‘गण’ तक नहीं पहुंचा ‘तंत्र’, आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं कई गांव

raghvendra
Published on: 25 Jan 2018 3:59 PM GMT
‘गण’ तक नहीं पहुंचा ‘तंत्र’, आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं कई गांव
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अनुराग शुक्ला/ सुधांशु सक्सेना

लखनऊ: इनकी दुनिया आज भी सूरज के साथ चलती है और सूरज के साथ ही रुक जाती है। सूरज के जाते ही जैसे इनकी जिंदगी का उजाला भी चला जाता है। सांझ होते ही सबकुछ अंधेरे में डूब जाता है। यह कहानी है दो गांवों अकड़ा शाहपुर और गुलालपुर की। ये गांव बुंदेलखंड में नहीं है, न ही चंबल के बीहड़ में है। ये गांव है उस जगह जहां से महज 22 किलोमीटर दूर पूरे प्रदेश को चलाने वाली सरकार बैठती है। ये गांव हैं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के, जहां से लगातार हर सरकार गांव और गरीब के विकास का दम भरती है। यहां पर 26 जनवरी हो या 15 अगस्त हर दिन की शाम अंधेरी होती है। मिट्टी का तेल मिला तो ठीक नहीं तो अंधेरा ही सही। यहां पर लोग बिजली का कनेक्शन लेना चाहते हैं पर उन्हें बिजली नहीं मिलती। 70 साल बीतने के बावजूद यहां के गण तक तंत्र नहीं पहुंच सका है। यहां के गण, तंत्र के इंतजार में अगल बगल के गांव का उजाला देखकर ही खुश हो जाते है।

अकड़ाशाहपुर गांव के अकड़ा का पुरवा के हालात तो तंत्र की अनदेखी की बड़ी बानगी हैं। यहां पर पुरवा के बाहर तक सडक़ पहुंच चुकी है पर कई दशक बीत जाने पर भी गांव के भीतर नहीं पहुंची। वहीं रहने वाली 16 साल की सीमा कहती हैं, ‘न सडक़ है न बिजली क्या करें। आसपास के गांव में सडक़ भी है बिजली भी है, हमने ही क्या गुनाह किया है। सरकार क्यों हमारी तरफ से आंख मूंदे है।’ वहीं पास में बैठे करीब 80 साल के बाबूलाल ने इन हालातों में कई दशक गुजार दिये हैं। उनके मुताबिक, ‘हम तो तबसे देख रहे हैं जब कहीं भी बिजली नहीं थी पर अब तो आसपास भी बिजली आ गयी है। सिर के ऊपर से चिढ़ाने के लिए 11 हजार वोल्ट की हाईटेंशन तार भी है पर हमारे मजरे में ही बत्ती नहीं है।’

महज 10 खंभों की दरकार

ऐसा नहीं कि यहां के लोग बिजली का कनेक्शन नहीं लेना चाहते। गांव के करुणेश कुमार के मुताबिक इन गांवों में बिजली लाना कोई बहुत बड़ा काम नहीं है। इन गांवों में बिजली लाने के लिए महज 10 खंभों की दरकार है। अपनी किस्मत कोसते हुए कहते हैं, ‘बहुत से ऐसे गांव जहां बिजली पहुंच गयी है वहंा पर लोग बिजली का कनेक्शन नहीं ले रहे हैं। हम लोग बिजली का कनेक्शन चाहते हैं तो मिल नहीं रहा है।’ पास ही खड़ीं आशा कहती हैं, ‘हम लोग तो ढिबरी के सहारे हैं। गर्मी के मौसम में पसीने से लथपथ रहते हैं। अंधेरा रहता है तो डर बना रहता है कि कोई सांप बिच्छू न घर में घुस गया हो। हम लोग बस किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं। हम कनेक्शन लेने की कई बार कोशिश कर चुके हैं पर हमें कनेक्शन मिला ही नहीं।’

पिता ने बयां किया दर्द

इसी गांव के छुटकने की कहानी तो तंत्र के गण से मुंह मोडऩे के असर की जीती जागती मिसाल है। छुटकने ने अपने बड़े बटे अवधराम का एडमिशन गांव के बाहर के रमा कान्वेंट नामक प्राइवेट स्कूल में कराया था। इस उम्मीद से गांव के पास बिजली आ गयी है तो उसके घर भी आ जाएगी पर बिजली नहीं आई तो अपने छोटे बेटे अजीत का एडमिशन उसने सरकारी स्कूल में करा दिया। छुटकने के पिता कहते हैं कि बच्चे पढ़ ही नहीं पाते तो कान्वेंट स्कूल में जाने से क्या फायदा। अजीत भी कहता है,‘शाम होने के बाद मैं नहीं पढ़ता हूं क्योंकि ढिबरी में पढऩा बहुत मुश्किल है। अगर बिजली हो तो मैं भी भइया की तरह कान्वेंट मे जाऊंगा। पर अगर इस साल बिजली नहीं आई तो भइया भी मेरे स्कूल (सरकारी) में आ जाएगा।’

