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बलिदान दिवस: आजादी के तरानों से गूंजी कारगिल शहीद वाटिका, 'हम में है भगत' की टी-शर्ट व पगड़ी पहने दिखे लोग

बलिदान दिवस: बुधवार को राजधानी के कारगिल शहीद वाटिका (Kargil Shaheed Vatika) में 'बलिदान दिवस' मनाया गया।

Ashutosh Tripathi
Published on: 23 March 2022 11:07 PM IST
बलिदान दिवस: आजादी के तरानों से गूंजी कारगिल शहीद वाटिका, हम में है भगत की टी-शर्ट व पगड़ी पहने दिखे लोग
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Lucknow News: बुधवार को राजधानी के कारगिल शहीद वाटिका (Kargil Shaheed Vatika) में 'बलिदान दिवस' मनाया गया। इस मौके पर 'हम में है भगत' कार्यक्रम के आयोजन पर बड़ी संख्या में युवाओं ने 'हम में है भगत' टी-शर्ट व पगड़ी पहनकर और हाथों में तिरंगा के साथ इंकलाब जिंदाबाद, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु अमर रहे के उद्घोष के साथ 'ऐ मेरे वतन के लोगों', 'अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों', 'ये देश है वीर जवानों का', 'दिल दिया है जान भी देंगे' और 'मां तुझे सलाम' देशभक्ति गीतों पर थिरकते देख रहे थे।

उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा सहित तमाम नेताओं ने पुष्पांजलि अर्पित की

कार्यक्रम में उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा (Deputy Chief Minister Dr. Dinesh Sharma), महापौर संयुक्ता भाटिया, कानून मंत्री बृजेश पाठक, विधायक नीरज बोरा, भाजपा नगर अध्यक्ष मुकेश शर्मा ने कार्यक्रम में भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को पुष्पांजलि अर्पित किया।






इसके संयोजक अभिषेक खरे ने कहा कि विगत वर्षों के भांति इस वर्ष भी बलिदान दिवस 'हम है भगत' कार्यक्रम का आयोजन बड़ी श्रद्धा सुमन के साथ आयोजित किया गया है। 23 वर्ष की आयु में आजादी के लिए, हंसते हुए फांसी के फंदे पर चढ़ने वाले भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु के लिए हम सभी सदैव ऋणी रहेंगे।


8 अप्रैल, 1929 को असेंबली में फेंका गया बम

कार्यक्रम सहसंयोजक मनीष गुप्ता ने बलिदान दिवस (Balidaan Diwas) पर इतिहास को याद करते हुए कहा कि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने आठ अप्रैल 1929 को असेंबली में बम फेंका था। भगत सिंह ने बम फेंकते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा कि कोई सदस्य उसकी चपेट में न आए। यहीं पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने समर्पण कर दिया था।




भगत सिंह ने अपनी वह आटोमैटिक पिस्तौल सरेंडर की, जिससे उन्होंने 1928 में क्रांतिकारी साथियों राजगुरु व सुखदेख के साथ मिलकर लाहौर में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जान सांडर्स के शरीर में गोलियां दागी थीं। दोनों को 12 जून को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। भगत सिंह (Bhagat Singh) और बटुकेश्वर दत ने इस फैसले के खिलाफ अपील की थी। अदालत ने 13 जनवरी 1930 को दोनों की अपील खारिज कर दी। भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को 23 मार्च 1931 को लाहौर षड़यंत्र के आरोप में फांसी दी गई थी।

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