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मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना..., रिटायर्ड फौजी का अनोखा प्रयास
इस रिटायर्ड फौजी को तो समझ आ गया कि आपसी भाईचारा कितना जरूरी है, लेकिन उन लोगों को भी समझने की जरूरत है जो इस मुश्किल घड़ी में भी सांप्रदायिकता की रोटियां सेकने से बाज नहीं आ रहें हैं...और कहते भी हैं मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी है हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।
बागपतः लाॅकडाउन के बाद से देश के कई हिस्सों से ऐसी खबरें आईं, जहां धर्म के आधार पर सब्जी वालों को बांट दिया गया...उनसे नाम पूछकर सब्जी ली जाने लगी....चंद लोगों के गलत मंसूबों की खातिर कई गरीब लोगों की रोजी रोटी पर संकट खड़ा हो गया...
लेकिन बागपत के एक रिटायर्ड फौजी ने इसी आपसी भाईचारे को कायम रखने का अनोखा प्रयास किया...उसने सब्जी भी अलग अंदाज में बेची और लोगों को जागरूक भी किया...सब्जी वाले का ठेला लिया और सब्जी ले लो की आवाज लगानी शुरू कर दी...वीडियो भी बनवाई और जागरूकता के लिए ये वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल भी कर दी....
.सब्जी बेचने वाली ये वीडियो शायद उन लोगों के लिए ही है जो कोरोना वायरस की वजह से मुश्किल हालातों में घिरे हिंदुस्तान में मजहबी जहर घोलने का काम कर रहें हैं..इस बात को सुनकर भी आप चैक जाएंगे कि ये कोई सब्जी वाला नहीं है, बल्कि रिटायर्ड फौजी सुभाष कश्यप है
....बागपत के खेकड़ा कस्बे के रहने वाले रिटायर्ड फौजी सुभाष कश्यप ने जब सोशल मीडिया पर इस तरह की खबरे देखी की नाम पूछकर सब्जी खरीदें तो वो आहत हो गए....उन्होंने एक सब्जी वाले का ठेला लिया और फिर एक भोपू लेकर सब्जी बेचनी शुरू कर दी...शायद उन्हें पता है कि हिंदू-मुस्लिम-सिख और ईंसाई एक साथ रहते हैं तो क्या ताकत होती है...फौज में इसे उन्होंने बखूबी महसूस भी किया...
नाम पूछकर क्यों सब्जी ले रहे हैं
बस फिर क्या था बागपत की सड़कों पर कुछ इसी अंदाज में निकल पड़े...अपनी वीडियो बनवाई और फिर सोशल मीडिया पर वायरल कर दी...इस वीडियो में साफ कहा जा रहा है कि नाम पूछकर क्यों सब्जी ले रहें हैं...मैं हिंदुस्तानी हू और कोई पाकिस्तान या अमेरिका में सब्जी नहीं बेच रहा हूं, हिंदुस्तान में ही सब्जी बेच रहा हूं....
दरअसल, सुभाष कश्यप ने 15 साल देश की सेवा की और फिर वीआरएस ले लिया। उनका कहना है कि जब किसी को ये नहीं पता चल पाता कि सब्जी हिंदू या मुस्लिम के खेत में उगी है तो फिर ठेले पर ये क्यों पूछा जा रहा है कि सब्जी वाला हिंदू या है मुस्लिम।
इस रिटायर्ड फौजी को तो समझ आ गया कि आपसी भाईचारा कितना जरूरी है, लेकिन उन लोगों को भी समझने की जरूरत है जो इस मुश्किल घड़ी में भी सांप्रदायिकता की रोटियां सेकने से बाज नहीं आ रहें हैं...और कहते भी हैं मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी है हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।