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समाजवादी कुनबे के संग्राम का असर, सड़क पर आयी परिवार की लड़ाई

tiwarishalini
Published on: 22 Sept 2017 5:27 PM IST
समाजवादी कुनबे के संग्राम का असर, सड़क पर आयी परिवार की लड़ाई
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संदीप अस्थाना की रिपोर्ट

आजमगढ़: जिले के सबसे बड़े समाजवादी कुनबे में सियासी संग्राम खुलकर सामने ही नहीं, सड़क पर आ गया है। यह परिवार प्रदेश सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं आजमगढ़ सदर के सपा विधायक दुर्गा प्रसाद यादव का परिवार है। वैसे उनके परिवार में खूनी संघर्ष कोई नया नहीं है। इसमें दर्जनों लोग मारे भी जा चुके हैं। लग रहा था कि खूनी संघर्ष का यह कारवां अब थम जायेगा। इसी बीच दुर्गा प्रसाद यादव के पुत्र विजय यादव व भतीजे प्रमोद यादव के बीच शुरू हुआ यह नया संग्राम खानदानी इतिहास को दोहराये जाने की ओर इशारा कर रहा है।

पूर्व मंत्री दुर्गा प्रसाद यादव के पिता रामध्यान यादव का अपने पट्टीदार नेऊर यादव से पुरानी अदावत चली आ रही थी। इस दुश्मनी में दोनों ओर से कई लोग मारे गये। नेऊर व रामध्यान के मरने के बाद इनके बच्चों को दुश्मनी भी विरासत में मिल गयी। रामध्यान के 6 बेटे तथा नेऊर के एक बेटा रामप्रताप यादव था। इस दुश्मनी में दुर्गा के दो सगे भाइयों सहित दोनों पक्षों के दर्जनों लोग मारे गये। भाइयों में सबसे छोटे दुर्गा के अपराध का ग्राफ भी लगातार बढ़ता ही चला गया। जेल में रहते हुए ही दुर्गा ने राजनीति में भाग्य आजमाया।

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वह 1984 में पल्हनी का ब्लाक प्रमुख बनने में कामयाब रहा। जेल में ही रहते हुए ही वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में आजमगढ़ सदर सीट से विधायक चुन लिया गया। कुछ दिनों बाद दुर्गा यादव जनता दल में शामिल हो गये और लगातार दो बार जनता दल के टिकट पर विधायक बने। सूबे में सपा-बसपा के गठबंधन के दौरान वह बसपा प्रत्याशी राजबली यादव से चुनाव हार गये। इसके बाद उन्होंने सपा का दामन थाम लिया।

दूसरी ओर उनके धुरविरोधी डाकू नेऊर के बेटे रामप्रताप यादव जीवन भर कांग्रेस की सियासत करते रहे। वह दुर्गा के खिलाफ प्रमुखी से लेकर विधानसभा तक के कई चुनाव लड़े मगर कामयाबी कभी हासिल नहीं हो सकी। आजमगढ़ शहर कोतवाली में टांगी गयी हिस्ट्रीशीटर की सूची से दुर्गा का नाम मंत्री बनने के बाद हटाया गया था।

बहरहाल, दुर्गा प्रसाद यादव व रामप्रताप यादव के बीच चल रही खानदानी दुश्मनी खत्म सी हो चुकी है। लेकिन दुर्गा प्रसाद यादव के बेटे विजय यादव व सगे भतीजे प्रमोद यादव के बीच वर्चस्व को लेकर खानदानी दुश्मनी की एक नई पारी शुरू होने की कगार पर है। अब यह लड़ाई खुलकर सडक़ पर आ चुकी है।

संवाद नहीं अब रण होगा

जिला पंचायत सदस्य प्रमोद यादव ने जो अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है, उस पर वोटिंग 26 सितम्बर को होनी है। जिला पंचायत के 86 सदस्य हैं। अविश्वास प्रस्ताव पेश करते समय प्रमोद यादव ने जिला प्रशासन को 46 सदस्यों के हस्ताक्षर वाली सूची सौंपी थी। ऐसी स्थिति में इस सूची के यदि सभी सदस्य प्रमोद के पक्ष में वोटिंग करते हैं तो प्रमोद का अध्यक्ष बनना और मीरा यादव का हटना तय है।

फिलहाल दोनों खेमा जोड़-तोड़ में जुटा हुआ है। इसी के मद्देनजर सपा जिलाध्यक्ष हवलदार यादव ने जिला प्रशासन को प्रार्थना पत्र देकर कहा कि प्रमोद ने जो 46 सदस्यों की सूची जिला प्रशासन को सौंपी है, उनमें दो के हस्ताक्षर फर्जी हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी शिकायत की कि जेल में बंद अपराधी ध्रुव कुमार सिंह उर्फ कुन्टू सिंह जेल से फोन पर सदस्यों को धमकी दे रहा है। इस मामले में कुछ भाजपाइयों ने भी हवलदार का साथ दिया और कुन्टू सिंह को रातो-रात बरेली जेल स्थानान्तरित कर दिया गया।

किसके साथ जा सकते हैं रमाकान्त

रमाकान्त यादव फिलहाल तो प्रमोद यादव के ही साथ हैं मगर आखिरी तक उनके साथ बने रहेंगे, इस पर संशय है। वजह यह कि उनके दुर्गा प्रसाद यादव से दिली रिश्ते हैं। साथ ही रमाकान्त सवर्ण विरोधी हैं। वह भाजपा में रहते हुए खुले तौर पर सवर्णों को अकसर ही गालियां देते रहे हैं। इसके विपरीत प्रमोद सवर्णों के ही साथ रहते हैं। आजमगढ़ के तीनों क्षत्रिय बाहुबली ध्रुव कुमार, अखण्ड प्रताप सिंह व भूपेन्द्र सिंह मुन्ना उनके साथ हैं।

