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Mulayam Singh Yadav: जब मुलायम के राज में कारसेवकों पर चली थीं गोलियां, फिर चुनाव में झेलनी पड़ी थी करारी हार

Mulayam Singh Yadav: मुलायम के राज में कारसेवकों की बेकाबू होती इस भीड़ को रोकने के लिए पुलिस ने फायरिंग कर दी थी जिसमें तमाम कारसेवकों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 22 Nov 2022 6:58 AM IST (Updated on: 22 Nov 2022 7:26 AM IST)
Mulayam Singh Yadav
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मुलायम सिंह यादव (photo: social media ) 

Mulayam Singh Yadav: समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव पहली बार 1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उस समय राम मंदिर आंदोलन के कारण पूरे देश का सियासी माहौल काफी गरम था। भाजपा और विहिप ने इसके लिए जोरदार आंदोलन छेड़ रखा था। साधु-संत अयोध्या की ओर कूच कर रहे थे और अयोध्या में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटने लगी थी।

मुलायम के राज में कारसेवकों की बेकाबू होती इस भीड़ को रोकने के लिए पुलिस ने फायरिंग कर दी थी जिसमें तमाम कारसेवकों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। मुलायम के मुख्यमंत्रित्व काल में हुए इस गोलीकांड को लेकर लोगों में भारी गुस्सा उमड़ पड़ा था 1991 के विधानसभा चुनाव में मुलायम को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी थी। भाजपा इस चुनाव में जीत हासिल करने के बाद प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी और कल्याण सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे।


मुलायम के राज में पहले राउंड की फायरिंग

1990 में राम मंदिर आंदोलन चरम पर पहुंच गया था और देश के विभिन्न हिस्सों से साधु-संत और कारसेवक अयोध्या की ओर कूच कर रहे थे। प्रशासन ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा रखा था और कारसेवकों की भीड़ को प्रवेश से रोका जा रहा था। बाबरी मस्जिद के इर्द-गिर्द भीड़ को रोकने के लिए पुलिस ने डेढ़ किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग लगा रखी थी मगर कारसेवक किसी भी दबाव को मानने के लिए तैयार नहीं थे। बेकाबू कार सेवकों को रोकने के लिए पहली बार 30 अक्टूबर 1990 को पुलिस फायरिंग हुई थी जिसमें पांच कारसेवकों की मौत हो गई थी। इस फायरिंग के बाद अयोध्या को लेकर पूरे देश का माहौल गरमा गया था।

मुलायम सिंह यादव

कारसेवकों पर पुलिस की दूसरी फायरिंग

पहले राउंड की फायरिंग के बाद कारसेवकों की भीड़ ने पुलिस प्रशासन पर दबाव और बढ़ा दिया। पहले गोली कांड के दो दिन बाद ही यानी 2 नवंबर 1990 को हजारों कारसेवक हनुमानगढ़ी के करीब पहुंच गए। उमा भारती और अशोक सिंघल जैसे बड़े हिंदूवादी नेता कारसेवकों की इस भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। अलग-अलग दिशाओं से कारसेवकों का जत्था हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ रहा था।

प्रशासन इन कारसेवकों को रोकने की कोशिश में जुटा हुआ था मगर 30 अक्टूबर को हुई पुलिस फायरिंग के कारण कारसेवक भारी गुस्से में थे। बाबरी मस्जिद की सुरक्षा के लिए आसपास की इमारतों की छतों पर पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे।

1990 में 2 नवंबर की सुबह के वक्त हनुमानगढ़ी के सामने लालकोठी वाली सकरी गली से कारसेवकों का जत्था आगे बढ़ता चला आ रहा था। इन कारसेवकों पर पुलिस ने सामने से फायरिंग कर दी जिसमें सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब डेढ़ दर्जन कारसेवकों की मौत हो गई। मरने वाले कारसेवकों में कोलकाता के कोठारी बंधु भी शामिल थे। हालांकि गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मृतकों की संख्या इससे कहीं ज्यादा थी।

मुलायम की सफाई-नहीं था कोई विकल्प

दूसरे राउंड के फायरिंग में तमाम कारसेवकों के मारे जाने के बाद लोगों का गुस्सा चरम पर पहुंच गया था और कारसेवकों के शवों के साथ भारी प्रदर्शन किया गया था। बाद में प्रशासन किसी तरह 4 नवंबर को कारसेवकों का अंतिम संस्कार कराने में कामयाब हो सका। अंतिम संस्कार के बाद कारसेवकों के शवों की राख देश के विभिन्न हिस्सों में ले जाई गई थी।

पुलिस फायरिंग का कारण मुलायम सिंह को लोगों के भारी गुस्से का सामना करना पड़ा। इस फायरिंग के कई साल बाद मुलायम सिंह ने अपनी सफाई पेश करते हुए कहा था कि मुझे पुलिस वायरिंग का अफसोस है,लेकिन मेरे सामने इसके सिवा कोई विकल्प बाकी नहीं रह गया था।

भाजपा के लोगों ने कार सेवा के नाम पर अयोध्या में लाखों की भीड़ जुटा ली थी और देश की एकता को बचाए रखने के लिए मुझे पुलिस फायरिंग करानी पड़ी। पुलिस फायरिंग के करीब दो साल बाद 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था। हालांकि उस समय प्रदेश की कमान मुलायम नहीं बल्कि भाजपा के फायरब्रांड नेता कल्याण सिंह के हाथों में थी।

1991 के चुनाव में झेलनी पड़ी हार

1990 में अयोध्या में हुई इन घटनाओं का 1991 के विधानसभा चुनाव पर खासा असर पड़ा था। 1991 के विधानसभा चुनाव में भाजपा पहली बार प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। चुनावी नतीजों में ध्रुवीकरण और जनता दल व जनता पार्टी में बिखराव का असर दिखा। प्रदेश विधानसभा की 425 सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा 221 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी। जनता दल को 92 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस ने 46 सीटें जीती थीं जबकि 34 सीटों पर जनता पार्टी को कामयाबी मिली थी।

मुल्ला मुलायम की गूंज और कल्याण बने सीएम

इस चुनाव में जातीय और धार्मिक ध्रुवीकरण का काफी असर दिखा। अयोध्या में कारसेवकों पर पुलिस फायरिंग के बाद मुलायम को मुल्ला मुलायम तक कहा जाने लगा था क्योंकि उन्होंने कारसेवकों पर पुलिस फायरिंग का आदेश दिया था। भाजपा ने अतरौली से लगातार चुनाव जीतने वाले कल्याण सिंह के कट्टर हिंदू चेहरे के दम पर दूसरे दलों को काफी पीछे छोड़ दिया था। इस चुनाव में भाजपा को जीत दिलाने में कल्याण सिंह की बड़ी भूमिका थी और उन्हें ही प्रदेश की बागडोर सौंपी गई थी। फिर उन्हीं के कार्यकाल में 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या के विवादित ढांचे को ढहा दिया गया था।



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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