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Meerut News: मेरठ के रेवड़ी-गजक उत्पाद को जीआई टैग दिलाने की कवायद शुरू

Meerut News: मेरठ के रेवड़ी-गजक उत्पाद को जीआई टैग दिलाने की कवायद शुरू हो गई है। मेरठ के उद्योग विभाग ने इसके लिए यूपी सरकार को प्रस्ताव भेजा है।

Sushil Kumar
Published on: 16 Jan 2023 4:34 PM IST
Meerut News In Hindi
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रेवड़ी-गजक उत्पाद को जीआई टैग। (Social Media) 

Meerut: मेरठ के रेवड़ी-गजक उत्पाद को जीआई टैग दिलाने की कवायद शुरू हो गई है। मेरठ के उद्योग विभाग ने इसके लिए यूपी सरकार को प्रस्ताव भेजा है। उपायुक्त, उद्योग, दीपेद्र कुमार के अनुसार गजक के लिए जीआई टैग का प्रस्ताव कुछ दिन पहले संबंधित उच्च अधिकारियों को भेजा गया था। जल्दी ही मेरठ के रेवड़ी-गजक उत्पाद को जीआई टैग मिल जाएगा।

150 साल पहले राम चंद्र सहाय ने बनाई थी रेवड़ी-गजक

विभागीय अफसरों का कहना है कि जीआई टैग खरीदारों को गजक के "अद्वितीय स्वाद, संरचना और मूल कहानी" का विवरण प्राप्त करने में मदद करेगा। जानकारों के अनुसार 150 साल पहले गुड़ और तिल को मिलाकर शहर में रेवड़ी-गजक राम चंद्र सहाय ने बनाई थी। मेरठ में बनी रेवड़ी-गजक देश के कई राज्यों के अलावा कनाडा, लंदन, सऊदी अरब, सिंगापुर, अमेरिका और लंदन सहित 18 देशों में निर्यात किया जाता है। वर्तामन में मेरठ में 500 से अधिक गजक की दुकानें हैं, जो बुढाना गेट, गुजरी बाजार और सदर बाजार जैसे क्षेत्रों में स्थित हैं। व्यवसाय सालाना करीब 80 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाती है।

गजक को जीआई टैग मिलने के बाद मेरठ के गौरव को बढ़ेगा: अरुण कुमार

गजक निर्माता और विक्रेता अरुण कुमार का कहना है कि एक बार गजक को जीआई टैग मिलने के बाद, यह मेरठ के गौरव को बढ़ाएगा और व्यापार को बढ़ावा देगा। बकौल अरुण- जीआई टैग मिलने के बाद "इसकी विशिष्टता भी संरक्षित रहेगी।यही नहीं जीआई टैग निश्चित रूप से गजक की बिक्री बढ़ाएगा।

जीआई टैग का मतलब

विभागीय अधिकारियों के अनुसार जीआई टैग किसी भी रीजन का जो क्षेत्रीय उत्पाद होता है उससे उस क्षेत्र की पहचान होती है। उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया होती है जिसे जीआई टैग यानी जीओ ग्राफिकल इंडीकेटर कहते हैं। जिसे हिंदी में भौगोलिक संकेतक नाम से जाना जाता है।

2003 में लागू किया गया था उत्पाद के रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण

बता दें कि संसद ने उत्पाद के रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण को लेकर दिसंबर 1999 में अधिनियम पारित किया। इसे 2003 में लागू किया गया। इसके तहत भारत में पाए जाने वाले प्रॉडक्ट के लिए जी आई टैग देने का सिलसिला शुरू हुआ। जानकारों के अनुसार किसी प्रॉडक्ट के लिए जीआई टैग हासिल करने के लिए आवेदन करना पड़ता है। इसके लिए वहां उस उत्पाद को बनाने वाली जाे एसोसिएशन होती है वो अप्लाई कर सकती है। इसके अलावा कोई कलेक्टिव बॉडी अप्लाई कर सकती है। सरकारी स्तर पर भी आवेदन किया जा सकता है।

जीआई टैग अप्लाई करने वालों को यह बताना होगा कि उन्हें टैग क्यों दिया जाए। सिर्फ बताना नहीं पड़ेगा, प्रूफ भी देना होगा। प्रॉडक्ट की यूनिकनेस के बारे में उसके ऐतिहासिक विरासत के बारे में। क्यों सेम प्रोडक्ट पर कोई दूसरा दावा करता है तो आप कैसे मौलिक हैं यह साबित करना होगा। जिसके बाद संस्था साक्ष्यों और सबंधित तर्कों का परीक्षण करती हैं, मानकों पर खरा उतरने वाले को जीआई टैग मिलता है।

Deepak Kumar

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