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कोशिश के बावजूद नहीं मिला कनेक्शन

गांव में थोड़ा आगे बढऩे पर हमें रामरानी मिल गयी। इनके पति रामजीवन ने कई बार बिजली का कनेक्शन लेने की कोशिश की। हर बार नाकामी मिली और खास बात यह कि हर बार तंत्र ने यही बताया कि जाओ जल्दी ही बिजली लग जाएगी। रामरानी कहती हैं कि बिना बिजली के तो सब बेकार है। शाम को मिट्टी के तेल का ही सहारा है। मेरे बच्चे छोटे हैं पर बच्चों के बड़े होने पर स्कूल भेजने का फायदा तभी है जब घर पर भी बच्चे पढ़ सकें। अब यहंा पर बिजली के बिना हमारी जिंदगी सूरज डूबते ही रुक जाती है।

मोबाइल चार्ज करना भी मुसीबत

अकडा शाहपुर से करीब एक किलोमीटर दूर ही गुलालपुर है। गुलालपुर के जिस इलाके में बिजली नहीं पहुंची वहां के एक घर के बाहर ट्रैक्टर खड़ा देखकर हम आश्चर्य में आ गए। सरबजीत के घर पहुंचे तो उनकी पत्नी मिली। उनसे पूछा कि घर में ट्रैक्टर है तो बिजली क्यों नहीं है। उनका जवाब था, ‘हम तो बहुत साल से सरकार से बिजली मांग रहे हैं पर हमें कनेक्शन नहीं मिल रहा है। कभी बताया जाता है कि यह जमीन चारागाह की है तो कभी कहते हैं कि प्रक्रिया चल रही है जल्द ही बिजली मिल जाएगी।’ उसी इलाके में विमलादेवी मिली। बिजली के बिना होने वाली दिक्कत के बारे में पूछने पर कहती हैं कि सबसे बड़ी दिक्कत बच्चे खड़ी करते है जो देखते हैं कि अगल-बगल के गांव में बिजली है तो हमारे घर में क्यों नहीं। जमाना मोबाइल का है मगर हम मोबाइल भी चार्ज नहीं कर पाते।

जब अगल-बगल के गांव में जाते हैं तो मोबाइल चार्ज कराते हैं।’ पर इस गांव ने बिना बिजली के जीने का जुगाड़ भी ढूंढ़ लिया है। इसी गांव के सुदामा पास बाजार से सोलर पैनल खरीद लाए हैं। उन्होंने छोटा सा पैनल लिया है जो उनके मोबाइल को चार्ज कर दे। कहते हैं, ‘अब बिजली ना जाने कब आए। हम लोग तो बस कोशिश ही कर रहे हैं, अब नहीं मिल पाया तो पास के बाजार से ये सोलर पैनल ही ले आए। कम से कम बाकी लोगों से जुड़े तो रहते हैं।’ सुदामा का यह प्रयोग अब इस इलाके में हिट हो गया है। गांव की कई झोपडिय़ों में वही छोटे-छोटे सोलर पैनल दिखाई देने लगे हैं जिनसे लोग कम से कम अपनों से जुड़े रहने के लिए अपने मोबाइल तो चार्ज कर लेते हैं।

अफसरों का रटा रटाया जवाब

गण के बाद जब हम तंत्र के पास पहुंचे तो पता चला कि उत्तर प्रदेश में सबसे घर बिजली पहुंचाने का दावा करने वाली हर सरकार ने अपने वादे को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया है। तभी तो उत्तर प्रदेश की राजधानी में ही गांव और मजरे मिलाकर 432 ऐसी बसावटें ऐसी हैं जहां पर अब तक बिजली के दर्शन नहीं हुए हैं। छह ब्लाकों की बात की जाय तो मोहनलालगंज में 150, गोसाईंगंज में 60, काकोरी में 40, बक्शी का तालाब में 150, मलिहाबाद में 10 और सरोजनी नगर में 22 बसावटों में अब तक बिजली नहीं पहुंच सकी है। हमने जब अकड़ाशाहपुर और गुलालपुर को लेकर मध्यांचल के एसई से बात की तो उन्होंने वही तंत्र वाला ही जवाब दिया। एसई रवि श्रीवास्तव के मुताबिक काफी मजरो में खंभे पहुंचा दिए हैं, कुछ जगह लग भी गए हैं। हां कुछ जगहें ऐसी हैं जहां पर अभी तक कुछ नहीं हो सका पर एक भी ऐसी जगह नहीं जहां प्रक्रिया न चल रही हो। साल खत्म होने से पहले ऐसी कोई बसावट नहीं रह जाएगी जहां पर बिजली न पहुंच जाए। हम इस काम को युद्धस्तर पर कर रहे हैं।

