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फिरोज शाह तुगलक ने 750 साल पहले बनवाया था ये दरगाह, दर्शन से दूर होते हैं कष्ट
बहराइच: सैयद सालार मसऊद गाजी के दरगाह परिसर में स्थित कदम रसूल भवन तुगलक शासन काल के स्थापत्य कला का नायाब नमूना है। दरगाह आने वाले जायरीन कदम रसूल भवन में महफूज हजरत मोहम्मद के पदचिह्नें को चूमकर ही आगे बढ़ते हैं। 750 वर्ष पूर्व इस भवन का निर्माण हुआ था।
इस भवन में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के शिला पर अंकित हाथ व पैरों के निशान सुरक्षित हैं। मान्यता है कि इस शिला को फिरोज शाह तुगलक ने अरब से मंगवाकर स्थापित किया था। रसूल के इन पद चिन्हों का दर्शन कर चूमने से सभी कष्ट दूर हाते हैं।
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सैयद सालार मसऊद गाजी की दरगाह अमन-चैन, भाईचारगी व एकता का प्रतीक है। दरगाह में गाजी का किला स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना तो है ही। मुख्य किले से सौ मीटर की दूरी पर कदम रसूल का भवन स्थापित है। जानकार बताते हैं कि 750 वर्ष पूर्व फिरोज शाह तुगलक बहराइच आए थे। उनके प्रधानमंत्री हसन मेहंदी के लिए इस भवन का निर्माण कराया गया था, लेकिन बाद में इसी भवन में फिरोज शाह तुगलक ने पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के पगचिह्नें और हाथ के पंजे अंकित शिला को अरब से मंगवाकर कदम रसूल भवन के बीचोबीच स्थापित करवाया थी।
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बुजुर्ग बताते हैं कि पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब जब पहाड़ों पर चलते थे तो उनके पैरों के निशान शिला पर अंकित हो जाते थे। हथेली रखने पर शिला पर हथेली का निशान बन जाता था। उसी का नमूना अरब से मंगवाकर कदम रसूल भवन में सहेजा गया है।
इस शिला के दर्शन के लिए दरगाह शरीफ में प्रतिदिन तो सैकड़ों लोग पहुंचते हैं ही। प्रति वर्ष जेठ माह में लगने वाले वार्षिक मेले में जो जायरीन दरगाह शरीफ आते हैं। वह कदम रसूल के पदचिह्न् व हथेली को चूमकर ही आगे बढ़ते हैं। तुगलक शासन काल के स्थापत्य कला के साथ ही इस भवन की कसीदाकारी में ईरानी स्थापत्य कला की झलक भी देखने को मिलती है।
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खानेकाबा (अल्लाह का घर) इस्लाम के मुताबिक अरब में है। ऐसी मान्यता है कि फिरोज शाह तुगलक ने जब रसूल के पद और हथेली के चिन्ह अंकित शिला को अरब से मंगवाया था। उसी समय खानेकाबा पर लगे काले गिलाफ का एक टुकड़ा और खानेकाबा के दरवाजे की लकड़ी का एक अंश भी साथ लाया गया था। यह दोनों चीजें दरगाह प्रबंध समिति डबल लाकर में सहेजे हुए है।
गाजी की दरगाह प्रबंध समिति के सदस्य बच्चे भारती बताते हैं कि पूर्वजों की विरासत को बचाने के लिए ऐतिहासिक भवनों की मरम्मत समय-समय पर होती है।
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उन्होंने बताया कि दरगाह शरीफ के इतिहास पर नजर डालें तो कदम रसूल भवन का निर्माण फिरोज शाह तुगलक के जमाने में करने में दस वर्ष लगे थे। बेशकीमती संगमरमर से तरासे गए इस भवन में ईरानी स्थापत्य कला फूल-पत्तियों कसीदाकारी के रूप में झलकती है।
सौजन्य: आईएएनएस