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Rampur News: कर्बला के शहीदों को किया गया याद, जानें क्यों मनाते हैं छुरियों का मातम

Rampur News: मोहर्रम यानी आशूरा की पूर्व संध्या पर रामपुर जिले के नवाब के ऐतिहासिक इमामबाड़े में छुरियों का मातम कर के कर्बला के शहीदों इमाम हसन और इमाम हुसैन की शहादत को याद किया गया।

Azam Khan
Report Azam KhanPublished By Divyanshu Rao
Published on: 20 Aug 2021 4:02 AM GMT
Rampur News: कर्बला के शहीदों को किया गया याद, जानें क्यों मनाते हैं छुरियों का मातम
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कर्बला के शहीदों को याद करते लोग 

Rampur News: मोहर्रम यानी आशूरा की पूर्व संध्या पर रामपुर जिले के नवाब के ऐतिहासिक इमामबाड़े में छुरियों का मातम कर के कर्बला के शहीदों इमाम हसन और इमाम हुसैन की शहादत को याद किया गया। 10 मोहर्रम जिसे आशूरा का दिन कहा जाता है। यह वह दिन है जब कर्बला में इमाम हसन और इमाम हुसैन को परिवार के साथ शहीद कर दिया गया था।

उन्होंने शहादत कुबूल की लेकिन सच्चाई का दामन नहीं छोड़ा था। उनकी शहादत को 1400 साल से ज्यादा बीत चुके हैं। लेकिन आज भी लाखों-करोड़ों लोग हर साल 10 मोहर्रम को उन्हें याद करते हैं और सच्चाई के लिए अपनी और परिवार वालों की जान देकर की गई उनकी शहादत को सलाम करते हैं। कर्बला में इमाम हसन इमाम हुसैन को पहुंची तकलीफ को याद करके उन के अनुयाई मातम करते हैं। इसमें छुरियों से मातम करके अपने को लहूलुहान(ख़ूनम खून) कर लेते हैं। छुरियों के मातम से लगे घाव का दर्द उनको इमाम हसन और हुसैन की याद दिलाता है।

आशूरा की पूर्व संध्या पर जुलूस निकाला जाता था

नवाब रामपुर के इमामबाड़े में हर साल आशूरा की पूर्व संध्या पर जुलूस निकाला जाता था। और छुरियों का मातम भी किया जाता था। लेकिन कोरोना गाइडलाइन के चलते जुलूस निकालने पर पाबंदी है। इसलिए लोग आज छुरियों का मातम करके अपने गम का इजहार कर रहे हैं साथ ही इमाम हसन और इमाम हुसैन की शहादत को याद कर रहे हैं। इमामबाड़ा में मातम का कार्यक्रम का आयोजन नवाब रामपुर के इमामबाड़े के मुतवल्ली नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां कराते हैं।

वहीं जब हमने नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां से बात की तो उन्होंने बताया देखिए हर साल की तरह की तरह मैं इस इमामबाड़े का मुतावल्ली हूं। 1992 से मेरे ख्याल से मेरे खानदान में सबसे लंबा अरसा मुतावल्ली मैं रहा हूं। नवाब रजा अली खान का भी इतना नहीं रहा उनके बाद भी किसी का नहीं रहा‌ लेकिन आप जानते हैं कि आज 9‌ मोहर्रम है। शबे आशु है। कल आशूरा है। और हर साल की तरह, बलके रियासत के वक्त भी इसी तरह छुरियों का मातम होता था।

कर्बला शहीदों को याद करते लोग

इसी तरीके से जरी उठती थी इसी तरीके से मेहंदी उठती थी। 7 मोहर्रम को वह जो कस्टम है। उसे आज तक हम उसी तरीके से करते हैं। अब क्योंकि हालात अलग है कोविड आ गया तो उसमें में भीड़ की इजाजत नहीं जुलूस की इजाजत नहीं लेकिन एक सिंबॉलिक तरीके से आज भी उसी तरीके से किया जाता है।

आज जो आपने देखा वह लोगों का जज्बा है। जो कुर्बानी हमारे इमाम हुसैन ने दी जो हमारे नबी के नवासे थे उनकी कुर्बानी इस्लाम के लिए दी गई उसे दुनिया आज तक याद रखती है इंशाल्लाह हमेशा याद रखती रहेगी उनकी जो कुरबानी थी तो उनकी यादगार हमेशा की तरह ताजा रखी जाती है। उनकी मोहब्बत में जो लोग मातम करते हैं। क्योंकि उन्होंने जो शहादत दी इस्लाम के लिए उनके पूरे खानदान शहीद हुए इस्लाम के लिए उसको आज तक दुनिया याद रखती है।

Divyanshu Rao

Divyanshu Rao

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