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Lakhimpur Violence: मंदसौर गोली कांड ने दिया था भाजपा को बड़ा झटका, अब लखीमपुर कांड का क्या होगा असर
मध्यप्रदेश में मंदसौर गोली कांड के बाद भाजपा को बड़ा सियासी नुकसान उठाना पड़ा था। वहीं, लखीमपुर खीरी में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की सक्रियता के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या कांग्रेस मंदसौर की घटना की तरह लखीमपुर कांड का सियासी फायदा उठाने में सफल हो पाएगी या नहीं?
नई दिल्ली। लखीमपुर खीरी कांड के बाद सियासी हलकों में लोगों को 2017 में मध्य प्रदेश में हुए मंदसौर कांड की याद आने लगी है। लखीमपुर खीरी में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की सक्रियता के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या कांग्रेस मंदसौर की घटना की तरह लखीमपुर कांड का सियासी फायदा उठाने में सफल हो पाएगी या नहीं? मध्यप्रदेश में कांग्रेस का संगठन उत्तर प्रदेश की तुलना में काफी मजबूत है। इसलिए भी सवाल उठ रहा है कि यूपी कांग्रेस लखीमपुर कांड को बड़ा मुद्दा बनाने में कहां तक कामयाब हो पाएगी?
मध्यप्रदेश में मंदसौर गोली कांड के बाद भाजपा को बड़ा सियासी नुकसान उठाना पड़ा था। भाजपा मध्य प्रदेश में 15 साल से राज कर रही थी। लेकिन इस गोलीकांड ने ऐसा सियासी माहौल बदला कि सत्ता भाजपा के हाथ से फिसल गई और शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में कांग्रेस विधायकों की बगावत के कारण शिवराज सिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हो गए।
दोनों घटनाओं में कई समानताएं
मध्यप्रदेश के मंदसौर और उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में हुए कांड में कई समानताएं भी हैं। मंदसौर में भी मरने वाले किसान ही थे और राज्य में भाजपा को एक साल बाद विधानसभा का चुनाव लड़ना था। इसी तरह लखीमपुर कांड में भी कुचले जाने से चार किसानों की मौत हुई है। हालांकि उसके बाद हुई हिंसा में कई और लोग भी मारे गए। यहां भी भाजपा को अगले साल चुनावी रण में उतरना है। अब देखने वाली बात यह होगी कि जिस तरह कांग्रेस मंदसौर गोली कांड को बड़ा मुद्दा बनाने में कामयाब रही, वैसा उत्तर प्रदेश में कर पाने में सफल होती है या नहीं।
मंदसौर गोलीकांड 6 जून, 2017 को हुआ था जिसमें छह आंदोलनकारी किसान पुलिस फायरिंग में मारे गए थे। किसान फसलों की सही कीमत देने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे। इस दौरान काफी मात्रा में सड़कों पर दूध बहाया गया और किसानों ने अपने फल और सब्जियां सड़कों पर फेंक दी। इसी आंदोलन के दौरान पुलिस और आंदोलनकारी किसानों में टकराव हो गया था, जिसके बाद पुलिस ने फायरिंग कर दी थी। पांच किसानों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था जबकि एक घायल किसान की बाद में मौत हुई थी।
बड़ा मुद्दा बनाने में कामयाब हुई थी कांग्रेस
मंदसौर गोली कांड के एक साल बाद मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस इसे बड़ा मुद्दा बनाने में कामयाब रही। राहुल गांधी ने इसे लेकर भाजपा पर बड़ा हमला बोला था। कांग्रेस नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और पार्टी के अन्य नेताओं ने चुनावी सभाओं में मंदसौर गोली कांड की जोर शोर से चर्चा की थी। कांग्रेस की ओर से कर्ज माफी योजना का भी जोरशोर से प्रचार किया गया था। इसके जरिए कांग्रेस किसानों की नाराजगी भुनाना चाहती थी।
2018 के विधानसभा चुनाव के समय मध्यप्रदेश में कांग्रेस के मुकाबले भाजपा को मजबूत माना जा रहा था। कांग्रेस गुटबाजी का शिकार थी। नेताओं के बीच आपसी खींचतान के कारण पार्टी की चुनावी संभावनाओं को मजबूत नहीं माना जा रहा था । मगर चुनाव नतीजों में कांग्रेस ने भाजपा को चित कर दिया।
भाजपा की चुनावी हार में किसानों की नाराजगी को बड़ा कारण माना गया था। इसी वजह से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। कमलनाथ की ताजपोशी हुई। हालांकि कमलनाथ सिर्फ 15 महीने ही मुख्यमंत्री रह सके क्योंकि सिंधिया की बगावत के कारण कांग्रेस सरकार गिर गई।
यूपी में भी लीड रोल में कांग्रेस
अब वैसी ही स्थितियां उत्तर प्रदेश में भी दिख रही हैं। उत्तर प्रदेश में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं।लखीमपुर कांड का इस चुनाव पर असर पड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। विपक्षी दलों ने लखीमपुर खीरी कांड को लेकर योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इस मामले में कांग्रेस सबसे आगे नजर आ रही है।
प्रियंका गांधी की गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी सियासी रण में कूद पड़े। उन्होंने प्रियंका के साथ घटना में मारे गए किसानों के घर जाकर परिजनों से मुलाकात की है। हालांकि इस मुद्दे को सभी विपक्षी दलों ने जोर-शोर से उठाया है। मगर कांग्रेस, सपा और आप तीनों पार्टियों पर लीड लेने में कामयाब रही है।
कांग्रेस को सियासी फायदा उठाते देखकर ही अखिलेश यादव ने अब फिर लखीमपुर जाने का एलान किया है। मंदसौर गोली कांड के बाद भी सरकार को न्यायिक जांच का आदेश देना पड़ा था अब लखीमपुर कांड की भी न्यायिक जांच का आदेश दिया गया है।
कांग्रेस की राह में मुश्किलें भी
वैसे उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की स्थितियों में काफी फर्क भी है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ जैसे कद्दावर नेता ने पार्टी संगठन को काफी मजबूत बना रखा है। जबकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की पूरी लड़ाई प्रियंका गांधी के चेहरे के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। यूपी में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा काफी कमजोर है। पिछले कई विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है। वह राज्य में चौथे नंबर पर पहुंच चुकी है।
उत्तर प्रदेश में अभी तक भाजपा के मुकाबले सपा को ही मुख्य प्रतिद्वंद्वी माना जा रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस लखीमपुर कांड को किस हद तक गरमाने में कामयाब रहती है । इस कांड का उसे कितना सियासी फायदा मिल पाता है।