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UP Assembly Election 2022: क्या वेस्ट यूपी में अखिलेश के साथ मिलकर चौधराहट कायम रख पाएंगे जयंत
UP Assembly Election 2022: अखिलेश और जयंत ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान भी किया और दोनों पार्टियों ने इस सभा के जरिए एकजुटता दिखाई। तो यह सवाल उठा कि क्या जयंत चौधरी वेस्ट यूपी में परिवार की चौधराहट को कायम रख पाएंगे।
Jayant Chaudhary alliance Akhilesh Yadav: उत्तर प्रदेश का इतिहास बताता है कि यूपी के साथ ही केंद्र में भी विपक्ष को सत्ता का स्वाद चखाने में चौधरी चरण सिंह की अहम भूमिका रही थी। वर्ष 1967 में कांग्रेस तक को तोड़कर वह यूपी के सीएम बने थे। वेस्ट यूपी में रुतबा रखने वाले चौधरी चरण सिंह का परिवार (जयंत चौधरी) अब प्रदेश की राजनीति में अपनी पहचान बनाए रखने के लिए समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party News in Hindi) के साथ अब एक मंच पर आ गया है। गत मंगलवार को चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी ने मेरठ के दबथुवा में अखिलेश यादव के साथ एक संयुक्त सभा को संबोधित किया। इस सभा में अखिलेश और जयंत ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान भी किया और दोनों पार्टियों ने इस सभा के जरिए एकजुटता दिखाई। तो यह सवाल उठा कि क्या जयंत चौधरी वेस्ट यूपी में परिवार की चौधराहट को कायम रख पाएंगे।
जयंत चौधरी के दादा चौधरी चरण सिंह की हनक थी (jayant chaudhary grandfather chaudhary charan singh)
यह सवाल वाजिब है। कभी पश्चिम उत्तर प्रदेश में जयंत के दादा चौधरी चरण सिंह की हनक थी। देश में जब हर राज्य में कांग्रेस पावर में थी, तब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को चौधरी चरण सिंह ने ही चुनौती दी थी। उन्होंने ही वर्ष 1967 में कांग्रेस तक को तोड़कर यूपी का सीएम बनने के कारनामे को अंजाम दिया था। वर्ष 1969 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी भारतीय क्रांति दल ने 98 सीटें जीतीं और वह दोबारा सीएम की कुर्सी तक पहुंचे। इमरजेंसी के बाद इंदिरा विरोध की लहर में बनी सरकार में उप प्रधानमंत्री और बाद में थोड़े समय के लिए ही सही प्रधानमंत्री की कुर्सी भी चरण सिंह ने संभाली।
यूपी के साथ ही केंद्र में भी विपक्ष को सत्ता का स्वाद चखाने में चौधरी चरण सिंह (chaudhary charan singh ke bare me) को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगो की बीच में बेहद सम्मान रहा है। बागपत, छपरौली जैसे तमाम विधानसभा चुनावों में चौधरी चरण सिंह जिस भी प्रत्याशी पर हाथ रखते थे, उसे वहां के लोग जीता देते थे। ऐसे चौधरी चरण सिंह की विरासत को उनके पुत्र चौधरी अजीत सिंह संभाला। कहते हैं विरासत में मिली सियासत लंबे समय तक चौधरी अजीत सिंह को सत्ता के केंद्र में रोशन करती रही। ऐसे चौधरी अजीत सिंह के जीवित रहते हुए ही जाट समुदाय के बीच उनकी चौधराहट मंद पड़ने लगी थी। बीते लोकसभा चुनावों के बाद अब जो राजनीतिक हालात बने हैं, उन चलते ही यह कहा जा रहा है कि कभी वेस्ट यूपी की सियासत का सेंटर रहा चौधरी कुनबा सीटों के लिए दूसरों दल के दरवाजे खुद खटखटाने को मजबूर है। जिसके चलते ही अब राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के मुखिया जयंत चौधरी ने समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ मिलाकर चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया है।
