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कोविड-19: डेढ लाख रेमडेसिविर रोज का उत्‍पादन तो क्‍यों हो रही कालाबाजारी

कोरोना संक्रमित गंभीर रोगियों के लिए जरूरी दवा रेमडेसिविर इंजेक्‍शन की पूरे देश में कालाबाजारी हो रही है।

Akhilesh Tiwari
Written By Akhilesh TiwariPublished By Shraddha
Published on: 19 April 2021 9:00 PM IST
दवा रेमडेसिविर इंजेक्‍शन की पूरे देश में हो रही कालाबाजारी
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दवा रेमडेसिविर इंजेक्‍शन की पूरे देश में हो रही कालाबाजारी फाइल फोटो 

लखनऊ । कोरोना संक्रमित मरीजों की देखभाल और इलाज में हर स्‍तर पर लापरवाही उजागर हो रही है। हाल यह है कि कोरोना संक्रमित गंभीर रोगियों के लिए जरूरी दवा रेमडेसिविर इंजेक्‍शन की पूरे देश में कालाबाजारी हो रही है। उत्‍तर प्रदेश की योगी सरकार ने तीन दिन पहले 25 हजार इंजेक्‍शन मंगाए हैं। 30 हजार इंजेक्‍शन सोमवार की शाम तक आ गए हैं। बाजार में भी कंपनियों ने आपूर्ति की है। उत्‍तर प्रदेश में अभी कुल 45 एल टू और एल थ्री हॉस्पिटल संचालित किए जा रहे हैं जहां अधिकतम दस हजार मरीज भर्ती हैं जिन्‍हें रेम‍डेसिविर की जरूरत हो सकती है। देश में हर रोज डेढ लाख रेम‍डेसिविर इंजेक्‍शन तैयार हो रहे हैं। अगले सप्‍ताह तक दो लाख और अप्रैल अंत तक तीन लाख इंजेक्‍शन प्रतिदिन तैयार होने लगेंगे तो बडा सवाल है कि आखिर वह कौन लोग हैं, जो इंजेक्‍शन की कालाबाजारी कर रहे हैं। इससे भी बडा सवाल है कि आखिर सरकार उन पर हाथ डालने में देर क्‍यों कर रही है।

कोरोना मरीजों के लिए रामबाण मानी जा रही दवा रेमडेसिविर की पूरे देश में बडे पैमाने पर कालाबाजारी हो रही है। हर ओर हाहाकार मचा है। लोग एक अदद इंजेक्‍शन के लिए ऐसे गिडगिडा रहे हैं कि कठोर दिल वाले को भी रोना आ जाए। अपनों की जान बचाने के लिए लोग बाजार के हैवानों को मुंह मांगी रकम देने को तैयार है। राजधानी लखनऊ में बीस हजार रुपये में इंजेक्‍शन मिल रहा है तो देश के कई हिस्‍सों में लोगों ने इसके लिए पचास हजार से लेकर एक लाख रुपये तक चुकाए हैं। इस हाल के बावजूद सरकारी मशीनरी चुप बैठी हुई है। चुनावी राज्‍यों में इंकम टैक्‍स और ईडी के छापे देखने वाले तरस रहे हैं कि देश में कहीं उन जमाखोरों और कालाबाजारियों पर भी कार्रवाई हो जो इंजेक्‍शन का ब्‍लैक कर रहे हैं। आश्‍चर्य है कि पिछले दस दिन के दौरान अब तक सरकार ने कहीं भी ऐसे लोगों पर कार्रवाई नहीं की है।

सात कंपनियां करती हैं रेमडेसिवि‍र का उत्‍पादन

देश में रेमडेसिविर इंजेक्‍शन बनाने वाली सात दवा कंपनियां हैं। इनकी प्रतिमाह उत्‍पादन क्षमता 38 लाख इंजेक्‍शन की है। जनवरी- फरवरी में मरीजों की तादाद घटने के बाद पांच कंपनियों ने उत्‍पादन बंद कर दिया था। केंद्र सरकार के रसायन एवं उर्वरक राज्‍य मंत्री मनसुख मंडाविया के अनुसार छह अप्रैल को केवल दो कंपनियां उत्‍पादन कर रही थीं और देश की कुल उत्‍पादन क्षमता का बीस प्रतिशत उत्‍पादन हो रहा था। सभी कंपनियों ने पूरी क्षमता के अनुसार उत्‍पादन करने को कहा और सभी को दोगुना उत्‍पादन बढाने की अनुमति भी दे डाली। मंत्री का दावा है कि तीस अप्रैल से पहले देश में प्रतिदिन तीन लाख इंजेक्‍शन यानी हर माह 90 लाख इंजेक्‍शन का उत्‍पादन शुरू हो जाएगा। उनका कहना है कि उत्‍पादन शुरू करने में 21 दिन लगते हैं।

