्ता मजबूती से खड़े हैं। जल्द ही इसका असर भी दिखने लगेगा।
उलटफेर में मुश्किल में फंसे दिग्गज
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के हरीश द्विवेदी को पूर्व कैबिनेट मंत्री राजकिशोर सिंह भाई बृजकिशोर सिंह उर्फ डिंपल ने कड़ी टक्कर दी थी। भाजपा के टिकट पर जीते हरीश द्विवेदी को 357680 मत मिले थे तो दूसरे नंबर पर रहने वाले डिंपल को 324118 मत मिले थे। बसपा के राम प्रसाद चौधरी तीसरे स्थान पर थे। अब बस्ती लोकसभा सीट से राम प्रसाद चौधरी की मजबूत दावेदारी मानी जा रही है।
इसी बीच बसपा सुप्रीमो मायावती ने संतकबीरनगर लोकसभा सीट पर बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के बेटे भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी को लोकसभा प्रभारी बनाया है। ऐसे में पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ अयूब और पूर्व सांसद भालचंद यादव के मंसूबों पर पानी फिरना तय है। देवरिया में सपा के पूर्व सांसद बालेश्वर यादव की उम्मीदें भी गठबंधन के बाद धाराशायी हो गई है।
बागियों को कांग्रेस और शिवपाल से उम्मीदें
बसपा और सपा के गठबंधन से हाशिये पर पहुंचे दिग्गजों में कोई चेहरा त्याग की प्रतिमूर्ति बनने को तैयार नहीं है। ऐसे में खुद का टिकट कटता देख दिग्गजों ने कांग्रेस और शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया की तरफ कदम बढ़ा दिया है। महराजगंज में पूर्व मंत्री अमर मणि त्रिपाठी के भाई अजीत मणि त्रिपाठी और बसपा से तैयारी कर रहे गणेश शंकर पांडेय गठबंधन का टिकट नहीं मिलता देख दूसरे विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। देवरिया में बालेश्वर यादव, संतकबीर नगर में भालचंद यादव और बस्ती में राजकिशोर सिंह को शिवपाल का करीबी माना जाता रहा है। ऐसे में ये दिग्गज शिवपाल के साथ ताल ठोंकते दिखे तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। उधर, भाजपा में भी कई सीटों पर नये चेहरों पर दांव लगाने की चर्चाएं हैं। भाजपा में जिन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा, उनके लिए भी कांग्रेस और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया में एंट्री सहज साबित होने वाली है।