खंभा गड़ना ही विद्युतीकरण

आल इंडिया पावर इंजीनियर फेडरेशन के चेयरमैन शैंलेंद्र दुबे कहते हैं कि बिजली विभाग के नियम और उसकी जर्जर व्यवस्था इन दोनों के फर्क को और ज्यादा बड़ा कर रही है। उनके मुताबिक ग्रामीण विद्युतीकरण की परिभाषा है कि जिस गांव में बिजली के खंभे गड़ गए और तार खिंच गए तो गांव विद्युतीकृत की श्रेणी में आ जाता है पर यह कहीं नहीं उल्लेख होता है कि कितने घर रोशन हुए। सरकार के आंकड़ों में गांव तक बिजली पहुंच जाती है पर घर बिजली तक नहीं पहुंच पाते हैं।

बड़े-बड़े दावों पर भारी पड़ता अंधेरा

मुलायम सिंह यादव की सरकार में जब दादरी के प्लांट का समझौता हुआ था तो अमर सिंह ने मुलायम के साथ जुगलबंदी करते हुए एक जुमला दिया था जिसमें उत्तर प्रदेश को ऊर्जा प्रदेश बनाने की हुंकार थी। इसके बाद मायावती ने 25 हजार मेगावाट बिजली पैदा करने का जब वादा किया था तो भी यही कहा था कि गांवों को रोशन कर दिया जाएगा। अखिलेश यादव की सरकार ने पहले दिन से ही हर घर में बिजली का पोस्टर टांग दिया था, साल दर साल कर 5 साल बीत गये पर गांवों में रोशनी नहीं पहुंची। अब सौभाग्य योजना के जरिए मोदी सरकार और यूपी की योगी हर घर में अंधेरा दूर करने की बात कही है। पर इन सरकारों के बड़े बड़े तंत्र और उजाले पर अकड़ाशाहपुर और गुलालपुर का अंधेरा भारी साबित हो रहा है।

एक-दूसरे को दागदार बता रहे नेता

इस मुद्दे पर हर राजनीतिक दल खुद को पाक साफ और दूसरों को दागदार साबित करने में जुटा है। विपक्ष जहां इस मुद्दे पर सत्ताधारी भाजपा को जिम्मेदार ठहरा रहा है, वहीं 9 महीने से यूपी की सरकार चला रही भाजपा ने इसके लिए पिछली सरकारों को जिम्मेदार ठहराया है।

भाजपा सरकार कोई काम नहीं कर रही है। अकड़ाशाहपुर और गुलालपुर का पुरवा जैसे तमाम गांव और पुरवे पूरे प्रदेश में हैं। पावर टू ऑल का जो वादा किया गया वो पूरा नहीं किया गया। जनता को मूर्ख बनाया गया। घोषणापत्र में किए गए सारे वादे झूठे हैं। केवल कागजों में काम हो रहा है। पेपरबाजी करके कामों का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। जबकि वास्विकता यह है कि काम हो ही नहीं रहे हैं।

रामगोविंद चौधरी, नेता प्रतिपक्ष, उत्तर प्रदेश

केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार ने लोगों को लगातार गुमराह कर रही है। इन गांवों की कहानी उन दावों की पोल खोलती है जिसमें प्रधानमंत्री यह दावा कर रहे हैं कि हमने हर घर में बिजली पहुंचा दी है और मुख्यमंत्री यह कह रहे हैं कि उनकी सरकार सबको बिजली दे रही है।

द्विजेंद्र त्रिपाठी, प्रवक्ता, उत्तर प्रदेश कांग्रेस

हम स्वीकार करते हैं कि गण तक तंत्र नहीं पहुंचा है पर गण तक तंत्र की पहुंच बने इसके लिए ही हम योजनाएं बना रहे हैं। हर व्यक्ति को घर मुहैया कराने के लिए भाजपा सरकारों ने योजना बनाई है। हर घर में बिजली पहुंचाने के लिए योजना बनी है और चल रही है। हर घर में गैस का चूल्हा हो, इसके लिए योजना बनी है और चल रही है। हम स्वीकार करते हैं पर यह जिम्मेदारी वो भी तो स्वीकार करें जो सत्ता मे 60 साल से ज्यादा समय थे। वे दल भी तो करें जो 14 साल से यूपी की सत्ता पर काबिज थे। हम स्वीकार करते हैं पर यह तथ्य है कि काम हो रहा है और हर गण तक तंत्र पहुंचेगा।

विजय बहादुर पाठक, महामंत्री, भाजपा

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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