कैसे हुई किल्‍लत

एक इंटरव्‍यू में केंद्र सरकार के मंत्री मंडाविया ने दावा किया है कि छह अप्रैल के दिन क्‍योंकि देश की उत्‍पादन क्षमता का केवल बीस प्रतिशत इंजेक्‍शन ही तैयार किया जा रहा था और मामले तेजी से बढे। इसलिए बाजार में किल्‍लत हुई है। मंत्री के अनुसार छह अप्रैल को बीस प्रति‍शत यानी सात लाख 60 हजार इंजेक्‍शन रोज तैयार हो रहे थे जबकि इस दिन कोरोना मरीजों के 96982 नए मामले सामने आए थे और कुल संक्रमित जिनका उपचार किया जा रहा था। उनकी संख्‍या 7,88,223 थी।

रेमडेसिविर इंजेक्‍शन की पूरे देश में हो रही कालाबाजारी फाइल फोटो

सरकार के विशेषज्ञों के अनुसार 80 प्रतिशत लोग होम आइसोलेशन में ठीक हो रहे हैं। दस से 15 प्रतिशत लेवल वन हॉस्पिटल से ठीक होकर लौट रहे हैं यानी सरकार के लेवल टू और लेवल थ्री अस्‍पतालों में कुल पांच प्रतिशत ऐसे मरीज पहुंचते हैं जिन्‍हें रेमडेसिविर की जरूरत पड सकती थी। यानी छह अप्रैल को देश में कुल 70 या 80 हजार ऐसे मरीज थे जिन्‍हें रेमेडेसिविर की जरूरत थी। ध्‍यान रहे इस दिन तक देश में रेमडेसिविर का उत्‍पादन सात लाख 60 हजार वॉयल प्रतिदिन था। यानी आवश्‍यकता से भी कई गुना ज्‍यादा। इसके बावजूद अगले पांच दिनों में हालात बेकाबू हो गए।

गुजरात भाजपा प्रदेश अध्‍यक्ष के पास पांच हजार रेमडेसिविर इंजेक्‍शन मौजूद

दस अप्रैल तक गुजरात के सूरत में इंजेक्‍शन के लिए मारामारी की खबरें सामने आईं और यह भी पता चला कि गुजरात भाजपा प्रदेश अध्‍यक्ष के पास पांच हजार रेमडेसिविर इंजेक्‍शन मौजूद हैं। इसी दिन के बाद इंजेक्‍शन की कालाबाजारी और किल्‍लत की खबरें तेजी से सामने आईं और आज हाल यह है कि लखनऊ जैसे शहर में भी इंजेक्‍शन ब्‍लैक में बेचा जा रहा है। इसके बावजूद अब तक केंद्र सरकार या राज्‍य सरकारों ने कहीं भी इंजेक्‍शन की कालाबाजारी करने वालों पर कार्रवाई नहीं की है।

विदेश से आयात है विकल्‍प

केंद्रीय मंत्री मंडाविया के अनुसार 23 अप्रैल तक हर रोज दो लाख इंजेक्‍शन का उत्‍पादन होने लगेगा। लेकिन जिस तेजी से कोरोना फैल रहा है और इंजेक्‍शन की बाजार में मांग बनी हुई है ऐसे में केवल देशी उत्‍पादन के भरोसे नहीं रहा जा सकता। जबकि इंजेक्‍शन की कालाबाजारी रोक पाने में सरकार नाकाम है। ऐसे में एक ही तरीका है कि सरकार दूसरे देशों से इंजेक्‍शन का आयात करे और बाजार में कालाबाजारी को रोके। सोमवार 19 अप्रैल को देश में कोरोना संक्रमित रोगी 19 लाख हैं और प्रतिदिन डेढ लाख इंजेक्‍शन का उत्‍पादन किया जा रहा है। हर रोज जबकि एक लाख की दर से मरीज बढ रहे हैं तो जाहिर है कि इंजेक्‍शन की जरूरत आने वाले दिनों में बढेगी। ऐसे में अगर सरकार ने कालाबाजारी पर रोक नहीं लगाई और विदेश से आयात नहीं किया तो लोगों को शायद अपना घर बेचकर इंजेक्‍शन खरीदना पडेगा।

उत्‍तर प्रदेश में 30 हजार इंजेक्‍शन की होगी जरूरत

उत्‍तर प्रदेश में कोरोना संक्रमित रोगियों के उपचार के लिए हालांकि इस बार आधारभूत संरचना तैयार करने में देरी हुई है। अब तक केवल 45 लेवल टू और लेवल थ्री अस्‍पताल ही बनाए गए हैं जहां अधिकतम दस हजार मरीज भर्ती हो सकते हैं लेकिन पिछले साल सरकार ने प्रदेश में 71 एल टू हॉस्पिटल बनाए थे जिनमें 15837 मरीजों को भर्ती किया गया। इसी तरह 25 अस्‍पताल एलथ्री जिनकी बेड क्षमता 12090 थी। चिकित्‍सकों का मानना है कि अगर पिछले साल की तरह ही व्‍यवस्‍था की गई तो प्रदेश सरकार के अस्‍पताल में हर रोज 25 से 30 हजार इंजेक्‍शन की जरूरत हो सकती है।

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