इस कारण भी रमाकान्त का नाता प्रमोद से टूट सकता है। इसके अलावा जिले का फूलपुर इलाका रमाकान्त के वर्चस्व वाला इलाका है। विधानसभाचुनाव में फूलपुर-पवई सीट से सपा के श्यामबहादुर यादव जीत गये थे। रमाकान्त व श्यामबहादुर एक दूसरे के कट्टर विरोधी हैं। फूलपुर में रमाकान्त के लोग ही सारे ठेके लेते हैं। इसके विपरीत श्यामबहादुर के कहने पर समाजवादी सरकार में सारे काम प्रमोद ने कराये। रमाकान्त यह भी नहीं चाहेंगे कि प्रमोद के रूप में इस जिले में एक और यादव बड़ा चेहरा बनकर लोगों के सामने आये।

सड़क पर कब आयी यह लड़ाई

21 अक्टूबर 2016 को शहर से सटे उकरौड़ा गांव में दुर्गा पूजा मेला था। दुर्गा प्रसाद के समर्थक रंजीत सिंह और प्रमोद यादव के समर्थक ग्राम प्रधान बृजेश सिंह ने अलग-अलग दावत का आयोजन किया था। इन दोनों में प्रधानी चुनाव को लेकर भी अनबन थी। दुर्गा प्रसाद के पुत्र विजय यादव और भतीजा प्रमोद यादव भी अपने-अपने पक्ष द्वारा आयोजित दावत में समर्थकों के साथ शामिल थे। रात करीब दस बजे विजय यादव बृजेश सिंह के घर पर पहुंच गये। वहंा प्रमोद के साथ उनकी कहासुनी हो गयी।

प्रमोद ने विजय को कुछ तमाचे जड़ दिये। देखते ही देखते दोनों गुटों की ओर से जमकर हवाई फायरिंग शुरू हो गयी। ईंट पत्थर व लाठी-डण्डे भी चले। कई लोगों को गंभीर चोटें आयीं। ऊपर के दबाव में प्रमोद यादव के घायल समर्थकों को जिला अस्पताल में भर्ती तक नहीं किया गया। जबकि विजय यादव के साथियों को अस्पताल में भर्ती कर लिया गया। दूसरी ओर प्रमोद यादव व उसके समर्थकों को तत्काल गिरफ्तार भी कर लिया गया। धारायें भी संगीन लगवाई गयी थीं।

भाजपा के पूर्व सांसद के हाथ में है पूरा गेम

जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी का पूरा गेम अब पूर्व सांसद रमाकान्त यादव के पाले में है। वजह यह कि रमाकान्त यादव के अतिकरीबी 7 लोग जिला पंचायत सदस्य हैं। यह सातों हर वक्त उनके साथ ही रहते हैं। प्रमोद की सूची में 46 सदस्यों के हस्ताक्षर थे। जिसमें ये 7 सदस्य भी हैं।

बाद में हवलदार यादव ने जिला प्रशासन को दो ऐसे सदस्यों का शपथ पत्र सौंपा जिन्होंने प्रमोद के अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर ही नहीं किया था। ऐसे में प्रमोद के पास 44 सदस्य ही बचे। इसमें से रमाकान्त के सात सदस्य निकाल दिये जायें तो प्रमोद के पास 37 सदस्य हैं। जबकि हवलदार खेमे के पास 42 सदस्य हैं। इसीलिये गेम पूरी तरह से रमाकान्त के पाले में है।

जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव से पड़ी रिश्तों में दरार

दुर्गा प्रसाद यादव के हर विधानसभा चुनाव की पूरी कमान उनके भतीजे प्रमोद यादव (पल्हनी के पूर्व प्रमुख) ही संभालते थे। बावजूद इसके दुर्गा केवल इसलिए हर मौके पर प्रमोद को मात देने की कोशिश करने लगे कि कहीं उनका बेटा विजय यादव राजनीति में पिछड़ न जाये और उनके राजनैतिक उत्तराधिकार को उनका भतीजा प्रमोद न संभाल ले। इस बात को प्रमोद भी समझ गये। यही वजह रही कि दोनों के बीच कलह जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में खुलकर सामने आ गया।

हुआ यह कि पूर्व कैबिनेट मंत्री बलराम यादव के आशीर्वाद से प्रमोद यादव जिला पंचायत अध्यक्ष पद के सपा के अधिकृत उम्मीदवार घोषित कर दिये गये। दुर्गा प्रसाद यादव अपने बेटे विजय यादव को विधान परिषद के लिए आजमगढ़-मऊ स्थानीय निकाय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाना चाहते थे।

वह मुलायम सिंह व अखिलेश यादव से मिले और हवलदार यादव की बहू मीरा यादव को उम्मीदवार बनवा दिया। मीरा यादव जीत गयीं जिससे प्रमोद को गहरा झटका लगा और वह दुर्गा प्रसाद यादव का खुलकर विरोध करने लगे। दोनों पक्षों के बीच उकरौड़ा गांव में हुई मारपीट तथा उसके बाद प्रमोद व उनके समर्थकों पर कार्रवाई ने संबंध और खराब कर दिये। दिलचस्प यह रहा कि दुर्गा प्रसाद ने जिस सीट से अपने बेटे विजय यादव को उम्मीदवारी दिलाकर एमएलसी बनाने को सोचा था, वहां से अखिलेश यादव के करीबी राकेश यादव गुड्डू एमएलसी बन गये।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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