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Saharanpur News: मुस्लिम कारीगरी का कमाल, सजीव हो जाते हैं रावण, कुम्भकरण और मेघनाद के पुतले
Saharanpur News: अपनी कारीगरी का उत्कर्ष प्रदर्शन करते हुए इन पुतलों को तैयार करते हैं। इनका मानना है कि इन पुतलों को तैयार करने में उनका धर्म कहीं आड़े नहीं आता है।
Saharanpur News: देश जहां हिंदू-मुस्लिम और सांप्रदायिकता से जूझ रहा है, वहीं सहारनपुर में गंगा जमुना तहजीब और सांप्रदायिक सौहार्द की एक अलग ही तस्वीर देखने को मिल रही है। शरद नवरात्रि के दशहरा पर्व को विजयदशमी पर्व के रूप में मनाया जाता है और इस दिन भगवान राम द्वारा रावण का संहार किया गया था। इस उपलक्ष्य में विजयदशमी पर्व पर कई स्थानों पर रावण मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले जलाए जाते हैं। सनातन धर्म की यह परंपरा हिंदू बड़े ही उत्साह से मनाते हैं। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा इन पुतलों को बनाने वाले कोई और नहीं सहारनपुर में मुजफ्फरनगर के चरथावल से आए मुस्लिम कारीगर हैं और यह मुजफ्फरनगर के चरथावल से आते हैं।
जी हां और पूरे अपने मन से इन पुतलों को तैयार करते हैं और यह पिछले कई सालों से लगातार सहारनपुर आते हैं । अपनी कारीगरी का उत्कर्ष प्रदर्शन करते हुए इन पुतलों को तैयार करते हैं। इनका मानना है कि इन पुतलों को तैयार करने में उनका धर्म कहीं आड़े नहीं आता है। यह तो एक कला है जो उन्होंने अपने पुरखों से सीखी है और वह अपने बच्चों को भी है कला सिखा रहे हैं। इसी कला के लिए वह जाने जाते हैं और इसी के लिए वह यहां आते हैं।
बरसों से कर रहे ये काम
चरथावल से आए इस्लाम का कहना है कि उनके पुरखे बरसों से यह काम करते आ रहे हैं और अब वह कर रहे हैं। उनके यहां पर 10 लोगों की टीम आई हुई है, उन्होंने गांधी पार्क के अलावा टीटू कॉलोनी और विकास नगर में भी रावण कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले तैयार किए हैं। गांधी पार्क के पुतलों की खासियत यह है यहां पर रावण के पुतले की ऊंचाई 100 फीट है तो कुंभकरण के पुतले की ऊंचाई 90 फीट है और वहीं मेघनाथ के पुतले की ऊंचाई 80 फीट रखी गई है इन सभी में 3D कागज का इस्तेमाल किया गया है।
रावण का मुंह लगातार चलता है जो कि इसे बिल्कुल अलग बनाता है उन्होंने कहा कि हिंदू मुस्लिम को लेकर लोग राजनीति करते हैं लेकिन यह उनकी रोजी रोटी है वह केवल रावण कुंभकरण और मेघनाथ का पुतला ही नहीं बल्कि भगवान कृष्ण गणेश दुर्गा आदि की शोभायात्रा भी तैयार करते हैं और उनके परिवार के लोग चंडीगढ़ लुधियाना और अन्य कहीं स्थान पर गए हैं और वहां पर भी यह कार्य कर रहे हैं उनके खिलाफ कोई फतवा जारी करता है तो इससे उनके काम पर कोई फर्क नहीं पड़ता है यह उनकी रोजी-रोटी है जिसे वह पूरी शिद्दत से करते हैं। वही चरथावल से आए रियासत का कहना है पिछले 15 सालों से वह यह कार्य कर रहे हैं और इसमें उन्हें अच्छा लगता है उनके परिवार के लोग भी यही कार्य करते हैं और सहारनपुर का सबसे बड़ा रावण का पुतला 100 फुट का बनाने का अवसर उन्हें ही मिला है।