अखिलेश यादव और जयंत चौधरी का मिलाप (Akhilesh Yadav gathbandhan Jayant Chaudhary)
अब देखना यह है कि अखिलेश यादव और जयंत चौधरी का मिलाप कितना लंबा चलेगा? वरिष्ठ पत्रकार राजीव श्रीवास्तव यह सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं कि अखिलेश और जयंत के एक साथ आने से वेस्ट यूपी का वोटर भी क्या सपा -रालोद गठबंधन का साथ देगा? राजीव बताते हैं कि चौधरी चरण सिंह और अजीत सिंह ने अपनी सियासत के लिए पाला बदलते रहें हैं। उनके पाला बदलने का इतिहास है। वर्ष 1987 में जब चौधरी चरण सिंह की मृत्यु हुई तो पार्टी में दो फाड़ हो गई। तब भारतीय लोकदल के सूबे में 84 विधायक थे। यह संख्या बेटे अजीत सिंह और शिष्य मुलायम सिंह यादव की महत्वाकांक्षा में बंट गई। अजीत सिंह ने जनता दल ए बनाई और पाला बदलते हुए वर्ष 1989 में जनता दल का हिस्सा हो गए। तो सत्ता में उनकी हनक बनी रही और वह पहले वीपी सिंह और फिर नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय मंत्री बने। इसके बाद अजित सिंह वर्ष 1999 की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार और 2009 की कांग्रेस सरकार में भी केंद्रीय मंत्री बने रहे। परन्तु अब इस दौर में पश्चिम यूपी में जयंत की पार्टियों के बदलते नाम की तरह जनता भी उनसे दूर जाती दिख रही है। इस पार्टी के इतिहास को देखे तो यह पता चलता है। अजीत सिंह की अगुवाई में विधानसभा में रालोद का श्रेष्ठ प्रदर्शन 2002 में 16 सीट का रहा। तब उनका मुकाबला बीजेपी से था। 2009 में बीजेपी के साथ ही उन्होंने 5 लोकसभा सीटें जीती थीं। 2012 में कांग्रेस के साथ मिल विधानसभा चुनाव लड़ा और 9 पर सिमट गए। अजीत सिंह के दुर्दिन शुरू हुए वर्ष 2014 में। तब लोकसभा में खाता नहीं खुला।
ऐसा क्यों हुआ? इस बारे में पश्चिमी यूपी के लोगों का कहना है कि पश्चिमी यूपी में जाट, गुर्जर और मुसलमान पहले एक साथ आरएलडी को वोट करते नजर आते थे। इन तीनों की एकता ही रालोद की ताकत थी। लेकिन 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों, गुर्जरों और मुसलमानों को अलग कर दिया। उस समय अखिलेश यादव की सपा सरकार थी। इस दंगे से मुलायम और अजीत सिंह दोनों की पार्टियों को भारी नुकसान हुआ। 2017 के विधानसभा चुनाव में रालोद महज एक सीट जीत पाई थी। जबकि सपा 47 सीटों पर सिमट गई थी। लोकसभा चुनाव 2019 में रालोद, सपा-बसपा गठबंधन में शामिल थी। चुनाव में रालोद को एक भी सीट नहीं मिली, अजीत सिंह और जयंत चौधरी दोनों चुनाव हार गये। इससे पहले 1989 में जिस बीजेपी के समर्थन से मुलायम और अजीत सिंह की पार्टी की सरकार बनी थी, 2022 में मुलायम और अजीत सिंह की नई पीढ़ी उसी बीजेपी को टक्कर देने की तैयारी कर रही है। आगामी विधानसभा चुनाव में जयंत चौधरी सपा के साथ मिलकर 35 से 40 सीटों पर वेस्ट यूपी में चुनाव लड़ेंगे। इस बारे में जयंत चौधरी और अखिलेश यादव के बीच चुनाव लड़ने वाली सीटों पर समझौता गया है। जल्दी ही इसका खुलासा होगा कि चौधरी चरण सिंह द्वारा बनाया गया मुस्लिम, अहीर, जाट, गुर्जर व राजपूत (मजगर) का वोटबैंक रालोद -सपा गठबंधन को कितना आशीर्वाद देगा। इसी से यह भी तय होगा कि क्या जयंत चौधरी अखिलेश यादव के साथ खड़े होकर पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपनी चौधराहट कायम रख पाएंगे?