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ख़त्म हुई कांग्रेस: दिल्ली में होगा ऐसा बुरा हाल, कभी सोचा न होगा आपने
देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए बहुत शर्मनाक स्थिति है जो कुछ साल पहले ही शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार 15 साल शासन कर चुकी है। शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली में कांग्रेस की सरकार में भी काम हुए लेकिन चुनाव दर चुनाव कांग्रेस का पतन ही हो रहा है।
नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के परिणाम लगभग आ चुके हैं और अभी तक जितने नतीजे आये हैं इससे तस्वीर लगभग साफ हो गई है। आम आदमी पार्टी 58 सीटों और बीजेपी 12 सीटों पर आगे है। कांग्रेस के खाते में एक बार फिर शून्य आता दिख रहा है। यह देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए बहुत शर्मनाक स्थिति है जो कुछ साल पहले ही शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार 15 साल शासन कर चुकी है। शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली में कांग्रेस की सरकार में भी काम हुए लेकिन चुनाव दर चुनाव कांग्रेस का पतन ही हो रहा है।
आईये जानते हैं कि किस प्रकार हुआ कांग्रेस का उत्थान और पतन-
ऐसे हुई थी शीला युग की शुरुआत
साल 1998 का चुनाव दिल्ली में कांग्रेस की शुरुआत अच्छी हुई थी इन चुनाव में महंगाई एक प्रमुख मुद्दा था और ऐसा कहा जाता है कि प्याज की महंगाई ने बीजेपी की सरकार गिरा दी। तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। यहीं से शीला दीक्षित की दिल्ली राजनीति की शुरुआत हुई और वह पहली बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं थीं। 70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 52 सीटें मिलीं थी। उसे करीब 48 सीटें मिलीं। सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली बीजेपी हार गई और उसे महज 15 सीटें मिलीं। बीजेपी को 34 फीसदी वोट मिले।
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2003 में फिर कांग्रेस ने फिर अपनी जीत को दोहराया
साल 2003 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर जबरदस्त जीत मिली थी। उस चुनाव में कांग्रेस ने 47 सीटें हासिल कर एक बार फिर शीला दीक्षित के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। दिसंबर 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 48।13 फीसदी वोट हासिल किए थे। दूसरे स्थान पर रही भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 20 सीटें और करीब 35 फीसदी वोट हासिल किए थे।
जब शीला दीक्षित ने मारी हैट्रिक
साल 2008 के चुनाव में शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार जीत के साथ कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। कांग्रेस को कुल 43 सीटें हासिल हुई थीं। कांग्रेस को करीब 40 फीसदी वोट मिले थे।
कॉमनवेल्थ घोटाले की गूंज से पलट गई बाजी
2013 के चुनाव में बाजी पूरी तरह से पलट गई। कॉमनवेल्थ घोटाले की गूंजी और अन्ना आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी के उदय ने माहौल को पूरी तरह से बदलकर रख दिया। विधानसभा के नतीजे त्रिशंकु रहे। भारतीय जनता पार्टी को 31, आम आदमी पार्टी को 28 और कांग्रेस को महज 8 सीटें मिलीं।
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बीजेपी को करीब 33 फीसदी, AAP को करीब 29 फीसदी और कांग्रेस को करीब 24 फीसदी वोट मिले। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई, हालांकि यह सरकार महज 49 दिन चल सकी। इसके बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
2015 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए सबसे खराब प्रदर्शन
साल 2015 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए सबसे खराब प्रदर्शन वाले वर्षों में था। आम आदमी के उभार से विपक्ष के सारे किले ढह गए। बीजेपी को जब तीन सीटें मिल पाईं तो कांग्रेस के लिए क्या उम्मीद बची थी। कांग्रेस को मिला शून्य यानी एक भी सीट नहीं। कांग्रेस के दिग्गज नेता भी हार गए। आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें हासिल हुईं।
अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में फिर AAP की सरकार बनी। आम आदमी पार्टी को करीब 54 फीसदी, बीजेपी को 32 फीसदी और कांग्रेस को महज 9.7 फीसदी वोट मिले। यानी दो साल के भीतर ही कांग्रेस के वोट प्रतिशत 24 से घटकर 10 पर आ गए।
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कांग्रेस के खाते में सब शून्य
साल 2020 का विधानसभा चुनाव भी पस्त पड़ चुकी कांग्रेस के लिए कोई उम्मीद नहीं जगा पाया। एक बार फिर कांग्रेस के खाते में शून्य दिख रहा है। खबर लिखने तक कांग्रेस एक भी सीट पर न तो आगे थी और न ही किसी सीट पर उसे जीत मिली।