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एटा: जिला पंचायत अध्यक्ष की लड़ाई में BJP हुई बाहर, SP का दबदबा कायम
जिला पंचायत के चुनावों में अध्यक्ष की दौड़ में सपा नेता जुगेन्द सिंह यादव का पुनः दबदबा कायम रहा।
एटा: जनपद में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (Panchayat Election) के सम्पन्न होने के बाद जिला पंचायत चुनाव में उतरे प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला मत पटियों से निकलकर बाहर आने के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष कौन बनेगा स्थिति स्पष्ट हो गई है। जनपद में जिला पंचायत चुनाव में 30 सीटों में से 15 सीटों पर सपा ने कब्जा कर लिया है, जबकि 9 सीटों पर निर्दलियों ने कब्जा किया है। भाजपा को ऐड़ी से चोटी तक का जोर लगाने के बाद 6 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा।
इस जिला पंचायत के चुनावों में अध्यक्ष की दौड़ में शामिल होने के लिये तीन बार से जिला पंचायत की सीट पर कब्जा जमाये बैठे सपा नेता जुगेन्द सिंह यादव का पुनः दबदबा कायम रहा। उनके द्वारा सपा टिकट पर लड़ाये गये 30 प्रत्याशियों में से 15 सीटों पर सपा ने जीत हासिल कर फिर से एटा में सपा का जनाधार साबित कर दिया।
9 सीटों पर निर्दलियों का कब्जा
वही दो बार जिला पंचायत अध्यक्ष रहे अजय यादव की पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष पत्नी मंजू यादव चुनाव हार गई। कल्याण सिंह के काफी नजदीकी रहे भाजपा के पूर्व विधायक सुधाकर वर्मा की पत्नी भी इस भाजपा विरोधी लहर का सामना नहीं कर सकी और वह चुनाव हार गई। सपा के पूर्व विधायक व जिलाध्यक्ष रहे शिशुपाल सिंह यादव के भतीजे टिन्नी यादव भी चुनाव हार गये। इस बार जनता ने किसी भी दल पर विश्वास न कर निर्दलियों पर ज्यादा विश्वास किया, जिसके बाद जनपद में कुल 30 सीटों में से 9 सीटें निर्दलियों के पाले में दे दी। बसपा ने भी एक पंचायत सीट पर अपनी जीत दर्ज कराके अपना खाता खोल लिया।
क्यों हारी बीजेपी
आपको बताते चलें कि इस चुनाव में नामांकन किये जाने के बाद से ही विभिन्न पार्टियों के प्रत्याशियों के घोषित होने के बाद से ही सपा का पुनः अध्यक्ष बनने की चर्चाओं ने जोर पकड़ना प्रारंभ कर दिया गया था। लोगों व राजनैतिक विशेषज्ञों का मानना था कि भाजपा ने ऐसे प्रत्याशियों को टिकट दिया है जो जिताऊ प्रत्याशी नहीं है। चर्चायें तो यह भी रहीं कि यह एक षड्यंत्र के तहत किया गया है जिससे भाजपा के प्रत्याशी कम सीटें जीते और जुगेन्द सिंह यादव का अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ हो जाये और हुआ भी वही, भाजपा का सूपड़ा साफ। एक भाजपा नेता ने बताया कि भाजपा ने ऐसे प्रत्याशियों को टिकट दिये वह न तो राजनीत में सक्रिय थे और न उनका जनाधार। ऐसे लोगों को टिकट मिलने से कार्यकर्ता भी नाराज हो गए थे और परिणाम सामने है।