Lakhimpur Kheri Hatyakand: लखीमपुर की घटना का पड़ सकता है दूरगामी असर, कई राज्यों तक जाएगी इसकी गूंज

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के तराई इलाकों में सिख समुदाय की अच्छी खासी मौजूदगी है। आज़ादी के समय बंटवारे से विस्थापित हुए हज़ारों सिखों को देश के अलग अलग हिस्सों में बसाया गया था।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Divyanshu Rao
Published on: 4 Oct 2021 1:46 PM GMT
Lakhimpur Kheri Mein Kisan Hatya
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लखीमपुर खीरी घटना की तस्वीर 

Lakhimpur Kheri Hatyakand: लखीमपुर (Lakhimpur) में जो घटना हुई वह कोई एक इलाके तक की घटना नहीं है। चूंकि इसमें किसान, किसान आन्दोलन और सिख समुदाय मूल रूप से शामिल हैं सो इसकी गूंज उत्तराखंड से लेकर पंजाब और दिल्ली तक सुनी जानी तय है। पश्चिम यूपी, हरियाणा, उत्तराखंड आदि जगहों पर किसानों और खासकर सिखों का विरोध प्रदर्शन इसी कड़ी का हिस्सा है। पंजाब से किसानों के नेता छोटे छोटे जत्थों में लखीमपुर जाना शुरू हो चुके हैं।

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और उत्तराखंड के तराई इलाकों में सिख समुदाय की अच्छी खासी मौजूदगी है। आज़ादी के समय बंटवारे से विस्थापित हुए हज़ारों सिखों को देश के अलग अलग हिस्सों में बसाया गया था। जिनमें उत्तर प्रदेश का तराई इलाका शामिल है। लखीमपुर. शाहजहांपुर आदि जिलों में बड़ी संख्या में सिख किसान और व्यवसायी मौजूद हैं। यही स्थिति उत्तराखंड के तराई वाले इलाकों की है। सिख जनसँख्या की बात करें तो 2011 की गिनती के हिसाब से उत्तराखंड में एक करोड़ से ज्यादा सिख हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में 1.9 करोड़ से ज्यादा सिख हैं। समुदाय की संख्या भले ही कम हो लेकिन इनकी व्यावसायिक मौजदगी मजबूत है।

किसान आन्दोलन जबसे शुरू हुआ है तबसे लखीमपुर की घटना सबसे बड़ी और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है। राजनीतिक दल इस घटना का राजनीतिक फायदा पंजाब और यूपी के चुनावों में उठाने की अवश्य कोशिश करेंगे। जिसकी शुरुआत अभी से हो गयी है। लखीमपुर में जो कुछ भी हुआ, उसका असर केवल यूपी तक सीमित नहीं रहने वाला। इसके जरिए किसान आंदोलन को नई धार मिलना तय है। अब विपक्ष को भाजपा के खिलाफ हमलावर होने का एक और मौका मिल गया। पांच राज्यों में चुनाव होने हैं । इनमें से यूपी, पंजाब और उत्तराखंड ऐसे हैं, जहां किसान फैक्टर प्रभावी हैं। विपक्ष और किसान संगठन पांच महीने तक इस मुद्दे को बनाये रखेंगे।

बेदखली का मामला

उत्तर प्रदेश के तराई इलाकों में बसे हजारों सिख परिवारों की बेदखली का मामला भी एक बड़ा मुद्दा है। बीते साल वन विभाग की एक नोटिस ने लोगों को बड़ा परेशान किया था। उन्हें उन जगहों को खाली करने को कहा गया जहां वे विभाजन के बाद से रह रहे हैं। इस मामले में पंजाब से शिरोमणि अकाली दल का एक शिष्टमंडल और सिख परिवारों का एक प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मिला था। मुख्यमंत्री ने भरोसा दिलाया था कि किसी को भी उजाड़ा नहीं जाएगा।

ये सिख परिवार लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, रामपुर, सीतापुर, बिजनौर जिलों में बसे हुए हैं। मिसाल के तौर पर लखीमपुर खीरी जिले के रणपुर गांव में करीब चार सौ सिख परिवार हैं और गांव की आबादी लगभग डेढ़ हजार है। पूरा गांव ही इन्हीं सिखों का है, जो पंजाब से विभाजन के वक्त यहां आकर बसे थे। लोकल लोग बताते हैं कि स्थानीय राजा ने यह पूरा गांव सिखों को दे दिया था। बाद में पंजाब से और लोग भी आए और यहीं बस गए।

1964 में सीलिंग के वक्त इस जमीन को सरकार ने ले लिया ।लेकिन किसी को बेदखल नहीं किया गया। 1980 में चकबंदी के दौरान जमीन वहां के लोगों के नाम कर दी गई । लेकिन खसरा-खतौनी में उनका नाम दर्ज नहीं हुआ। स्थानीय लोग कहते हैं कि करीब 25-30 लाख सिख लोग यहाँ हैं।

यूपी सरकार में मंत्री बलदेव सिंह औलख ने उस समय कहा था कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी मामलों को गंभीरता से लेते हुए चार कमेटियां बना दी हैं। समिति सभी मामले की पूरी जांच करेगी।इन परिवारों को जमीन का मालिकाना हक दिलाने के संबंध में अपनी रिपोर्ट देगी। सिखों को बेदखल करने के बारे में खबरें आने पर पंजाब में भी राजनीतिक हलचल मची थी।

उस समय शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने आनन-फानन में एक उच्चस्तरीय बैठक कर एक कमेटी का गठन किया था । जिसमें सांसद बलविंदर सिंह भूंदड़, नरेश गुजराल और प्रोफेसर प्रेम सिंह चंदूमाजरा को शामिल किया गया। आम आदमी पार्टी के पंजाब प्रमुख और सांसद भगवंत मान का कहना है जो उत्तर प्रदेश में हो रहा है, ठीक वैसा ही गुजरात के कच्छ में भी सिख किसानों के साथ हो चुका है।

Divyanshu Rao

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