×

खामोश हो गई बनारस घराने की वो खनकती आवाज, अप्पा ने दुनिया को कहा अलविदा

गिरिजा देवी के निधन के बाद पूरा बनारस शोक में डूबा हुआ है। उनकी इच्छा के अनुसार गुरूवार को गंगा तट पर अंतिम संस्कार किया जाएगा।

By
Published on: 25 Oct 2017 5:35 AM GMT
खामोश हो गई बनारस घराने की वो खनकती आवाज, अप्पा ने दुनिया को कहा अलविदा
X

वाराणसी: एक खनकती आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई। ठुमरी, कजरी और चैती में बनारस को अलग पहचान दिलाने वाली अप्पा ने मंगलवार की रात दुनिया को अलविदा कह दिया। अप्पा का ऐसे चले जाना उनके चाहने वालों को रूला गया। उनके जाने के साथ ही बनारस घराने की एक कड़ी भी टूट गई।

संघर्षों के सहारे संगीत जगत के शिखर तक पहुंचने वाली गिरिजा देवी को बनारस घराने की सबसे मजबूत स्तंभ के रूप में थीं। उन्होंने स्वयं को मंच प्रदर्शन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि संगीत के शोध कार्यों में भी योगदान दिया।

यह भी पढ़ें: ठुमरी गायिका गिरिजा देवी का निधन, संगीत हस्तियों ने जताया दुःख

गिरिजा देवी की संगीत यात्रा

गिरिजा देवी बनारस की शान थीं। दिग्गज संगीत साधकों जैसे कंठे महाराज, पंडित लच्छू महराज, पंडित रविशंकर, गोदई महराज, किशन महराज आदि नक्षत्र की अंतिम कड़ी थीं। गिरिजा देवी का जाना सिर्फ बनारस घराने के लिए नहीं बल्कि भारत संगीत के लिए बड़ा नुकसान माना जा रहा है। गिरिजा देवी का जन्म आठ जुलाई 1929 को कला और संस्कृति की नगरी काशी में हुआ था। उनके पिता रामदेव राय संगीत प्रेमी जमींदार थे।

यह भी पढ़ें: नहीं रहीं ठुमरी गायिका गिरिजा देवी, PM मोदी ने ट्वीट कर जताया शोक

उन्होंने पांच साल की आयु में ही गिरिजा देवी के संगीत के प्रति रूझान को देखते हुए उनके लिए संगीत शिक्षा की व्यवस्था की। हालांकि गिरिजा देवी को भी अपने समय की रूढियों के खिलाफ कठिन संघर्ष करना पड़ा। 1994 में आकाशवाणी में अपने गायन का प्रदर्शन करने के बाद उन्होंने 1951 में बिहार के आरा में आयोजित एक संगीत सम्मेलन में गायन प्रस्तुत किया। इसके बाद उनकी अनवरत संगीत यात्रा चलती रही।

ये मिला सम्मान

गिरिजा देवी को शास्त्रीय संगीत में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1972 में पद्मश्री, 1989 में पद्मभूषण व 2016 में पद्मविभूषण सम्मान से नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, महासंगीत सम्मान अवॉर्ड समेत ढेरों पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। अप्पा के दिल में बनारस की एक खास जगह थी। 1978 में कोलकाता में जब आईटीसी संगीत रिचर्स एकेडमी खुली, तब से गिरिजा देवी वहीं रहा करती थी, बावजूद इसके उनका मन बनारस में बसा करता था। यहां की कला, यहां के रीति रिवाज और यहां का खानपान उन्हें हमेशा याद आता था। बताते हैं कि तीज त्यौराह पर वह अपने घर जरूर आती थीं।

क्या कहते हैं संगीत प्रेमी

गिरिजा देवी के निधन के बाद पूरा बनारस शोक में डूबा हुआ है। उनकी इच्छा के अनुसार गुरूवार को गंगा तट पर अंतिम संस्कार किया जाएगा। संगीतकार साजन मिश्रा कहते हैं कि वह युग महिला थीं। उनके साथ संगीत के एक युग का भी अंत हो गया। कलाविद् अशोक कपूर कहते हैं कि गिरिजा देवी बहुत बड़ी हस्ती थीं। वह बनारस संगीत की अभिभावक की तरह थीं। हम उनसे प्रेरणा लेते थे।

Next Story